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Showing posts from September, 2012

नर्मदा के किनारे से बेचैनी की कथा XII

निकले तों वो भी जैसे मै निकला था जल्दी और बेहद हडबडी में बस फर्क ये था कि मै एक बड़ी बस में था और वो एक छोटी सी कार में, मेरे साथ यात्रियों का एक बड़ा जत्था था और वो दोनों बिलकुल अकेले, जाहिर है कभी साथ रहने की कसमें खाई होंगी- सो साथ ही थे, मै निपट अकेला और साथ में ढेरों अनजान यात्री जों सिर्फ एक मानवीय मुस्कराहट से एक दूसरे को भरोसे से देख रहे थे, कभी बस कही रुकती तों अपने सामान को पड़ोसी के भरोसे छोडकर उतर जाते और फ़िर लौट आते और नज़रे बचाकर सामान टटोल लेते कि सब ठीक ठाक है ना...........कभी बस आगे, कभी कार आगे........सरकार नामक तंत्र में फंसे हम सब लोग सडकों को कोसते और रोते- धोते अपने निर्धारित गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे. सडकों के गड्ढों और ट्राफिक के दर्द में समझ नहीं आ रहा था कि किसको, कहाँ जाने की ऐसी क्या जल्दी थी कि बस- सब हरेक से आगे निकल जाना चाहते थे और फ़िर कई बार ऐसे क्षण आये पूरी दुर्गम यात्रा में कि  अब गये कि तब गये, पर कुशलता भी कोई चीज होती है यार, सबके भरोसे पर वो बस का चालक फिट ही था और हर बार हर बड़े दचके से उबार लेता था आगे- पीछे या साईड से बस निकालकर, वो यात्रा के उद्...

नर्मदा के किनारे से बेचैनी की कथा XI

यह एक पतली गली का आख़िरी कोना है और गली यहाँ  से मुडकर खत्म भी हो जाती है और नहीं भी.......पता नहीं ये आगे कहाँ जाती है पर यहाँ आकर एक एहसास होता है सब कुछ खत्म हो गया है दुनिया का लगभग आख़िरी कोना आ गया है और ठीक इसी मुहाने पर एक खम्बे पर एक टिमटिमाती सी ट्यूब लाईट जल रही है इस भयावह अँधेरे में, लगता है दुनिया का सारा उजाला यहाँ तक आते आते खत्म हो गया और अपने एकमात्र खम्बे पर यह जलने को अभिशप्त पता नहीं कब तक दम मारेगी, जीवन के बियाबान में और लगभग खत्म हो चुकी दुनिया में एक मात्र  ट्यूब लाईट पर इस समय सैकड़ों हवाई पतंगे झूम रहे है. यह जानते हुए भी कि बस सिर्फ कुछ क्षण की ज़िंदगी है यहाँ और इसी दीपदिपाते प्रकाशोत्सव में अपनी इहलीला समाप्त कर बैठेंगे पर यह जों झींगुरों की आवाज में मंद मंद प्रकाश में सैकड़ों पतंगे झूम रहे है इनसे क्या कहा जा सकता है, एक छोटे से जीवन में अपनी तमाम इच्छाएं पूरी करके यहाँ आ गये है और बस अब कि तब... मौत से जूझ रहे है, गली के आख़िरी कोने पर दुनिया के सबसे अंतिम छोर पर यह मौत का तांडव और यह तमाशा देखने को मेरे अलावा यहाँ कोई नही है. निर्जन रात्री है आसमान ...

यह जीवन की अमरबेल...........

यह एक लंबी उलझी सी और ना जाने कहाँ कहाँ गुंथी हुई सी श्रापित बेल है पीली सी जर्द और लगातार बेताबी से पेड़ के तने से लिपटती हुई और ना जाने किस आसमान को छूने को उत्सुक और तत्पर, सदियों से ज़माना कहता आया कि ये मुई परजीवी है और ना अपनी पहचान, ना अस्मिता- बस दूसरों के आश्रय पर युगों से श्रापित जीवन लिए जिए जा रही है, अपने आप से दूर और बगैर जीवन की कोई अभिलाषा लिए कैसे कोई एक लंबा हिस्सा जी लेता है और वो भी सिर्फ परजीवी होकर, कितना सरल और सहज रास्ता है यह भी.... ना किसी की परवाह, न डर, न भय, न संताप, न तनाव , न अवसाद और न कुंठा. बस उन्मुक्त और सबकी छोड़कर अपनी ही मन की करते जाना और बेफिक्री से जीवन जीना और बढ़ते जाना.........मोहल्लों के अवागर्द  पेड़-पौधों से लेकर जंगल की लंबी कतारों में उगे पेड़ों पर अपना परजीवी जीवन जीने को अभिशप्त यह बेल बढ़ रही है इन दिनों यहाँ-वहाँ .......मै देख रहा हूँ कि ये बेल उग आयी है एकदम से इस सुनसान में और अपने पीलेपन के उजास में सर्वत्र पीला- पीला सा आच्छादित कर रही है सम्पूर्ण हरेपन को ढांककर ये पीलापन घुसता चला जा रहा है- जीवन के इस निविड़ में घटाटोप अँधेरे में...

तुम हमारे वसंतों के हृदय में संध्‍यावेला की भांति ठहर गए हो

हर पुष्‍प विगलित होता है। पतझड़ के पते पर वसंत की पाती। हर मणि को अनंत काया का शाप मिला होता है। किंतु श्रेष्‍ठतम मणियां भी अपने स्‍वप्‍न में पद्म हो जाना चाहती हैं। राग-रुधिर की एक पताका। तुम भी तो पद्म थे, सुमुख। विहंसता रूप, अपूर्व कांति। (सब कुछ झरता है!) किंतु तुम दीप-धूम की भांति अपने रूप के भीतर बसे उस निवीड़ तम को एकटक देखते रहे। तुम्‍हारा यों एकटक देखना हमारे भीतर ठहर गया है। तुम्‍हारे नेत्रों में जाने कितने निमिषों का दाह है। तुम हमारे वसंतों के हृदय में संध्‍यावेला की भांति ठहर गए हो, पद्मपाणि। हम रूप-बद्ध, रूप-हत, आंखें मलते हैं। Courtesy - Sushobhit Saktawat

प्रशासन पुराण 58

जिले से दूर करीब डेढ़ सौ किलोमीटर एक ब्लाक  था जहां सारे जिले के अधिकारी अपने अपने वाहनों से इकट्ठा हुए थे, क्योकि इसी ससुरे पिछड़े ब्लाक में जिले का एक मेला होना था जिससे समाज के अंतिम आदमी का उत्थान हो सकता था. साले, गरीबों, नंगों, भूखों  को सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाना था. एक तों सुबह सुबह घर से निकलना और इन घटिया सडकों पर सरकारी गाड़ी से यात्रा करना बड़ा मुश्किल है साहब इन दिनों........ये कलेक्टर को क्या सूझी कि यहाँ मीटिंग रख दी, साला यहाँ इस मेले में सब बाँट देंगे तों अपना माल कैसे मिलेगा आदि जैसे डायलाग  हवा में उछल रहे थे, फ़िर लालबत्ती आ गई. बैठक शुरू सबकी बोलती बंद........हाँ तों पार्किंग की क्या व्यवस्था है अफसर ने पूछा ......जी सर वो स्कूल में बोल दिया है, और मेले में टेबल की क्या व्यवस्था है..........फ़िर सवाल उछला...........जी वो सब पटवारी मिलकर टेंट वाले से लगवा देंगे और पानी का टैंकर भी खडा रहेगा छोटा अफसर बोला..........जितना पूछा जाये उतना बोलो,  ज्यादा मत  बोलो समझे, औकात में रहो अपनी.....जी साब!!! फ़िर बड़ा साब बोला सूबे का सबसे बड़ा नेता आ रहा है,...

ज्योति दीवान छोटी का यूँ गुजर जाना ........

ये एक ढलती शाम है, नर्मदा का जल शांत परन्तु बहुत उद्धिग्न है. आज होशंगाबाद में यह नर्मदा अपने उद्दाम वेग से नहीं बह रही है, लगता है शांत होकर अपने आप से पूछ रही है कि आखिर नियति क्या है, संसार क्या है नश्वरता क्या है और क्यों कोई कैसे अपने जीवन की यात्रा को इतनी जल्दी समेट लेता है ? दोपहर को मनोज भाई ने जब सूचना दी कि ज्योति का देहावसान हो गया है तों सन्न रह गया था एकदम से, अभी पिछले हफ्ते ही मै और गोपाल घर गये थे बहुत देर तक बैठे थे और वो लगातार ठीक हो रही थी, केरल से चलने वाले ईलाज से बेहद खुश थी आशान्वित थी कि अब वो फ़िर से ठीक होकर अपनी बेटी जों सिर्फ छः माह की है, से खेलने लगेगी. ज्योति जैसा नाम वैसा काम अपने में मस्त और बच्चों से बेहद लगाव, एक लंबे समय तक वो एकलव्य में काम करती रही बच्चों के लिए पत्रिका "उड़ान" निकालना और इस पत्रिका के लिए ढेर सारा काम करना, रचनाएँ छांटना, बच्चों को चिठ्ठी लिखना, फ़िर पत्रिका को संवारना और प्रकाशित कर वितरण करना साथ ही समाज के दीगर विषयों पर काम, जानकारी, प्रशिक्षण और महिला मुद्दों पर काम करने वाले समूह से लगातार सम्पर्क बनाकर काम क...

कौन बनेगा करोडपति

कौन बनेगा करोडपति में शेरगढ़, धार, मप्र के एक प्रतिभागी है-सुमेरसिंह जी, जों बी एस एफ में इन्स्पेक्टर है ये कह रहे है कि उनका गाँव जिला मुख्यालय से सिर्फ पचास किलोमीटर दूर है, में कोई भी सुविधायें नहीं है गाँव सबसे कटा हुआ है इनके गाँव में बेसिक सुविधाएँ भी नहीं है. यह हाल है उस जिले का जहां BRGF का करोड़ों रूपया आता है, बारहवें वित्त आयोग के रूपयों और दीगर योजनाओं के अतिरिक्त. कल भाई Ashok Kumar Pandey ने नीमच का उदाहरण देकर कहा था बल्कि पूछा था कि अट्ठारह किलोमीटर कितने होते है भाई............अब बोलो अट्ठारह या पचास किलोमीटर कितने होते है??? यह एमपी के हाल है और प्रदेश में विकास की दर देश से ज्यादा है, जनकल्याणकारी योजनाएं लागू की जा रही है, बड़े-बड़े, लंबे-चौड़े दावे किये जा रहे है. बस बनते रहिये करोड़पति, करते रहिये तीर्थ यात्राएं, और बाँटते रहिये रूपये पैसे ताकि सनद रहे.............

देशप्रेम आखिर किस चिड़िया का नाम है..???

आज सोच रहा था ये देशप्रेम क्या होता है ? अपने पिछले अट्ठाईस बरसों का लेखा जोखा देखा और पाया कि मैंने कही देश प्रेम किया है या नहीं जब से वेतनभोगी हुआ हूँ और फ़िर उन सब लोगों के बारे में बहुत गहराई से सोचा और दो सालों से फेसबुक पर मेरे लिखे और उस लिखे पर आप सबके कमेंट्स के बारे में मंथन किया तों पाया कि मेरे साथ ढेर लोग इस लंबी यात्रा में जुड़े, भावनाओं में बहे, चाहे वो कोई आंदोलन हो, मुद्दा हो, भावुक प्रसंग हो, साहित्य का आयोजन हो या गाँव देहात में काम करने के चरण हो, या एक लंबी चरणबद्ध योजना हो...........तों पाया कि लोग सिर्फ और सिर्फ एक निश्चित समय के लिए जुडते है जों कि स्वाभाविक भी था और होना भी चाहिए पर देश प्रेम जैसा कुछ था नहीं यह सिर्फ एक शख्स से जुड़े होने के कारण और अपने खुद के नाम और कीर्ति की पताकाएं फहराने से ज्यादा कुछ नहीं था. आज बहुत गहराई से मैंने इस बात को सोचा, कई प्रकार की कसौटियों पर परखा- पूर्वाग्रह रखकर और बगैर पूर्वाग्रहों के भी, एक बार इमोशनल भी हुआ और एक बार बेहद तल्ख़ भी पर बहुत निर्दयी होकर  यह लिख रहा हूँ कि सिवाय अपने व्यक्तिगत लाभ,स्वार्थ और कुछ बड़ा पाने...

प्रशासन पुराण 57

यह जिले का बड़ा दफ्तर था, साहब विहीन दफ्तर था था सो स्थानीय बड़े बाबू ही बड़े सांप थे, फ़िर बड़े साब राजधानी से आ गये सो बड़े बाबू को जमकर तकलीफ होने लगी उनकी सत्ता छीन गई थी. बस फ़िर क्या था रोज नाटक होते रोज नए हंगामे, नए साब को कुछ आता नहीं था सो वे भी यहाँ-वहाँ घूमते रहते थे और हैरान होते रहते थे. दफ्तर में एक महिला थी जों अर्धविक्षिप्त थी और उस बेबस विधवा महिला को यह नौकरी अनुकम्पा के आधार पर मिली थी. इसके तीन पुत्र थे जों शादीशुदा थे पर तीनों यकीनन पागल थे और यह अपनी तनख्वाह से सिर्फ उन तीनों का ईलाज करवाती रहती थी. आज तों हद हो गई जब अचानक वो जोर जोर से जार जार रोने लगी और कहने लगी कि उसके साथ अत्याचार हो गया और सब मुझे परेशान कर रहे है और मै अभी कलेक्टर के पास जाउंगी, बस अपने कपडे फाडने लगी यह भयावह दृश्य था. सब घबरा गये, एक विक्षिप्त महिला पुरे स्टाफ में जिसमे छः राजपत्रित अधिकारी थे, एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था का प्रतिनिधि, सांसद प्रतिनिधि, तीन चपरासी, और दो बाहरी लोग थे. इस पुरे बदहवास नाटक का आगे क्या होगा यह नहीं पता पर एक अधिकारी ने कहा कि इसी पागल महिला ने एक बार उन पर यौन उत्पी...

हिन्दी दिवस की फ़िर भी घिसी-पीटी बधाई...............

लों आखिर आ ही गया हिन्दी दिवस अब हफ्ते भर तक खूब श्राद्ध और तर्पण होंगे, जों भी हो अपन ने खूब इनाम बटोरे थे और नगद पुरस्कार भी लिए थे एक जमाने में देवास के बैंकों में और तमाम तरह के क्लबों में खूब जम के वाद-विवाद करते निबंध लिखते और हिन्दी-हिन्दी करते पर साला एम ए अंगरेजी साहित्य में ही किया, बाद की सारी पढाई अंगरेजी में ही की, क्योकि समझ आ गया था कि इस देश में दाल रोटी खाना है दो टाईम तों अंगरेजी के अलावा कोई और भाषा तार नहीं सकती अपने भविष्य को. पर आज अंगरेजी को अपने दायें-बाएँ करने के बाद भी दाल रोटी खाना मुश्किल हो रहा है इस देश में, तों तरस आता है अपने आप पर और दुःख होता है कि हिन्दी जानने वाले की क्या गत हो गई है और कुल मिलाकर दो कौडी का बनाकर रख दिया है. बहरहाल, हिन्दी के बड़े मठों और गढो से डिग्रीयां बटोरकर चापलूसी से यहाँ-वहाँ नौकरी जुगाडने वाले हिन्दी के मास्टर और राजभाषा अधिकारी ही आज खुश है और अपने तथाकथित आतंक से बच्चों का जीवन बर्बाद कर रहे है, और राजभाषा अधिकारी सरकारी आदेशों को दुरूह भाषा में लिखकर हिन्दी को अबला बनाने के षड्यंत्र में  शामिल है या उन लिक्खाडों को ...

एक हारे और थके हुए मुखिया का बयान............Dr Manmohan Singh PM India

देशवासियों -एक हारे और थके हुए मुखिया का बयान............ अब हारने वाले तों है क्या करें और क्या ना करे कम से कम २०१४ तक ही जैसे तैसे सरकार ढो लें यही बहुत है................तों जनता जनार्दन अब मेरे पास कोई और चारा नहीं है आपको डीजल और गैस में रूपया देना ही होगा और रहा सवाल आपकी जेब का तों देखो ना मेरे पास तों शरद पवार या कमलनाथ से भी कम संपत्ति है तों अब आप ही बताए कि मै पी एम हूँ जब मेरी यह हालत है तों आपको तों नंगा-भूखा रहना ही होगा ना और हाँ ज्यादा चबड चबड मत करना फेसबुक पर वरना देशद्रोह में सालों अंदर करवा दूंगा..............चलता हूँ जाकर गुरशरण कौर को समझाता हूँ कि साल में सिर्फ छः टंकी ही वापरना क्योकि सातवे पर ज्यादा देना होगा वैसे भी अब आपकी गालियाँ खा - खाकर पेट भर ही जाता है ऊपर से बाबा की उम्मीदें, जिद और मेडम जी की डाट भी जब से यहाँ आया हूँ, खा ही रहा हूँ, अब आपसे छुपा है क्या कुछ.................खैर भाईयों-बहनों मै मानता हूँ कि आज़ाद हिन्दुस्तान का मै सबसे निकम्मा निकला यह तों कम से कम इतिहास में दर्ज रहेगा.......चलो यही सही बुढापे में क्या-क्या सहना पडे...

नर्मदा के किनारे से बेचैनी की कथा X

तुम्हे याद करते हुए एक माह और आठ दिन कैसे बीत गये मानो युग और शताब्दियाँ बीत गई है, पता ही नहीं चला बस अब रोज पानी की बूंदों से आते तुम्हारे संदेस पढकर बिफर जाता हूँ अपने आप से गुस्सा होकर कई बार लड़ लिया हूँ इन बूंदों से और फ़िर कई बार अपने आपको झोंक दिया कि चलो इस बार इस बारिश में बाढ़ के पानी में निकल जाये कही दूर.............क्या नियति ने नदी के किनारे इसी के लिए लाकर पटकनी दी है मुझे......लड़ा तों उससे भी ज्यादा था और गुस्सा तों उससे भी ज्यादा था... तुमसे नहीं... अपने आप से, पर अच्छा यह लगा कि सब ठीक हो गया और अब विश्वास है कि इस जाते हुए अधिक मास में पानी की बूंदों और बाढ़ के साथ सब बह जाएगा हमेशा के लिए और रह जाएगा तों सिर्फ एक एहसास कि यहाँ इसी नदी के किनारे एक अलमस्त आवारा दरवेश आया था जिसका साया अब कही नहीं होगा इस नश्वर संसार में -  जों कहता था उड़ जाएगा हंस अकेला, जों कहता था ज़रा हलके गाड़ी हांको मेरे राम गाड़ी वाले.......जों कहता था हिरना समझ बूझ बन चरना, जों कहता था जिंदगी तुझको तों बस ख्वाब में देखा हमने, जों कहता था कबीरा सोई पीर है जों जाणे पर पीर, जों कहता था इस घट अंतर ...

प्रशासन पुराण 56

यह एक देस की कथा है जहां बड़ी नदी बहती थी जंगल में से होकर छल छल, एक बार जंगल की सरकार ने उस नदी पर बाँध बनाने का तय किया और जानवरों की पंचायत ने उस पर बाँध बनाने की इजाजत दे दी, कुछ जन-जानवरों के घर - खेत जब डूबने लगे तों इन्ही जन्-जनावारों ने हडताल कर दी. सारे जन-जनावर पानी में बैठ गये राजा को तों कोई खबर ही नहीं थी, वो घूम रहा था यहाँ- वहाँ और मजे कर रहा था, जंगल के सूबेदारों के साथ बैठक ले रहा था, पर जब बात गले से ऊपर हो गई और पूरी दुनिया के लोग चिल्लाने लगे तों राजा को होश आया तब उसने पुरे कृष्णपक्ष के पन्द्रह और दो दिन बाद अपने दरबार में जानवरों के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा कि सरकार और दरबार आपके साथ है. आप लोग पानी से निकलो, हम आपके खेतों में पानी नहीं भरेंगे. और इस अवसर पर राजा ने अपने तीन चतुर मंत्रियों समेत दो सूबेदारों को मिलाकर एक समिति बनाने की भी सिर्फ घोषणा की, तीनों चतुर मंत्री जंगल के बड़े प्रभावी मंत्री थे जों गलेगले तक सुख सुविधाओं में डूबे थे, इलाके की खरबों की जमीन के मालिक थे, और दो सुबेदारों में से एक तों बड़ा ही घाघ किस्म का था, जाति से वणिक, वो प्रदेश में निर...

नर्मदा के किनारे से बेचैनी की कथा IX

सुबह बात की थी तुमसे, जो आवाज सात समंदर पार से आ रही थी वो बेहद साफ़ थी पर मेरी आवाज काँप रही थी और मै सोच रहा था कि कैसे कह दूँ कि सब कुछ ठीक नहीं है, अभी हाल ही में मैंने अपनी सारी जांचें करवाई है और तुम्हे किसी अँधेरे में नहीं रखना चाहता- बस सिर्फ इतना कहना है कि ये सब बहुत नकारात्मक है और जीवन के और सत्य के बीच बस सिर्फ दो और दो उँगल का ही फासला है, शेष-अशेष के बीच झूलता यह सब कुछ बस होने को है भी और नहीं भी....लगता है रूह काँप रही है यह कहने में, चाहता तो सब कुछ कह देता उसी झीनी आवाज में लरजते हुए, पर अभी तक सिर्फ गरज कर बातें की है और जीवन के इस कमजोर और भावुक क्षण में मै एक बार से कमजर्फ होकर यूँ तुम्हे सब बताना नहीं चाहता था. पर सच तो सच है आज नहीं तो कल यह सामने आएगा ही बस फर्क इतना होगा कि मेरे बाद तुम्हे कुछ और लोग बताएँगे यह दास्ताँ और कहेंगे कि तरसता रहा आख़िरी तक कि कह देता, एक बार देख लेता!!! पर अब कहना नहीं है कुछ और शायद इसलिए मै हमेशा टालता रहा कि ना बात करू, ना कहू, कुछ अपनी, आज जब तुम कह रहे थे अपने बारे में उस विशालकाय जीवन और स्वर्गातिक माहौल के बारे में तो लगा कि...

भारतीय शिक्षा के आधुनिक कालजयी पुरुष श्री अनिल बोर्दिया को नमन

  देश के प्रख्यात शिक्षाविद श्री अनिल बोर्दिया का निधन हो गया अभी मैंने अपनी मित्र शबनम से जयपुर में बात की तो पता लगा. अनिल जी से एक लंबा सम्बन्ध था शिक्षा के सारे प्रयोग बांसवाडा के गढी ब्लाक से अनिल जी ने शुरू किये थे जब वे केन्द्र सरकार में शिक्षा सचिव थे तब उन्होंने राजस्थान में लोक जुम्बिश जैसी महती परियोजना शुरू की थी बाद में यह परियोजना प्राथमिक शिक्षा के लोकव्यापीकरण के लिए एक आदर्श बनी जिसमे समुदाय को जोडकर शिक्षा की बात की गई थी, अनिल जी बेहद गंभीरता से और खुले मन से सभी का आदर करते हुए नए विचारों को सम्मान देते थे. मेरे जैसे युवा जो कुछ करने की सोचते थे को उन्होंने  भरपूर अवसर दिए जो कालान्तर में मुझे काम आये और शिक्षा पर मेरी ठोस समझ बनी. बाद में अनिल जी ने हमेशा  राजस्थान बुलवाया और खूब घुमाया बीकानेर से डूंगरपुर और ना जाने कहाँ कहाँ. ढेर सारी यादें शिक्षक प्रशिक्षण, पाठयक्रम निर्माण, शालात्यागी बच्चों/किशोरों के साथ किये गये तीन माह के लंबे शिविर, बारां में संकल्प के साथ काम, तीन डाईट में सघन प्रयोग और काम, स्थानीय आदिवासी बोली, संस्कृति और मूल्यों के ...

भाई Anuj Lugun की एक महत्वपूर्ण कविता.

भाई Anuj Lugun की एक महत्वपूर्ण कविता.   आजाद लोग  मुकाबला जब आजाद लोगों में हो तो हार-जीत के सवाल बेतुके होते हैं हारे हुए आजाद आदमी के जज्बात जीते हुए राजा के जज्बात से ज्यादा सुंदर और मजबूत होते हैं, आजाद लोग अपने मरने पर विचार नहीं करते वे अपने- देवताओं पूर्वजों बच्चों बूढ़ों और औरतों के सम्मान पर बहस करते हैं वे किसी हथियारबंद राजा से नहीं डरते वे एक पेड़ के गिरने से डरते हैं नदी के सूखने से डरते हैं आँधी से गिरे किसी पक्षी के घोंसले को देख वे चिंतित होते हैं, आजाद लोग अपनी मौत से ज्यादा दूसरों के जीवन पर बहस करते हैं आजाद लोग फिर अपने बहसों पर हैं वे धान की बालियों पर हवा के लिए बहस कर रहे हैं वे लोकतंत्र के राजपथ पर जंगलों के लिए बहस कर रहे हैं। आज फिर हारे हुए आजाद आदमी के जज्बात जीते हुए राजा के जज्बात से ज्यादा सुन्दर और मजबूत हैं।

मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो -वसिम बरेलवी

उसूलों पे जहाँ आंच आये  तो टकराना ज़रूरी है जो जिंदा हों तो फिर जिंदा नज़र आना ज़रूरी है नई उम्रों के खुदमुख्तारियों को कौन समझाये कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है थके हरे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटे सलीकामंद शाखों का लचक जाना ज़रूरी है बहुत बेबाक आँखों में ता’अल्लुक़ टिक नहीं पता मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है सलीका ही नहीं शायद उसे महसूस करने का जो कहता है खुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो की इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है -वसिम बरेलवी