व्यक्ति जो कह रहा है उसे सुनो, फिर व्यक्ति को देखो, उसके आचरण और व्यवहार को देखो कि जो वह कह रहा था उसका पालन कर रहा है या नही - ज्ञान देना आसान है, पर उसे अपने जीवन, अपने सिद्धांतों और अपने दैनिक जीवन के मूल्यों में उतारना असम्भव है
हममें से अधिकांश लोग दूसरों से बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते है, अरे भाई मत हो प्रभावित - दूसरा जो कर रहा है उसका धँधा है, उसका काम है, बोलना सरल है, कॉपी पेस्ट मारकर लिखना और सरल है - नूतन क्या है, नया क्या है, नवाचार क्या है
एक उदाहरण से समझिये - एक सज्जन गांधी पर प्रवचन दे रहें थे , डेढ़ घण्टे में उन्होंने लगभग 240 बार गांधी बोला, गांधी के ख़त, बातें और गांधी के विचार अलग-अलग किताबों से पढ़कर सुनाएं और अंत में सभागार में देर तक बजी तालियों ने सिद्ध किया कि ये सज्जन ही विद्वान है बाकी गांधी तो निहायत ही उजबक थे, इस तरह वे एक बार पुनः बड़े विचारक, विद्वान और प्रखर वक्ता सिद्ध हुए, कार्यक्रम के बाद अपना मानदेय का लिफ़ाफ़ा बटोरकर, गाड़ी के लिये लगा पेट्रोल का नगदी लेकर अपनी 22 लाख की गाड़ी में रवाना हो गए - उसी शहर में आयोजित किसी और संगोष्ठी में - जहाँ से उन्हें पुनः उतना ही सब मिलने वाला था जितना यहाँ से मिला था
यह आस्थाओं, भरोसो और विचारों की "हत्या-पश्चात" [ Post Murder Age of Ideology, Faiths and Trustiships ] का युग है इसलिये अपने सही - गलत पर स्थिर रहिये जैसे है वैसे रहिये और सहज जीने का प्रयत्न करें, किसी से बराबरी करेंगे या तुलना तो ग्लानि में आत्महत्या करना पड़ेगी, बस सहज रहिये यकीन मानिए सब दिखावा है, आत्म मुग्धता को संतुष्ट करने के बहुतेरे उपायों में से एक है यह भ्रम, सब मिथ्या है, यदि किसी से प्रभावित हो रहें है तो एक बार उसे पुनः देखना कि कही यह उसकी आजीविका तो नही है
#मन_को_चिट्ठी
(ज्ञानियों, बाबाओं और धर्माचार्यों के प्रवचन पढ़ सुनकर, प्रश्नोत्तरी के लाइव और रील्स देखकर उपजा विचार)
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