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Khari Khari, Drisht Kavi, Man Ko Chiththi and other Posts from 21 to 23 Sept 2024

जी, जी, जी सर
अभी हो जायेगा
आप से बेहतर अनुभवी कोई नही
आप जैसा सह्रदय इंसान सभ्यता में नही हुआ
आपकी कविता एक नए युग की शुरूवात है
आपका सुघड़ गद्य साहित्य की भूमि पर फ़ैला वटवृक्ष है
आपका दीर्घकालीन प्रशासनिक अनुभव हर जगह बोलता है
आप सा प्राध्यापक हो तो सा विद्या विमुक्ते हो जाती है
आपकी सुझाई इस गतिविधि से सामाजिक बदलवा में आमूल चूल परिवर्तन होगा
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ये है हमारे चपलेश के संवाद , चपलेश यानी चापलूस जो सभी जाति, प्रजाति और सभ्यता में मौजूद है और इनसे बचकर रहा नही जा सकता - ये वामपंथी से लेकर सपाई, बसपाई, भाजपाई, काँग्रेसी, सत्तर साला हरामखोर झब्बेदार गांधीवादी और वैश्विक मानसिकता के भी हो सकते हैं और इनके होने से ही मानव सभ्यता जीवित है
जल्दी ही एक #चपलेश श्रृंखला आरम्भ कर रहा हूँ , आशा है आपको अपने 38 साला कार्यकाल में मिलें चपलेशों से रूबरू करवा सकूं - 38 साल एक लंबा कालखण्ड होता है, लगभग चार दशक से देख रहा हूँ कि स्कूल, कॉलेज, स्वैच्छिक संस्थाएँ, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ, और सरकारी विभागों में चपलेशों की जबरदस्त होड़ और पकड़ है कि कौन कितना गिर सकता है, मेरे देखते - देखते बाबू या ज़मीनी आदमी संस्थाओं के प्रमुख पदों पर, प्रमोटी ब्यूरोक्रेट्स, या प्रबन्धन में आ गए, टुच्चे से शिक्षकों के हवा महल महाविद्यालय बन गए, हॉकर बड़े अखबारों के सम्पादक बन गए और गाँव का सबसे गलीज आदमी जिला पँचायत का अध्यक्ष बन गया - यह लोकतंत्र की ख़ासियत भी है और खूबसूरती भी पर इसमें जाति, आरक्षण, शिक्षा, योग्यता के साथ चापलूसी जैसा तड़का जब तक न हो तब तक कुछ सम्भव नही वरना क्या बात है कि एक भ्रष्ट और नालायक शख्स कलेक्टर बन जाता है और कुटुम्ब पार करवा लेता है इस भवसागर में, 140 करोड़ की आबादी में बहुतेरे योग्य लोग है पर चपलेश जैसे गुणधर्म लिये आदमी ही प्रबंधन तक पहुंच पाता है - फिर प्रशासन हो, कारपोरेट या स्कूल - एनजीओ, बहरहाल
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आपके पास कोई ऐसे "विचित्र किन्तु सत्य चपलेश" हो तो बताइयेगा
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[ अब चपलेश का अर्थ मत पूछियेगा - मेरी व्याख्या है जिसे चप्पल के नीचे रहने में लेश मात्र कष्ट ना हो ]
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ज़िन्दगी में कभी-कभी एकदम बेफ़िक्र हो जाना चाहिये, सारे तनाव, अवसाद, काम, प्रतिबद्धताओं, चिंताओं और विचारों से एकदम दूर जाकर तटस्थ हो जाना चाहिये, जो होना है वह तो होकर ही रहेगा फिर किस बात की चिंताएं और दुश्वारियाँ, सब छोड़ कर सिर्फ़ ज़िन्दगी जियें - ताकि हम खाली होकर दोहरी जिंदगी जीने के बजाय सिर्फ़ अकेले और अपने आप पर ही फोकस्ड होकर जी सकें
हमें ना किसी की सुनना चाहिये और ना ही किसी संवाद या तर्क - तक़रार में हिस्सेदार होने की ज़रूरत हो और यकीन मानिये वह सबसे सुखद पल होगा अपने जीवन का और दुनिया अपने आसपास घूमती नज़र आयेगी और तब सच में हम इस संसार और बदलाव का हिस्सा होंगे - सार्थक भूमिका में, रचनात्मक - सकारात्मक और आत्म विश्वास से भरे संवाद से लबरेज़, सब ओर खुशियाँ बिखेरते हुए
एक बार करके देखिये - अच्छा लगता है
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बहुत दिनों बाद दिखा तो मैंने पूछ लिया -"क्यो बै, तुम्हारे मोई जी तो आज फिर अमरिक्का निकल गए और तुम्हें नई ले गये - क्या हुआ, सदस्यता छोड़ दी क्या, अखिल ब्रहामण्ड हिन्दू कवि संघ और भाजपा की"
लाइवा उदास तो था पर आज सच बोला, - "वो है ना
आब नही आदर नही , नैनन नही अस्नेह,
तुलसी तहाँ ना जाईये, कंचन बरसे मेह
बस हमकूँ बुलाया नई - तो गए नई, कउता - वविता ठीक है, पर साली इज्जत भी कोई चीज होती है कि नई, भले दो कौड़ी की हो पर है तो .... " , वह बड़बड़ाते जा रहा था
और मैं उसे रोककर कहना चाहता था कि -"लाइवा, आय लभ यू प्यारे, मेरी शेष उम्र तेरे कूँ लग जाये"
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ईसाई धर्म में अनाचार और अत्याचार और कैसे लोगों को बेवकूफ बनाकर रुपया ऐंठने वाली फिल्म #ट्रांस देखी
अनवर राशिद ने इसे निर्देशित किया है, पूरी फिल्म देखते समय मुझे स्व तेजिंदर का उपन्यास "काला पादरी" याद आया, फहद फासिल, दिलेश पोथन, गौतम वासुदेव मेनन का अभिनय बढ़िया है
हर जगह लूट खसोट है और सबके शिकार ग़रीब मज़लूम लोग है, धर्म की अफ़ीम और चंगाई से सबको ठीक करने के धन्धे हर धर्म और संस्कृति में है ऐसे में यह फ़िल्म बनाने का जोखिम लेकर प्रदर्शित करना भी एक बड़ी चुनौती है, कमाल यह है कि इस पर अभी कही से विवाद नही उठा है
अमेज़ॉन पर यह फ़िल्म हिंदी के अलावा दक्षिण भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है, हिंदुओं और सनातनी लोगों को अहम तुष्ट करने के लिये यह कहना पर्याप्त है कि अंधविश्वास और ढकोसले इसमें है और कैसे पास्टर कठपुतली बनकर बड़े लोगों को संपत्ति जुगाड़ने में लोगों को ठगकर मदद करता है
देख लीजिये सम्भव हो तो
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थोड़े दिन कविता और फेसबुक से मुक्त होकर जीवन भी जीयो, मैं अभी 10 दिन नही था कही भी तो काफी सुकून मिला, हर बात को यहां लिखना और जताना जरूरी नही है और कम से कम एक दिन में दस बीस पोस्ट, जिसमें आधी कविताएँ लगाना तो बिल्कुल जरूरी नही है, कविता या गद्य का अनुशासन ही खत्म हो जाता है और गम्भीरता भी, आपकी दस कविताएँ एक दिन में झेलकर मैं आपको मानसिक रोगी घोषित करता हूँ और संसार का सबसे बड़ा ऐबला [ किसी मालवा वाले से पूछना इसका अर्थ ]
आप बीमार है - अस्पताल में है तो सलाइन की बोतल दिखाकर क्या सिद्ध कर रहें हो, शादी में हो - नए कपड़े पहनकर किसे दिखा रहें हो, किसी की मैय्यत में हो तो क्या शव के साथ सेल्फी लगाओगे, किसी तथाकथित दीदी, भैया, कवि, साहित्यकार से मिल रहे तो उसके गले पड़कर क्या दर्शाना चाहते हो, चाट खा रहे या मछली तो क्यों दिखा रहें भाया, बनाना सीखाना अलग बात है
एक दिन में 25 - 30 पोस्ट और इसमें चार अखबार और स्वर्ग लोक की किसी पत्रिका के स्क्रीन शॉट्स, 21 कविताएँ, और दो पोस्ट किसी वरिष्ठ साहित्यकार, भ्रष्ट और मक्कार प्राध्यापक या ब्यूरोक्रेट की "चापलूसी करते चपलेश" बनकर थूक चाटती पोस्ट और बाकी दूसरों की वाल पर डेढ़ हजार कमेंट्स और लाइक तो भगवान भी उतर आए तो गिन नही सकता - अरे शादी, अस्पताल या मैय्यत में हो तो वहाँ रहो ना - ये क्या कि अपनी बीबी और बच्चो की प्रदर्शनी लगाकर किसी सेल की तरह से इमोशन बेचकर वाहवाही लूटी जा रही है, बीबी, बच्चों, कार - कुत्ते की और अपने स्कूल - कॉलेज को ओएलक्स पर बेच दें तो रुपया मिलेगा प्रभु
आज यह कई मित्रों को लिख रहा हूँ और खुद भी कोशिश कर रहा, एक ही जिंदगी है यारां और वो सिर्फ सोशल मीडिया पर नही है कम से कम, गलतियाँ मैंने भी की है, आगे भी करूँगा पर थोड़ा सतर्क रहूंगा कि अति ना हो जाये - दूसरों से खुद को ज़्यादा ज्ञानी, श्रेष्ठ और समझदार समझना बीमारी है और हम सब इसके शिकार है
बहुत मूल्य, समाज, संस्कृति, दोस्ती, बदलाव, विकास की बात हम सब करते है पर जरा एक बार अपनी औकात देख लें या झाँक लें गिरेबाँ में - बीबी से लेकर भाई, माँ-बाप, बच्चों और पड़ोसी से बात नही हो रही और चले हैं दुनिया बदलने, ज्ञान का रायता लेकर, हम सब गलती करके ही सीखते है पर रिझाना और फिर रोना, नँग - धड़ंग फोटो डालकर आपको लगता है चार बूढ़ी तितलियाँ आपको नोबल दिलवा देगी हिंदी का, या अपने दो कौड़ी के स्कूल और चार टुच्ची गतिविधियां बाबा आदम के ज़माने की करके फोटो चैंपने से आपको महान मान लेगा इतिहास, या निकारागुआ, अमेरिका और कालूखेड़ी के फोटो डालकर आप नया भूगोल रच देंगे, या डेढ़ लाख वाले एपल मोबाइल से चिड़िया, फूल-पत्ती या कुत्ते- बिल्ली के फोटो डालकर आप रघु रॉय बन जायेंगे, या अपनी सड़ी - गली क़िताबें जो प्रकाशक पर दबाव बनाकर छपवाई है उसके भौंडे प्रचार से बीस लाख बिक जाएंगी तो आपका कोई इलाज नही है, ब्यूरोक्रेट हो तो रोज काम के साथ दस पोस्ट,पाँच समीक्षाएँ और पच्चीस बार बालाओं को जन्मदिन की बधाई कैसे दे देते हो यार, 6 - 7 विवि के कुलपति हो तो क्या सेटिंग किया कि तुम हर जगह हो साक्षात मुस्कुराते हुए
कितने क्यूट हो आप भी ना , समझदारों को इशारे काफ़ी होते है
जवाब की , लाइक या कमेंट्स भी ज़रूरत नही बस मनन करो

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