"फूलों का तारो का
सबका कहना है
एक हजारों में मेरी बहना है"
बहुत साल (2011) पहले मैंने लिखा था कि अब यानी 21 वीं सदी में राखी महिलाओं को कमज़ोर करने वाला त्योहार है, तब योजना आयोग में था और सीहोर में पोस्टिंग था, तत्कालीन मुख्यमंत्री के जिले में तो वहां के एक धंधेबाज प्रकाशक और सतनारायण की पूजा करने वाले प्रगतिशील ने बहस की और असहमत कह कर ब्लॉक कर दिया था
मेरी बहनें आज डॉक्टर है बड़ी बड़ी, ऊंचे पदों पर काबिज है, ब्यूरोक्रेट्स है , पुलिस में है, जज है, वकील और इंजीनियर्स है, दिल्ली, मुंबई, पूना या जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका में रहती है - साल में सौ दफा वे ही मेरी रक्षा करती है - मैं एक धागे की रस्म निभाकर गरीब आदमी हजार दो हजार देकर क्या तो उनकी मदद करूँगा या रक्षा
मतलब अब सब जब बदल गया है तो क्या सच में महिलाओं को रक्षा की जरूरत है इस सशक्तिकरण के दौर में, यहाँ रक्षा का अर्थ पहलवानी और शारीरिक सौष्ठव आदि के सन्दर्भ में ना देखें या शादी ब्याह, छेड़छाड़ से ना आंकें
शहरी ग्रामीण दोनो सन्दर्भों में कह रहा हूँ, मिलो - जुलो, मौज मस्ती करो, रिश्ते निभाओ पर कम से कम ये रक्षा आदि का कवच इस्तेमाल ना करो
बहुत मन है कभी मौका मिलता या मिला तो इंदिरा गांधी, मार्गरेट थैचर, विनी मंडेला, ओबामा की घरवाली, मिशेल, कमला हैरिस, कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, विनेश फोगाट, ममता बनर्जी, मायावती, इंदिरा नुई, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, स्मृति ईरानी, रुबीना, मृणाल पांडे, किशोरी अमोनकर, कौशिकी, अनामिका, से लेकर कंगना रनौत या अमिता नीरव तक एक सवाल पूछने की इच्छा है कि क्या सच में आपको रक्षा की जरूरत है और क्या आपके भाई इतने सक्षम है कि वह आपकी रक्षा कर सकें
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काहे का लेडीज़ फर्स्ट बै
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लोग जबरन उत्तेजित हो रहें हैं, बलात्कार हमारी विकास यात्रा और सभ्यता का द्योतक है और यह होते रहें - ताकि थोड़े से शेष बचें मनुष्य इसकी आड़ में इकठ्ठे होते रहें, आज़ादी के 78 वर्षों बाद भी कब तक ये नौटँकी करते रहोगे सालों, अब तो 33% आरक्षण का बिल भी पास हो गया, 2029 से बलात्कार बन्द हो जायेंगे, क्यो ग़दर मचा रहें कम्बख्तों
कल निर्भया थी, आज कोलकाता की एक डॉक्टर है तो सभ्य लोग मोमबत्ती का धँधा चला रहे है, मैं रोज सुनता हूँ कि दूर दराज़ के आदिवासी इलाकों में, गाँव - देहात - कस्बों और छोटे शहरों में बलात्कार हो रहे है - रिपोर्ट नही हो रहें, पर हम मरे हुए लोग है, रोज़ नही कर सकते धरने, रैली या प्रदर्शन
हर तीसरा आदमी नामजद कह सकता है कि मेरे विधायक, सांसद या पार्षद, सरपंच, पंच, या इनकी नालायक औलादों को रोज़ एक जवान लड़की लगती है, आजकल ट्रांसजेंडर का भी चलन है, LGBTQ के भी रेट्स है, गाँव के प्रभुत्व वाले लोगों को भी रोज चाहिए नई और पैक्ड माल - पर कोई आवाज उठाता है जबकि आम लोगों से लेकर थाने तक को खबर है, न्यायपालिका के लोग मंगल से नही आये है, बड़े वकील कम है क्या
हमारे बड़े बड़े कवियों या छर्रों को देख लो, हर बड़े आयोजन में इसको निपटाया, उसको पेल दिया से लेकर मंडला या दिल्ली या पटना में कौन किसके कमरे में रात घुसकर मजे कर आया, या अपनी बीबी छोड़ तीसरे की बीबी से आंख लडाकर पांचवे की बीबी से सातवां ब्याह करने वाले उदाहरण कम है क्या, अर्धनग्न फोटो डालकर बूढ़ी तितलियों को रिझाने में माहिर लोग कविता बेचने लगे और सेलिब्रिटी बन रहे है, आलोक धन्वा जैसे अस्सी पार कवि रोज ट्रोल हो रहे पर उन्हें कोई लाज या हया है - मामला इतना सीधा नही है - ताली दोनो हाथों से ही नही बल्कि कोविड स्टाइल में थाली परात और बर्तन बजाकर भी पीटी जा रही है - किसी को दोष मत दो
असल में कोलकाता हो या हाथरस या मणिपुर सिवाय राजनीति के कुछ नही है, राजेन्द्र यादव ने बहुत साल पहले लिखा था हर परिवर्तन या महत्वकांक्षी राजनीति या परिवर्तन का झंडा स्त्री की &^%$ में ही गाड़ा जाता है और उसे ही इस्तेमाल करके आगे बढ़ने की अंधी दौड़ है
दूसरा पक्ष यह भी है कि कोई अति महत्वकांक्षी स्त्री जब अपने अरमान पूरे करना चाहती है तो शरीर को सीढ़ी बनाकर बेदर्दी से इस्तेमाल करती है, मेरे साथ बचपन से पढ़ी-लिखी और आज करोड़ो की संपत्ति या मलाईदार पदों पर बैठकर भ्रष्टाचार करती सखियाँ भी है, जो इसका फ़ायदा उठा रही है, अजा और अजजा के मामलों में अंतरिम मुआवज़ा ₹ पचास हजार लेने और ज़मीन के मामलों में सवर्ण वर्ग को फंसाने के लिये बलात्कार का आरोप मढ़ना भी एक शिष्टाचार ही है
ऐसे में सवाल यह है कि जस्टिस वर्मा समिति की अनुशंसाएं सरकारों ने कितनी लागू की, इसकी कोई पुख़्ता जानकारी या शोध है, नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ें ही देख लीजिये एक मिनिट में 68 बलात्कार होते है, क्या महिला पुलिस अधिकारी, महिला पायलेट, महिला सेना अधिकारी, वैज्ञानिक या डॉक्टर, वकील या शिक्षिकाएं त्रस्त नही है - ये सब तो सशक्त है
कितना जुलूस निकालोगे यारां , छोड़ो ना, त्योहार शुरू हो रहें है - मौसम भी बढ़िया है,मजे करो और फिर आशाराम और राम रहीम बाहर है - ट्यूशन लो इनसे कि सब करके कानून से कैसे बचें, बागेश्वर हो या ठाकुर साहब की रील्स देखो, महिलाएँ खुद के पति या सास-ससुर के साथ खड़े होकर उन्हें कह रही है - "आय लव यू", लड़कियाँ और किशोरियाँ बेचैन है ऋतिक या अनंत अम्बानी के लिये या सचिन पायलट या चिराग पासवान के लिये, नेशनल क्रश की अंधी दौड़ में विजय माल्या से लेकर पंत प्रधान भी शामिल है
राखी, गणेशोत्सव, नवरात्रि, दीवाली जैसे त्योहार आ रहे है, एन्जॉय - हाँ थोड़ा थ्रिल, एडवेंचर के लिये मस्त मुद्दा है, लिखने के लिए गर्म मसाला, राजनीति चमकाने के लिये मौका और बाकी तो जो है हइये है
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हम सब अपना काम खत्म कर जल्दी से निकलकर लौट जाना चाहते है, पर ज़िंदगी सुख-दुख के पहियों पर चलती है और संतुलन बनाये रखती है या बनाये रखने की कोशिश करती है, मेरा अनुभव कहता है कि सुखी लोग सच में तब और सुखी हो जाते है जब वे सब कुछ करके बहुत जल्दी लौट जाते है, पर जिसके हिस्से में दुख जितना ज़्यादा होता है - उसके लिए जीवन निरंतर फैलता जाता है, वृहद होता जाता है और जीवन के निकष, तड़फ, संघर्ष के साथ साँसों की गति मद्धम होने लगती है, बोझ सहने लायक काया भी साथ नही देती, पर अंततः जीना तो पड़ता ही है - तमाम अवसाद और दुख सहकर भी, क्योंकि हम सबके साथ एक पेट है और एक जवाबदेही, अपनी काया को स्वस्थ रखने की जद्दोजहद, और इसके लिये आये दिन बहुधा अपना ज़मीर गिरवी रखकर अपने ही हिस्से के दुख को एक बड़े वितान में देखना, भोगना पड़ता है, क्योंकि अंत तक जीते चले जाने के स्वांग को करते रहना भी जरूरी हो जाता है
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JP University Raghaugarh, Guna, MP
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यह मप्र और देश का एक बेहतरीन अभियांत्रिकी शिक्षा महाविद्यालय था जो अब विश्व विद्यालय में बदल गया है
संगीत लोगों को जोड़ता है, और शास्त्रीय संगीत आपको गुणीजन से मिलवाकर नई दृष्टि देता है, खरगोन के रहने वाले प्रो रजनीश अत्रे जी को संगीत के संस्कार बचपन में मिलें, कक्षा पांचवी से ही अपने पिता , जो संस्कृत के प्रकांड ज्ञाता थे, से संगीत के लिये रुझान और प्रोत्साहन मिला और वे बड़े संगीतकारों से बात करने लगे, भौतिकी जैसे दुरूह विषय की पढ़ाई, और इसी में पीएचडी करके वे प्राध्यापक तो बन गए पर संगीत जो अंदर उमगता था और सुकून देता था, से नाता बना रहा, शायद विज्ञान को व्यवस्थित ढंग से समझकर युवाओं में प्रचारित और प्रसारित करने का जज़्बा भी संगीत की ही देन है
बहुत विनम्र, शालीन और व्यवहारिक रजनीश जी से मिलना Kalapini Komkali के घर भानुकुल में हुआ था, बस हमने देखा ही था, कार्यक्रम के बाद मिल नही पायें, पर फेसबुक से जुड़ गए थे, कई वर्षों से इस वायवीय दुनिया के मित्र रहें है, उनकी पसंद के शास्त्रीय संगीत के गायकों और अलग अलग रागों को सुनकर समृद्ध होता हूँ क्योकि वे लिंक लगाते रहते है , आज उनसे मिलकर दिन बन गया, सफ़र की थकान मिट गई
शिवपुरी से लौट रहा था और थोड़ा सा समय था, तो मैंने फोन करके पूछा कि क्या मिल सकता हूँ तो वे सहर्ष तैयार हो गए, विवि के गेट तक लेने आये - अभिभूत हूँ इस अपनत्व पर, उनके इस कैफ़ेटरिया में मस्त चाय पी, गर्मागर्म कचोरी से तृप्त हुआ और थोड़ी देर में खूब सारी बातें हुईं, अक्सर उन्हें छेड़ता था कि मुझे भी यहाँ कचोरी खानी है चाय पीना है और यह मुराद आज पूरी हो गई
सबको एक बार इस विवि परिसर में जाना चाहिये और देखना चाहिये कि कैसे सुंदर, स्वच्छ और शैक्षिक वातावरण को बनाये रखा जा सकता है
बहुत शुक्रिया और आभार Dr [Pro] Rajneesh Atre जी, जैसे कि मैंने धमकी दी है कि जल्दी ही आऊँगा सीखने और बहुत कुछ समझने तो सच ही आऊँगा
Pawan Gupta - देख लो बाबू तुम्हारे सीनियर से मिलकर आ रहे है, अबकी बार आओ तो अपन आएंगे और युवा छात्रों से भी मुलाकात करेंगे
अवधूता कुदरत की गति न्यारी
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महुआ झरे महुआ झरे
बालाघाट जिले के चार युवाओं के साथ उनके अदभुत बैंड से मुलाकात हुई, मप्र के बालाघाट और जिले के बैहर तहसील के रहने वाले ये विलक्षण साथी अति शिक्षित है, पेशे से इंजीनियर या प्रबंधक पर नया करने और सीखने की चाह इन्हें संगीत में ले आई
जय , विजय, उज्जवल और राहुल ने मिलकर बैंड बनाया, अभी भोपाल में राज्य स्तरीय युवा सम्मेलन में दो दिन इनके लिखें गीत, संगीत और अप्रतिम प्रस्तुति ने मन मोह लिया
[ I had the opportunity to meet four remarkable young individuals from the Balaghat district, who form an extraordinary band. These talented individuals, from Balaghat and the Baihar tehsil, are highly educated professionals—engineers or managers by profession—but their passion for innovation and learning has drawn them to music.
Jay, Vijay, Ujjwal, and Rahul came together to form the band. Their original songs, music, and exceptional performance at the recent state-level youth conference in Bhopal truly captivated the audience.
Jay is heading to Boston, USA, to pursue a Ph.D. in Anthropology, while Ujjwal is off to Leeds, UK, for an MBA.
Best wishes to you all—continue your studies, writing, and musical creativity. ]
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