मुझे खबर थी मिरा इंतज़ार घर में रहा
ये हादिसा था कि मैं उम्र भर सफ़र में रहा
◆ साक़ी फ़ारूक़ी
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मुझे खबर थी मिरा इंतज़ार घर में रहा
ये हादिसा था कि मैं उम्र भर सफ़र में रहा
◆ साक़ी फ़ारूक़ी
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दिल किसी वजह से दुखी है मगर
कुछ भी ऐसा नहीं कि तुमसे कहें,
ज़ेहन उलझा हुआ है कुछ दिन से
लेकिन इतना नहीं कि तुमसे कहें
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ख़्वाहिशें मुख्तसर सी कर ली
इस तरह ज़िंदगी आसाँ कर ली
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हिंदी साहित्य का नुकसान इस समय सबसे ज्यादा चुके हुए और सठियाये हुए बूढ़े कवियों और लेखकों ने किया है और रही सही कसर फेसबुक पर आकर रोज कर रहें है, ये लोग कचरा पत्रिकायें निकालकर सिर्फ और सिर्फ अपनी रूपये की भूख मिटा रहें है और जबरन अपने लोगों को उपकृत कर रहें है, वरिष्ठ कवि महिलाओं के इनबॉक्स में घुसकर अश्लील बातें करते है और उनकी पोस्ट पर अश्लील और हास्यास्पद कमेन्ट करते है, इन नालायकों को शर्म भी नहीं आती क्योकि इनकी औलादें तो विदेशों में बस गई और इनके नेट और फोन के रिचार्ज करती रहती है और ये यहाँ छिछोरी हरकतें कर रहें है ...........
[ एक महिला कवि की पीड़ा - जो एक केंद्रीय विवि से शोध कर रही है, जिससे मै एकदम सहमत हूँ जिसने अभी फोन करके आधा घंटा बात की, वह इतनी त्रस्त है कि उसका बस चलें तो इन सबको बेनकाब कर दें, पर लिहाज और भयवश कुछ बोलती नहीं, बस ब्लाक करते चल रही है, डूब मरो रे हिंदी के कवि और लेखकों - तुम क्या हाथरस और कोलकाता पर बात करके गिरगिट बने बैठे हो यहाँ ]
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नितीन गडकरी ने संसद में कहा कि 60 किमी की दूरी पर है टोल अगर कोई और हो तो फ्राड है, इंदौर देवास के बीच दूरी 37 किमी है पर एक टोल है जो 74 रू लेता है
देवास भोपाल रोड 396 करोड़ में बना था, अब तक सरकार 1450 करोड़ टोल से कमा चुकी है और इसका ठेका 2032 तक का है और देवास भोपाल की 150 किमी की दूरी में 3 टोल है और एक बार का टैक्स 200 रु लगता है
तो क्या अब टोल देना बंद नही कर देना चाहिये पर टोल वालों के गुंडों से लेकर प्रशासन और पुलिस नागरिकों को ही दबाते है
सरकार से बड़ा बनिया और बदमाश कोई नही है
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फुलै फुलै चुन लिये ||
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गौहर रज़ा की किताब 01 अगस्त 2024 को 313 ₹ में प्री बुक हुई, कल पता चला कि अब वह 213 ₹ में मिल रही है
दोस्तों की किताबें थी तो पूरी कीमत पर और 100/- ₹ डिलीवरी चार्ज देकर भी खरीदी, अचानक प्रकाशक किताबें आधी कीमत पर बेचने लगा, फिर दस रुपये में कर दी, फिर दीवाली आई तो 5000/- ₹ में 500 किताबों का सेट बेचने लगा और दोस्त अपनी रचनात्मकता को कूड़े में बिकता देखते रहें, कुछ ने तो लेखन से तौबा कर ली
एक प्रकाशक 15 अगस्त और राखी के पुनीत अवसर पर 24 से 60 % की छूट के साथ किताबें बेचने लगा, तो दूसरा कुरियर फ्री कर 70 % तक बेचने पर उतर आया
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ध्यान से समझिये कि
◆ प्रकाशक से तुरंत छपने पर हम महंगी किताबें ले रहे है, थोड़े समय बाद लेंगे तो 70 % की छूट मिलेगी, अमेजॉन पर और भाव कम हो जायेंगे
◆ याद रखिये कि ये किताब है - कोई चाय या पकौड़ा नही कि कड़ाही से उतरते ही गर्मागर्म भकोस लिए जाए
◆ प्रकाशक ने जितना कमाना था, कमा लिया - अब वह पुस्तक मेले 2025 के लिये नये मुर्गे, मुर्गी खोज रहा है, बड़ा लेखक है तो बकरे टाइप महंगे लेखक - जिनका कूड़ा छापकर गोदाम भरेगा और पुराना माल दस रुपये, दीवाली के सेट बनाकर, या 60 - 70 % छूट के साथ आपकी रद्दी बेचकर अपनी जगह साफ करेगा दिल्ली, गाजियाबाद, लखनऊ, बनारस, प्रयागराज, जयपुर, पटना, भोपाल, इंदौर या किसी नदी नाले के किनारे बसे कस्बे में
◆ उसे जितना कमाना था, उसने कमा लिया, अब जो मिलेगा - वह बोनस है, मतलब दस रुपये में बेचकर भी वह सुखी है - सोचिए, यह नही कि अपने आसपास के स्कूलों में ही दे दे बच्चों को पढ़ने के लिए
◆ 60 से 70 % की छूट मतलब कितना फ़ायदा है - यह आप सोच रहे है कि क्या गणित है और फिर भी हमेंशा भिखमंगो की तरह रोता रहेगा कि "किताबें नही बिक रही" - ज्ञान पेलेगा - कागज़, स्याही, प्रिंटिंग, पैकिंग, डाक खर्च और ना जाने क्या - क्या, रॉयल्टी की बात कभी नही करता धूर्त
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और यहाँ लेखक की बात सिर्फ इतनी कि फैबइंडिया के खादी के झब्बे और पाजामे पहनकर सोशलिस्ट, कम्युनिस्ट बनेंगें और किताब की कीमत 500 से 800 रखेंगे और जब लौंडो की तरह लाखों की बाइक पर दुनिया या लद्दाख घूमने निकलेंगे तो माइकल जैक्सन की आत्मा या पेरिस की फैशन इंडस्ट्री शर्माकर डूब मरेगी
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और अंत में प्रार्थना
1 - मित्रों को आपको तय करना है कि कड़ाही से गर्मागर्म निकली किताब भकोसना है या दीवाली के सेट में 5000 में 500 किताबें मुफ्त डिलीवरी ऑफर लेना है - रज़ा, निर्मल वर्मा का सेट, या किसी द्विवेदी, त्रिवेदी, चतुर्वेदी, पँचमवेदी, तिवारी, शर्मा, पांडे, दूबे, चौबे, छब्बे, अठ्ठे, खाजपेयी, सिन्हा, श्रीवास्तव, वर्मा, सोलंकी, मालवीय, हुजूर, कुजूर, एगा, बैगा, सिंह, जाट, गुर्जर, विश्नोई या यादव की किताबें एक साथ लेकर गर्मागर्म खानी है, आत्म मुग्धता के दौर में बिल्कुल भी वो किताबें ना लें जिनसे आपका कोई वास्ता ना हो या वो महज आपके फेसबुकिया दोस्त हो और साहित्य - विचारधारा के नाम पर गोबर गणेश
2- हिंदी के धूर्त प्रकाशकों से बचकर रहिये - जो पुस्तक मेले में अपने ही लेखक से डेढ़ पाव पेड़ा भी मंगवा लेते है - "कवि की किताब के केश लोचन समारोह" के समय और बचा हुआ आधा पेड़ा बेशर्मी से अपने गल्ले में डाल लेते है, बिसलरी की पानी को बोतल छुपा लेते है दिल्ली में
3 - स्टॉल बुक हो गए है, दिल्ली में लाखों की कीमत है इस बार और प्रकाशकों की जमात देशप्रेम के जज्बात भड़काकर आपको गोदाम का सड़ा माल खपाने में लगी है
4 - अभी गणपति, फिर दुर्गा, फिर दशहरा, दीवाली, क्रिसमस सब आ रहा है आहिस्ता - आहिस्ता, भयानक ऑफर आने वाले है हिंदी साहित्य के कचरे के, 50 की उम्र में 150 किताबें छपवाकर बैठे है माड़साब लोग्स, 1018 में छपी किताब को बंदरिया की तरह छाती से चिपकाकर रो रहे है कोई नही पढ़ रहा मेरे मर्सिया को, इसे सिंधु घाटी की सभ्यता में सेटिंग कर पुरस्कार जुगाड़ा था मैंने, खरीदोदोदोदोदो
5 - और हाँ, प्रकाशकों के नम्बर और पोस्ट्स से आती सुंदरियों की खिलखिलाती हँसी से ज़रा बचकर, ये गोदाम खाली करवाने में माहिर है
और अंत में "आय लभ यू मेरे हिंदी के डार्लिंग प्रकाशक"
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