"नफ़रत से भरी इस दुनिया में हमें आशा नहीं छोड़ना चाहिए, दुख से भरी इस दुनिया में हमें सपने देखने की हिम्मत करनी चाहिये"
◆ माइकल जैक्सन
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कल रात से डाइट में
◆ आधी रोटी
◆ आधा कटोरी रबड़ी
◆ एक गुलाब जामुन
◆ एक बंगाली मिठाई
◆ खोवे की दो मिठाई
◆ एक कटोरी खीर
◆ दो पापड़ एवं अचार
◆ डेढ़ पाव सेव
◆ आधा कटोरी मिक्चर
◆ आलू केले के चिप्स दो कटोरी
◆ दो कप सलाद
◆ आधा लीटर कोल्डड्रिंक
◆ डेढ़ सौ ग्राम मोदी पकौड़े
◆ दो चम्मच चटनी
◆ टमाटर सॉस
◆ केले, पपीते, आम, पाइनापल, लीची, कीवी, खजूर और मौसमी फलों की मात्रा कम कर दी है
नोट - ड्राय फ्रूट्स और एक लीटर हल्दी वाला दूध और 6 अंडे कम नही कर सकता नही तो कुपोषित हो जाऊंगा, ये कम करने का कोई बोलना मत
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अब ज्ञानीजन बोलें - 100 ग्राम कम हो जायेगा ना
क्या फ़ायदा सरेआम इज्जत उछल जाए, इससे तो बेष्ट है कंट्रोल यारां कंट्रोल
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जो ससुरे कल तक बांग्लादेश विशेषज्ञ थे, आज सगरे के सगरे ओलंपिक के नियम, कुश्ती के परम ज्ञाता, डाइटीशियन और फिजियोथेरेपिस्ट बन गए है
ज्जे बताओ भैया और भैंजी लोग्स - तुमसे घर में दो बाल्टी तो पानी भराता नही, एक क्विंटल का बाट बनकर बैठे हो - पूरे मुहल्ले वाले गेहूँ तौलने ले जाते है भैया को और आंटीजी आप तो ज्ञान मत ही दो, क्योंकि आपके वजन से शुगर और बीपी दोनो पारा तोड़कर बाहर आ गये है, दिनभर हाय-हाय पूरा मुहल्ला सुनता है आपकी, VLCC जाकर पति को गंजा कर दिया पर एक ग्राम कम नही हुई आप
बात बॉडी शेमिंग की नही पर जो रायता आप लोग फ़ैला रहें हो और हिसाब मांग रहें ना कोच, स्टॉफ और गये हुए अधिकारियों के दल से - आपकी हैसियत क्या है, किस आधार पर आप हिसाब मांग रहें है और यह अथॉरिटी दी किसने आपको, दसवीं - बारहवीं पास या दो कौड़ी की राजनीति, समाजशास्त्र या हिंदी में चाटुकारिता से शोध करके कौन से ज्ञानी बन गये तुम
हिंदी के सुकोमल और सुकोमलांगी कविगण आप तो अपना ध्यान सेटिंग में लगाओ - उसमें तो आप डायमंड ले आते हो - गली या मुहल्ला हो या मालदीव, फिर काहे यहाँ भसड़ फ़ैला रहें हो, ज़रा सस्ते में निपटा लो - भारत और पेरिस में है ना एक पूरी समिति, दुनिया भर में अदालतें और मीडिया के दल्ले - तुम काहे मुंह काला कर रहे है यहाँ
सीधी बात है गुरू, ज़्यादा ज्ञान तो पेलो मत, तुमसे चार महीने में चालीस ग्राम कम ना हो रहा वज़न और उसे एक घण्टे में सौ ग्राम कम करने का गुर बता रहें हो, आंटीजी आपने खुद तो आदिवासी तेल पेलकर पूरे घर को बदबू से भर दिया और आंटीजी कह रही "बाल थोड़े और काट देना थे" हद है मूर्खता की
अबै, घोलचू के घोल और टूटी स्लीपर के घिसे हुए काँटों - निकलों ना अब, बन्द करो बकर तुम्हारी - ससुरों रेलवे का टिकिट तो नेट पर बनाना सीख लों या अब तुमको भेजें ओलंपिक में
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