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Man Ko Chiththi - Post of 27 August 2024

खुद को सज़ा मत दो, शायद हम जिंदगी के इशारों पर नाचने के लिए बने हैं - कठपुतली की तरह और इस सफ़र में हमें खुद के ही साथ की ज़रूरत है, हम भले ही जीवन भर सुख में जीते रहें हो, नफ़रत की जेल में रहे हो या पछतावे की पीड़ा से वाबस्ता रहे - सबको अपनी सज़ा भुगतनी ही पड़ती है और खुद का साथ हमें अंत में मुक्त करेगा
***
यूँ तो यह बात सही है कि हमारी प्रसन्नता और दुख हमारे अपने हाथ में है और किसी और को ना हमें देना चाहिये - ना ही किसी से बाँटने की ज़रूरत है पर हम सब मनुष्य है और किसी ना किसी तरह से इस मायावी झँझट में फँस ही जाते है
अपेक्षा, उपेक्षा, मूर्खों की तानाशाही, अयोग्य लोगों का सत्ता पर काबिज़ होना, अनपढ़ों एवं कुपढ़ों का बढ़ता साम्राज्य, प्रेम और वासना जनित दुष्चक्र, लगातार बदलते स्वार्थी रिश्ते, घटिया किस्म की ओछी राजनीति, अपनी लाईन बड़ी करने के बजाय दूसरों को नीचा दिखाकर खुद को बेहतर साबित करने की गलाकाट होड़ और लगातार स्तरहीन होते जा रहें संवाद हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते है, सबसे दुखद यह है कि जिन मूल्यों या जीवन मूल्यों की बात करते है वे इनके भीतर तो निश्चित रूप से कही नज़र नही आते और ये ही वो लोग है जो मूल्यानुगत बातों का ज़खीरा लेकर संसद से सड़क तक काबिज़ है
ये सब हमें अशांत करते है, क्षुब्ध करते है और हम चाहकर भी इनसे दूर नही हो पाते, जाने - अनजाने ही ये हमारे विश्वास और आस्थाओं पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालते है, सचमुच में बदलते और कठिन होते जा रहे समय में हमारे लिये मजबूरी यह है कि हमें ईसा की तरह अपने सलीब के साथ इन सब भोथरी और नुकीली कीलों को भी ढोना ही है, ये नियंता नही पर इस विभीषिका वाले दुष्ट समय में इनसे निज़ात पाना भी दुष्कर है
बेहतर है अपने - आपको शांत रखकर सूझबूझ के साथ जितना दूर रह सकते है इन नेताओं, लोगों और परिस्थितियों से उतना दूर रहने की कोशिश करें, बजाय बकचक करने के बाहर निकल जाये, सामना ना हो यह प्रयास करें, रास्ता बदल लें, सामने पड़ने पर प्रणिपात प्रणाम कर दूर से निकल लें - इसके अलावा मुझे तो कोई और रास्ता नज़र नही आ रहा - क्योंकि इस संगठित मवाली समुदाय से समकालीन मुद्दों, साहित्य, बदलाव, राजनीति और समझ पर बहस करने से आपको ही कीचड़ में उछाल देंगे ये लोग और खिलखिलायेंगे - क्योंकि ये तो उसी में रहते आये है
बहरहाल, शांत रहो, दिल - दिमाग़ को सुप्तावस्था में रखकर अपने मार्ग को प्रशस्त करते हुए एकला चलो रे की तर्ज़ पर चलते चलो, इसी में सबका भला है

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