अक्सर हम दुविधा में रहते है, हम यात्रा को ही प्रारब्ध समझ लेते है, किसी और को कष्ट देने और पीड़ा पहुंचाने को ही मकसद मान लेते है जीवन का, और ऐसे लोगों से संसार भरा पड़ा है, तब कोई आता है देवदूत की तरह और मुस्कुराकर कहता है -"मेरी और तुम्हारी यात्रा की क्या बराबरी, मेरा तो मुक़ाम आने ही वाला है, तुम आराम से अपने सामान के साथ यात्रा अनवरत जारी रखो"
जानते है यह सामान है - द्वैष, ईर्ष्या, क्रोध, प्रतिस्पर्धा, अपराधबोध, अवसाद, तनाव और वो सारी नकारात्मकता की पोटलिया जो हम ताउम्र बांधे-बांधे घूमते है और इनका बोझ उठाते - उठाते हम थकते ही नही, बल्कि मुस्कुराना भूल जाते है, जीवन एक ही है और हम सबकी मंज़िल कब आ जायेगी किसी को नही पता, सहयात्रियों की भी चिंता छोड़ दीजिये, अपने - आप से तो ख़ुश रहिये, जीवन जी लीजिये, बाकी सब तो व्यर्थ है ही
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कई बार हम दूसरों, तीसरों और इतर लोगों में इतने खो जाते है कि अपने आप की ओर ध्यान नही रहता, दूसरे की मदद, तीसरे के काम, चौथे के फोन आने पर जी जान से जुटकर अपने सारे संपर्क खंगालकर हम लग जाते है और इस तरह से धीरे-धीरे अपनी ही ज़िंदगी से बहुत दूर निकल जाते है
इस कदर टूटते है कि भरोसे, अस्थाएँ, उम्मीदें, प्रयास, प्रभाव, आभा, उत्थान, और रिश्तों पर से भी विश्वास टूट जाते है और अंत में सब दूर से विलग होकर अपने में सिमट जाते है
यह टूटना और अपने भीतर बिखरना ही असल जीवन है और जीवन की सीख - कोई एक दिन आता है और हमारे सामने आईना रख देता है, हमारे भीतर की दरकती हुई आवाज़ सुना देता है और फिर लगता है कि हम कही के नही रहें है - यह जकड़न फिर हमें एक पोस्ट ट्रामा इफेक्ट सी लगती है और इस सबके सायों से गुजरना और याद करना बहुत भारी पड़ने लगता है
और अंत में सिर्फ इतना समझा रहा हूँ अपने आपको ही आज कि एक समय के बाद किसी की भी कोई भी मदद ना करें, यदि आप अपना टूटना महसूस नही कर रहें हैं, तो टूट जाइये एक बार, सिमट जाइये एक बार, भरोसा - आस्थाओं और उम्मीदों को एक बार इतनी बुरी तरह से बिखर जाने दीजिये कि आपको संसार से घृणा हो जाये
अपने आपको आप एक खोल में डालकर महीनों या वर्षों तक सुप्तावस्था में पड़े रहें, तभी नवांकुर निकलेगा, नवाअंजोर होगा, जीवन का उदभव होगा, जितनी कठिन परिस्थितियों में बीज से कोपल को ज़मीन - पत्थर तोड़कर आना होगा - बगैर खाद, मिट्टी और पानी के - पेड़ उतना ही मजबूत बनेगा और उसकी शीर्ष डाल पर पत्तियां हमेंशा हरी बनी रहेंगी - जिन्हें देखकर किसी तूफान में घिरे दूर पड़े अंतिम सांसें लेते आदमी को जीने की प्रेरणा मिलेगी
सबसे बुरे समय के लिये अपने मितान खुद बनिये और यही सबसे महत्वपूर्ण है, एक बार बंद करके देखिए सबकी या किसी की भी मदद करना और सिर्फ अपने आप पर ध्यान देना, दूसरों की परेशानियां आपको मार रही है, अपने आपको पूछिये मेरे साथ मैं क्या गलत कर रहा हूँ, मैं इसे कैसे रोकूँ, हममें से किसी के पास जादू की पोटली नही, हम सिर्फ़ गलत और फिर सही करके ही सीख सकते है, अपनी सारी क्रियाओं को शिथिल कर दें, अपने - आपको देखें, समझे, महसूस करें, किसी भी विचार या बात को अनदेखा ना करें, इस बात से ना डरें कि आप अपने में सिमटेंगे तो टूट जायेंगे
जीवन टूटने से ही शुरू होता है, जब तक दर्द मारेगा नही - तब तक आप जीने को नही सीख पायेंगे, कोशिश करिये कि आप टूट जाये एक बार
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डर बड़ी चीज़ है
डरना और डर दिखाना बहुत ज़रूरी है, आज यदि आप डर नही रहे या डर नही दिखा रहे किसी को तो आपका जीना व्यर्थ है
इस समय डर का धँधा, उद्योग और व्यवसाय सबसे बड़ा है और जो इसमें माहिर है वही शीर्ष पर है
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सवाल सिर्फ जाति का नही जेंडर और वर्ग वर्ण का भी है, जो लोग जाति के सवाल उठा रहे है वे जरा ज्ञान दें कि संघ में आजतक सरसंघ चालक गैर ब्राह्मण या महिला बनी क्या या कोई जिला प्रचारक महिला बनी, महिलाओं को सिर्फ भोजन बनाने के लिये और ज़माने भर के टुकड़ तोडू लोगों के खाना बनाने के लिये ही इस्तेमाल किया गया है ?
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आज से 15 दिन बाद देश को आज़ाद होकर 77 वर्ष हो जायेंगे और शर्म की बात है कि राजधानी हो या औद्योगिक राजधानी मुंबई हम पानी के निकास की व्यवस्था नही कर पाएं है और देश के युवा पानी के जमाव से मर जाते है, ट्रैफिक जाम घण्टों रहता है
इस पाप में सब दोषी है ना कॉंग्रेस को बख़्शा जाये ना भाजपा को - इन हरामखोर नेताओं ने आम आदमी का जीवन बर्बाद कर दिया है, समय आ गया है कि जनता अपने प्रतिनिधियों को सड़क पर खींचकर लाये, नँगा करें और इसी पानी में डुबोकर मार डालें ताकि आइंदा कोई ऐसी हिम्मत ना करें
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जितना जलवायु परिवर्तन जलवायु परिवर्तन करोगे उतना ही सत्यानाश होगा
जितना लिखोगे, छापोगे, इंटरनेट का इस्तेमाल करके ज्ञान और प्रवचन दोगे उतना ही सत्यानाश होगा
जितने सम्मेलन करोगे, हवाई यात्राएँ करके भाग लेने जाओगे उतना ही सत्यानाश होगा
जितने आंकड़ें इकठ्ठे करके कॉपी पेस्ट ज्ञान पेलोगे, फर्जी बुद्धिजीविता से आतंकित करोगे उतना सत्यानाश करोगे
जितना दिनभर नेट का इस्तेमाल करके सर्फिंग करोगे और की बोर्ड तोड़ोगे उतना ही सत्यानाश होगा
जितनी कहानी, कविता और बकवास लेख लिखोगे उतना सत्यानाश होगा
बन्द करो यह सब बकवास और प्रकृति को प्रकृति के हिसाब से मैनेज करने दो, तुम 60 - 70 की उम्र में करोड़ो वर्षों के विकास, सभ्यता मतलब Evolution को चुनौती देकर सर्वेसर्वा बन जाना चाहते हो, कबाड़ा करके रख दिया है तुमने संसार का
विकास शब्द ही विनाश बन गया इससे बड़ी दुर्गति और क्या होगी , सारे आंदोलन, धरने, रैलियों और जनजागृति के कार्यक्रमों ने दुनिया को रहने लायक नही छोड़ा है
कोई फर्क नही पड़ रहा तुम्हारे लिखें कूड़े - कचरे, फेलोशिप्स, यात्राओं, शोध, आंकड़ों, सेमिनार्स, गोष्ठियों, प्रवचनों, ऑनलाइन बैठकों, दस्तावेजीकरण, वीडियो, फिल्मों, और उस सबसे जो तुम सिर्फ़ अपनी आजीविका चलाये रखने के लिये कर रहें हो
मूल रूप से हम सब स्वार्थी और विध्वंसकारी है
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