|| कलाकार को कलाकार ही रहने दें ||
कोई प्रमोद रंजन नामक सज्जन है जो पता नहीं क्या अनर्गल प्रचार कर रहें है लता जी के बारे में, कई सारे उद्धरण देकर अजीब तरह की व्याख्या कर रहें हैं पता नही छुपा हुआ एजेंडा क्या है इनका
किसी भी गायक का यह निजी निर्णय है कि वह क्या गायें और क्या नही, किसको पूजे और किसको नही , जब वो अपनी जिंदगी का संघर्ष कर रही थी तब कहाँ थे तुम लोग और तुम्हारा मूवमेंट, लता से बड़ा और लोकप्रिय गायक था - माइकल जैक्सन, उसके पास चले जाते महाराज, करोड़ो रुपया लेकर - बहुत गरूर है ना उस लोकशायर को रुपयों का, माइकल जैक्सन बढ़िया पॉप बना देता - सब पर अम्बेडकर, ज्योति बा, पेरियार या अन्य पर भी मतलब दिमाग का दही है या गोबर
लता ने कई अस्पताल बनवाये, बड़े काम किये, संगीत को जो दिया वह कोई नही दे सकता और ये प्रमोद रंजन जैसे मूर्ख लोगों की बात को पढ़े लिखे उजबकों की तरह से लगे कॉपी पेस्ट करने, ससुरे किसी की मौत में भी जाति खोजकर सबको बेवकूफ बना रहे है, गधे इसमें भी दलित - सवर्ण एंगल खोज लाये जैसे संघी और भक्त शाहरुख की दुआ को थूक बता रहें - क्या फर्क है तुममे और उनमें , कभी आगे और समकालीन समय के बारे में भी सोचो वैसे ही देश का सत्यानाश कर दिया है विचारधाराओ ने
कोई फर्क नही प्रमोद और उसकी पोस्ट करने वालों में और इन अंध भक्तों में - लता ने सावरकर को आदर्श माना या ट्वीट किया - क्या आप महाराष्ट्र के बारे में या तत्कालीन परिस्थितियाँ जानते है और ये सावरकर विवाद भी तो बाद का है
कमाल है कॉलेज से लेकर तमाम जगहों पर आप आसीन हो गए इतनी अक्ल नही आई कि मरने के बाद किसी को कोसते नही है - आप अमर पट्टा लिखाकर आये है क्या और इतना शिष्टाचार नही क्या आपमें
ये दलित एजेंडा लेकर हमेंशा दाल भात में सवर्ण और ब्राह्मण ढूंढने वाले दिलीप मंडल - कमंडल टाईप लोग भयानक कुंठित और व्याभिचारी है, इंडिया टूडे का सेक्स विशेषांक उदाहरण है पब्लिक डोमेन में ; लता ने तीस हजार गाने गाए तो तीस लाख मना किये यह भी सनद रहे और क्यों गए थे, जरूरी है अम्बेडकर को गवाया जाये, मतलब आप अम्बेडकर जैसे विद्वान को गानों में ढाल लें और सड़कों पर बैंड बजवाये, "आमी काका बाबा नी पोरिया की तरह नाचें" - हद है मतलब, कमाल की अक्ल है और कौन है वो लोकशायर जो हर बात को भाँड़ की तरह ले आना चाहता है गानों में, गानों का स्तर और उनके उपयोग को लेकर आप जानते नही क्या, जिस बुद्ध और अम्बेडकर ने मूर्ति पूजा का विरोध किया उनकी मूर्तियाँ लगाकर हवन पूजा शुरू कर दी, अम्बेडकर के सँविधान को ही समझ लेते या उनकी बात ही मान लेते, "अप्प दीप भवो" के बजाय लाठी लेकर निकल पड़ते हो कही भी
और ये है कौन प्रमोद रंजन जो प्रमाणपत्र बाँट रहा है और रायता फैलाने वाले तो है ही विशुद्ध मूर्ख - एक सुर तो लगाकर दिखा दो कम्बख्तों, लता या किसी हस्ती की बराबरी नही कर सकते तो घटिया एजेंडा लेकर बैठ गए और कुंठित बुद्धि से रायता फैला रहें हो - एक कलाकार कलाकार होता है और उसे उसी पैमानों पर आँका जाना चाहिये उसकी निजी जिंदगी में झाँकने का हक दिया किसने आपको - याद कर लें गाँधी, नेहरू, पटेल, अम्बेडकर और तमाम संविधानिक बहसों के भी विवाद - बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
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