3 - 4 बड़े गाजर, एक चुकंदर, सरसो की दाल, काला नमक, सेंधा नमक और दो चार खड़ी लाल मिर्च को एक छोटी सी मटकी में खूब सारा पानी मिलाकर रख दिया धूप में 5 दिन
अप्रतिम स्वाद, पाचक और झकास
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"आपकी कविता की घटिया 13 किताबों का आखिर साला कितनी बार लोकार्पण होगा कविराज" - आज पूछ लिया मैंने, सत्रहवीं बार उसने सूचना लगाई थी और टैग किया था टैगड़े ने
"जी, जी, जी भाई साहब बो क्या है कि भड़भूँजे की कड़ाही जब तक गर्म रहती है और खुशबू से जैसे ग्राहक खिंचे आते है वह तब तक चने, गेहूँ या परमल, मक्का भुजंता रहता है - वैसे ही कवि का है जब तक सँग्रह की कॉपी प्रकाशक भेजता रहता है, हर शहर में लोकार्पण करते रहो" - बड़ी बेशर्मी से उसने कन्फेस किया
उस दिन हैदराबाद में लोकार्पण था जहां कांग्रेस, बसपा, सपा, दलित और सवर्ण के साथ सिख, जैन, तमिल, सिंहली, इनकम टैक्स के चपरासी और विवि के प्राध्यापक भी उपलब्ध थे भाषण पेलने को, सबको कचोरी, कड़क इडली, वड़ा पाव, छोला भटूरा, चिकन के बासी टुकड़े सजे हुए, इमली की चटनी और सड़ा कटा पपीता दिख रहा था कमरे के बाहर - कवि क्या ससुरा आलू था पक्का ये ससुर
लाईवा के इस आयोजन में जा नही पाया, भगवान ने उस दिन इज्जत रख ली थी मेरी
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