गद्य के गुर - Aamber Pandey
गद्य कविता की तरह नहीं लिखा जाता। कवि अक्सर गद्य लिखते समय यह भूल करते है। वे भावोच्छ्वास में गद्य रचना पूरी कर लेना चाहते है। यह सम्भव नहीं होता और कवि कुण्ठित हो जाता है। गद्य में कविता की तरह भाव या विचार की तीव्रता निरंतर नहीं रहती और न ही कविता का रचनात्मक सौंदर्य वहाँ सतत रहता है। गद्य स्थापत्य की तरह होता है जहाँ सौंदर्य के स्थल तो होते है मगर हर जगह सुंदरता ही सुंदरता नहीं होती। लेखक इन स्थलों तक पहुँचने का मार्ग बनाता है और इन सौंदर्य स्थलों का निर्माण करता है। मार्ग जितना निलंकृत और सीधा होता है सौंदर्य के स्थल उतने ही अधिक असाधारण लगते है। इस प्रकार गद्य का मन्दिर बनता है।
कविता मूर्तिकला की तरह सौन्दर्य को अपने पूरे कलेवर में धारण कर सकती है। गद्यकार का यदि ऐसा ही आग्रह हो तब गद्य बरॉक बन जाता है। बरॉक मतलब अत्यधिक सजावटी या किसी विशेष इंद्रिय के संवेगों की तरफ़ मुड़ा हुआ। गद्य में इंद्रिय का स्थान पाठक की कल्पना ले लेती है और गद्यकार उसकी तुष्टि के लिए उसे अधिक से अधिक जानकरियाँ देता है, सौंदर्य के स्थलों पर स्वयं अंगुलि रख रखकर उसे बताता है। यह शुरू में तो चमत्कारिक लगता है, पाठक को सम्मोहित कर लेता मगर धीरे धीरे इसकी पाठक की चेतना सुप्त करनेवाला होता है। यह विचार को जन्म नहीं देता। ललितधर्मी होना इसकी सीमा बन जाती है।
कविता के उलट गद्य की पंक्ति में विचार और पूर्णता अवश्य है। गद्य कविता की तरह अपनी अन्विति पर आश्रित नहीं होता। गद्य में प्रत्येक पंक्ति एक पूरा विचार धारण करती है पूर्ण होती है भले उसका महत्त्व पूरी रचना में बहुत कम होता है या बहुत अधिक। अच्छे गद्य में कोई पंक्ति विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं होना चाहिए उसी तरह जिस तरह कविता में कोई पंक्ति विशेष महत्त्व की नहीं होना चाहिए। जो सुंदर रचना चाहे गद्य हो या कविता आलोचक का उसके मर्मस्थान खोजना जितना मुश्किल करती है उतनी महान होती है। Quotes are quotidian and a good writing fights it as much as it can.
कविता गद्यकार की युवावस्था है, ख़राब कविता उसका कैशोर। कवि बड़ा होकर गद्यकार बनता है। यही कारण है कि अच्छे गद्यकार से लोग जलते है। अच्छे कवि के प्रति वे सदाशय होते है क्योंकि वे उसे अनायास घटनेवाला समझते है मगर अच्छे गद्य के पीछे श्रम, धैर्य और विचारों की स्पष्टता मिलती है। अच्छी दिखनेवाली कविता ढेरों होंगी मगर समझ में आनेवाली स्पष्ट कविता दुर्लभ है। अच्छा गद्य तो अत्यंत दुर्लभ है।
काव्यात्मक गद्य जैसा कुछ नहीं होता, अस्पष्ट लेखन की लोग काव्यात्मक कहकर प्रशंसा कर देते है क्योंकि वह उन्हें समझ नहीं आता और वे इसे स्वीकारना नहीं चाहते। काव्यात्मक कविता क्या हो सकती है! जो रचना भावतिरेक से जितना दूर रहती है, भावों से भी एक सम्माजनक दूरी रखती है और विचार वहन करने को ख़ुद का काम नहीं मानती वह ही श्रेष्ठ हो सकती है क्योंकि वह अपने सन्तुलन से भावना या विचारों से पाठक का चित्त रंगने के बजाय वह रंग या विचार या भाव उसमें उत्पन्न करती है। ऐसे अनुभव में पाठक की सृजनात्मकता की, उसके जीवन और विचारों की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यहाँ लेखक और पाठक दोनों रचनात्मक कर्म करते है।
Gegenüber den Dichtern stehen die Philosophen unglaublich gut angezogen da. Dabei sind sie nackt, ganz erbärmlich nackt, wenn man bedenkt, mit welch dürftiger Bildsprache sie die meiste Zeit auskommen müssen.
Durs Grünbein: Das erste Jahr, 2001
(कवियों के विपरीत दार्शनिक कितने सादे ढंग से आकर्षक लगते है बल्कि दार्शनिक जैसे निर्वस्त्र होते है, बहुत थोड़े बिंबों से काम चलाने के कारण दयनीय रूप से निर्वस्त्र।- दुर्स ग्रूनबेन, वह प्रथम वर्ष, २००१)
बिम्ब या imagery गद्य की निर्बलता को उजागर करता है। जो आदर्श दार्शनिकों के गद्य का है वही अन्य गद्यकारों के लिए होना चाहिए। स्पष्टता ही बहु ध्वन्यार्थक हो सकती है। स्पष्टता ही बहुअर्थात्मक हो सकती है। इसका कारण है प्रथम अर्थ की प्राप्ति के बाद ही पाठक दूसरे फिर तीसरे ऐसे अनेक अर्थों का संधान करता है। जब प्रथम अर्थ ही स्पष्ट न हो तब गद्य और केवल गद्य ही क्यों बल्कि कविता भी पराजित होती है। बिम्ब इसलिए कम होने चाहिए और विचार से उनका अद्वैत होना चाहिए।
कई बार गद्य में ( और कविता में भी) हम देखते है बिंबों की लेखक एक माला बना देता है। पढ़नेवाला भी मुग्ध हो जाता है मगर तब तक बिम्ब में छलांग न हो, वह आपके मनोलोक को न बदल दे (paradigm shift) केवल सुंदरता के लिए छवियों का संग्रह करना निरर्थक है।
आकार में छोटी होने के कारण कविता में यह चल जाता है। वह जल्दी ख़त्म हो जाती है और पाठक को एक प्रकार की विश्रांति का अनुभव होता है जिसे कई बार वह काव्यात्मक सौन्दर्य का साक्षात्कार समझ लेता है। गद्य लम्बी विधा है और अस्पष्टता का वहन पाठक यहाँ नहीं करता। यही कारण है कि कवि का निकष गद्य कहा जाता है क्योंकि यहाँ वह वह निरावरण होता है। यहाँ धोखा देना मुश्किल होता है। गद्य कविता की तरह अलंकार भी धारण नहीं करता।
यदि कविता किसी बात को पूर्णरूप से कहने का सबसे छोटा मार्ग है तो गद्य ऐसी विधा है जहाँ मूल पाठ और उसके अर्थ में सबसे कम दूरी है। गद्य का अर्थ उस तरह से हम नहीं लगा सकते जैसे कविता की अन्विति और अर्थ लिखा जा सकता है। गद्य के पाठ और उसके अर्थ में एकात्म है।
इस तरह से देखे तो गद्य आध्यात्मिक होता है और कविता ऐहिक।
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