Skip to main content

Kuchh Rang Pyar ke, Gestalt Prayer, Social Media and 14 वर्षों की अनवरत यात्रा Vikas Samvad Yatra - Posts from 26 to 30 Nov 2021

 Gestalt Prayer

I do my thing and you do your thing
I am not in this world to live up to your expectations,
And you are not in this world to live up to mine
You are you, and I am I,
and if by chance we find each other, it's beautiful
If not, it can't be helped.
◆Fritz Perls,
"Gestalt Therapy Verbatim", 1969
***

14 वर्षों की अनवरत यात्रा


2006 की बात है, जब एक अंतरराष्ट्रीय फंडिंग एजेंसी में राज्य प्रमुख के रूप में भोपाल में ज्वाइन किया था और देश और प्रदेश की कई बड़ी और बेहतरीन संस्थाओं के साथ काम करने का मौका मिला था
मीडिया में रुचि होने के कारण विकास और जनमुद्दों पर पैरवी करने वाले एक शैक्षिक संस्थान के साथ भी जुड़ा था, हम मित्रों ने यह महसूस किया था कि मीडिया में विकासात्मक मुद्दों की तुलनात्मक रूप से कमी थी - लिहाज़ा मीडिया के साथ काम करने की जरूरत थी, सो हमने विकास सम्वाद की सार्थक और जरूरी पहल के बाद काम आरम्भ किया - जिसमें से एक वार्षिक गोष्ठी करने का भी महत्वपूर्ण काम था
इस गोष्ठी में विकास के अलग - अलग मुद्दों पर चर्चा गहन, गम्भीर, तथ्यपरक, सार्थक बहस, जानकारियों का आदान - प्रदान और साझी समझ बनाने की कोशिश होती रही
गत 14 वर्षों में विकास सम्वाद ने मप्र के अलग - अलग जगहों पर ये बड़े आयोजन किये जिसमे पचमढ़ी, बांधवगढ़, ओरछा, महेश्वर, छतरपुर, मांडव, कान्हा, चंदेरी से लेकर - उन जगहों पर जहां मुद्दा है - और 100 लोगों के लिए माकूल व्यवस्थाएं हो सकें, के आयोजन किये जो बहुत सम्भावनों भरे थे और सार्थक परिणाम भी निकले इन सबके ; इस बार का आयोजन मोरटक्का, ओम्कारेश्वर में था
इस तरह के आयोजनों में देशभर से प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े पत्रकार मित्र, विकास के मुद्दों पर काम कर रहें साथी, पत्रकारिता विवि के प्राध्यापक और युवा छात्र भी शिरकत करते है ; काफी अनौपचारिक और आत्मीय वातावरण में बातचीत होती है, अभी तक के सभी आयोजन एक से बढ़कर एक हुए है और एक अनुमान के अनुसार लगभग 2000 पत्रकार पिछले 14 वर्षों से लगातार इससे सीधे जुड़े रहें है - जोकि एक बड़ी उपलब्धि है
मैं गत 14 वर्षों से इनसे जुड़ा हूँ और लगातार मीडिया, मुद्दों और विकास की समस्याओं के स्पेस को समझता रहा हूँ, इस दौरान देशभर से कई मित्र बनें, उन्हें मीडिया से जुड़ता और टूटता देखता रहा, अपने प्रोफेशन में बढ़ते, समझते और बड़े - बड़े पदों पर जाते देखता रहा, मीडिया छोड़कर व्यवसाय या खेती में या कार्पोरेट्स में जाते देखता रहा हूँ, मीडिया की राजनीति और अर्थ तंत्र को समझता रहा और कुल मिलाकर समझ आया कि इस तरह के आयोजनों से सबकी साझा समझ तो बनती है, पर जब ये साथी लौटकर अपने मीडिया हाउसेस में पुनः घुसते है - तो बहुत कुछ कर नही पाते और बहुधा इनकी आवाज़ नक्कारखने में तूती के समान होती है , पर इन 14 सालों के कुल सिला यह है कि एक तगड़ा नेटवर्क बना है, विकास के मुद्दे ज़्यादा मुखर हुए है, 2006 में जो पत्रकारिता के छात्र के रूप में जुड़े थे - वे आज बहुत साफगोई से अपनी सीमाओं और नौकरी बचाते हुए बहुत कुछ काम जनोन्मुखी कर रहें है, इन्ही मित्रों ने महत्वपूर्ण किताबें लिखी या राजनैतिक पार्टियाँ ज्वाइन की , छोटे कस्बों से निकलकर जिलों और भोपाल, लखनऊ, पटना या दिल्ली पहुँचे है, महिलाओं का मीडिया में दखल और जुड़ना तुलनात्मक रूप से बढ़ते देखा और इस तरह के आयोजनों में मुखर होते देखा



14 साल लगातार इस तरह के बहुत श्रम और सूझबूझ के साथ आयोजित किये गए आयोजनों से मैंने बहुत कुछ सीखा है - इसके लिए संस्था और उन सभी मित्रों का आभारी हूँ , पर अब आगे यदि ऐसे आयोजनों होते है तो मैं अति आवश्यक होने पर ही हिस्सेदारी करूँगा, मुझे लगता है अब किसी नए पत्रकार मित्र, युवा छात्र या मीडिया के प्राध्यापक के लिए एक सीट खाली करनी चाहिये, 14 वर्ष लगातार भागीदारी करके बहुत सीखा और फिर अब मित्रों का समूह है ही सीखने - सिखाने को यदि कमज़ोर और पुख्ता समझ नही है तो कही चूक रहा हूँ तो ये साथी पुनः सहायता करेंगे यह उम्मीद है
बहरहाल, एक सार्थक आयोजन के लिए सचिन, राकेश, चिन्मय जी, संतोष, मनोज के साथ विकास सम्वाद की पूरी टीम का शुक्रिया


***
भारत में
◆ 35 करोड़ फेसबुक यूजर्स
◆ 53 करोड़ वाट्सएप यूजर्स
ये आँकड़े चौंकाते हैं, थोड़ा और समझे
ये भारतीय लोग यानी प्रतिदिन औसतन ढाई घण्टा सोशल मीडिया पर रहते है यानी एक साल भर में 77 दिन एक व्यक्ति का सोशल मीडिया पर जाता हैं, समझिए इतने लोग सोशल मीडिया पर चिपके रहते है
अब बताईये देश का क्या होगा ? फिर भी मीडिया गलत और भ्रामक सूचनाओं के आधार पर सब पर भारी और हमारा सूचना तंत्र बेहद लाचार, कमज़ोर और घटिया है , मीडिया और सूचना तंत्र महामारी है, कोरोना से तो निपट रहें है पर इससे कैसे निपटें
***

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...