नपुंसकता की हद
11.55 हो रहे हैं रात के इस समय, देवास कलेक्टर ने मध्य प्रदेश शासन के गृह विभाग की गाइड लाइन के अनुसार एक कड़ा आदेश निकाला था - जिसके तहत यह प्रावधान था कि दिवाली में पटाखे सिर्फ रात को 8:00 से 10:00 बजे तक चलेंगे और उनका भी डेसीबल तय था, परंतु हद यह है कि पूरे शहर में अभी भी पटाखे बुरी तरह से बज रहे हैं, चल रहे हैं, जल रहे हैं - पूरा आसमान धूल और धुएँ से भर गया है, सड़कें कचरे से अटी पड़ी है
मेरा कमरा चूँकि तीसरे माले पर है, इसलिए अब सांस लेने में भी दिक्कत हो रही है और आवाजों का शोर इतना ज्यादा है कि सो नहीं पा रहा हूं - मैंने उस दिन भी लिखा था कि यदि प्रशासन में दम हो तो आदेशों में जितने क्लॉज दिए गए हैं - उनमें से एक की भी तामिल करवा कर दिखा दे तो मान जाऊँ पर सत्ता, प्रशासन और न्यायपालिका इस समय मजाक की हद तक जनता को बेवकूफ समझ रहें है और सिर्फ़ कागज़ के शेर बने हुए है
इस समय में जनता पागल हो गई है और बुरी तरह से पटाखे चला रही है, एक मूर्ख मंत्री ने कहा था कि लोगों की आमदनी बढ़ी है तो पेट्रोल डीजल के भाव बढ़ना ही चाहिए - मुझे लगता है कि जिस तरह से यह पटाखे चल रहे हैं, उससे शहरों में इस हरामखोर जनता को ₹ 200/- प्रति लीटर का पेट्रोल दिया जाना चाहिए
ये अनपढ़ जाहिल 2 वर्ष कोविड के कारण दिवाली नहीं मना पाए और आज यही मूर्ख पिछले 4 दिनों से बाजार में उत्पात मचा रहे थे बगैर कोई कोविड के प्रोटोकॉल का पालन किए और अभी भी पटाखे फोड़े जा रहें है
सच में हिंदुस्तान में मूर्खता की कोई कमी नहीं है धर्म के नाम पर विशुद्ध अफीम चाट रहे हैं लोग, ध्यान रहें कि कोई मुझे यह ना समझाएं कि धर्म क्या होता है और हिंदू धर्म क्या होता है और हिंदू त्योहारों पर ही यह सब क्यों होता है, हिंदू त्योहारों पर ही इस तरह की प्रतिबंध की बात क्यों होती है - कारण साफ है - क्योंकि आप बहुतायत में हो और सबसे ज्यादा उत्पाद आप ही मचा रहे हो और यह आपकी की ही औलादों को भुगतना पड़ेगा - अगर यह समझ आपकी नहीं है तो मूर्खों से बहस करने का कोई फायदा नहीं है - भुखमरी और 215 /- प्रति लीटर खाने का तेल जब सबसे बड़ा और नँगा भूखा उप्र राज्य साढ़े नौ लाख दिए जलाने में लगा दें [ जबकि भारत का संविधान पंथ निरपेक्ष है ] तो वहाँ आप आम आदमी से क्या उम्मीद करेंगे, जहां देश की राजधानी का घटिया केजरीवाल सरीखा दोगला मुख्यमंत्री बेहद घटिया राजनीति करने पर उतर आता हो धर्म का सहारा लेकर - वहाँ टुच्चे नेता तो जनता को बरगलाएंगे ही त्योहारों के नाम पर
ईद, मिलादुन्नबी, क्रिसमस, या होली, दिवाली - संस्कृति बर्बाद करके क्या हासिल होगा इनसे पूछा जाना चाहिये - इस देश में ना गरीबी है, ना भूखमरी, ना कुपोषण, ना आजीविका की समस्या, न कोई बेरोजगार है और ना किसी को मानसिक रोग है - समस्या है तो सिर्फ एक - वह यह कि "सच बोलने वाले पागल हैं और नेगेटिव हैं और राज्य के विरुद्ध हैं" - ऐसे सभी लोगों को देश निकाला दे देना चाहिए, या समुद्र में फेंक देना चाहिये या सड़को पर उल्टा लटकाकर फांसी दे देना चाहिये
कितना शर्मनाक है कि हमने अघोषित कोरोना काल में अ'सरकारी 85 लाख मौतें एक देश के तौर पर देखी है, हर किसी ने किसी अपने को, अड़ोसी - पड़ोसी को खोया है फिर भी हम कितने बड़े नीच और नालायक है कि यह जश्ने चराग मना रहे है - इस धूमधाम से , जानवर नही बन गए है हम पूछिये अपने आप से भी
Comments