Skip to main content

आर्यन बनाम मीडिया Khari Khari Post of 29 Oct 2021

आर्यन बनाम मीडिया बनाम महाराष्ट्र सरकार बनाम न्याय - केस - कुछ सवाल बगैर पूर्वाग्रह के पूछ रहा हूँ , इस पूरे मामले पर "न्याय, नैतिकता और नीति" - पर एक अकादमिक विधिक बातचीत तो बनती है, जिन्हें न्याय, कानून की समझ नही और राजनैतिक भक्ति भाव मे डूबे है वे यहाँ बकवास ना करें - मूर्खों के कमेंट्स हटा दिए जाएंगे

◆ क्या सच में आर्यन को जमानत देने में देरी हुई
◆ क्या सच में लोवर कोर्ट के न्यायाधीश दबाव में थे
◆ क्या सच में मुकुल रोहतगी ने जो तर्क रखें वे लोवर कोर्ट में नही रखे जा सकते थे
◆ क्या न्याय हुआ अंत में
◆ क्या जमानत की जो शर्तें है - वे अपरिहार्य है या सबके लिए हमेंशा से यही रही है बस इस केस में इनको अतिशयोक्ति पूर्ण रूप से दर्शाया जा रहा है
◆ लगातार 27 दिन तक मीडिया ट्रायल पर कानून और सुप्रीम कोर्ट का क्या अभिमत है
◆ विधि का छात्र होने के नाते और NDPS एक्ट के संदर्भ में, पिछले वर्ष का सुशांत केस और पोस्ट सुशांत केस के सारे नाटक आदि भी सामने है मेरे
विधि के विद्वान समझाएं - मामला इतना सीधा नही जितना दिखाई दिया, या जिस तरह से षड़यंत्र के तहत इसके पीछे कितने बड़े मामले दबा दिए गए - आशीष मिश्रा टैनी हो, लखीमपुर, किसानों की हत्या, किसान आंदोलन, कोयले की कमी, महंगाई, पेट्रोल डीज़ल से लेकर गैस रिफिल के भाव - क्या इस सबका कोई सह सम्बन्ध है , यूपी चुनाव, बॉलीवुड को यूपी ले जाना का लफड़ा आखिर ये सब क्या है

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही