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Khari Khari, Drisht KAvi and other Posts from 15 to 21 Nov 2021

#धमाका #नेटफ्लिक्स

मीडिया मंडी की सच्ची दास्ताँ है जो एंकर को एक्टर में बदलकर पूरी न्यूज को ड्रामे में तब्दील कर देती है और ऊपर से तुर्रा यह कि न्यूज सच्चाई नही है
किसी देश में एंकर जब खुदा हो जाये और लोग उनके हर झूठ को सच मानकर अपना जीवन दाँव पर लगा दें तो वह देश बहुत गन्दा, वीभत्स और दयनीय हो जाता है, अर्जुन पाठक के बहाने रवीश बाबू को प्राइम टाइम के एंकर का सच उघाड़ने की कमजोर और अतिरंजित कोशिश है
मीडिया मंडी में न रिश्तों की जगह है ना निजी ताल्लुकात की जो है वह है टीआरपी और इस दुष्चक्र में यदि कोई फँसता है तो एंकर क्योंकि मालिक और प्रबन्धन तो पर्दे के पीछे डील में व्यस्त रहते हैं, इसलिए एंकर को मीडिया समझना यानी कमज़ोर या प्रभावी निहायत ही मूर्खता पूर्ण विचार होगा
फ़िल्म अतिशयोक्तिपूर्ण है पर बहुत प्रतीकों में बात करती है, डिजिटल युग में ये सब सम्भव है बल्कि हो रहा है इसलिये इसे सिर्फ़ एक फ़िल्म समझकर आगे ना बढ़ जाये बल्कि इसे आज की मीडिया मंडी के बरक्स देखने समझने और विश्लेषित करने के साथ यह साफ़ करने की जरूरत है कि रवीश, रजत, सुधीर, रुबीना, दीपक चौरसिया, पुण्य प्रसून, सुमित अवस्थी, अर्नब या कोई भी नत्थूलाल नुमा एंकर को आदर्श मानने की तो कतई ज़रूरत नही है क्योंकि ये वो मोहरे है जो पचास लोगों की उंगलियों पर एक साथ नाचते है जब ऑन एयर होते है , बल्कि मेरा तो निजी मत है कि प्रिंट मीडिया के सम्पादक भी प्यादे है और निजी ब्लॉग या यूट्यूब चलाने वाले भयंकर बड़े दलाल जो दो रुपये के लिए सब बेच देते है एथिक्स या मूल्य भी
बहरहाल एक घण्टा चौवालीस मिनिट की फ़िल्म है जो एक फ्लो में चलती है और आप इसे बगैर सांस रोके देख सकते है - थोड़ी मीडिया की समझ होना जरूरी है तो ठीक से पचेगी और आप समानुभूति से अर्जुन पाठक की दशा दिशा को समझ पायेंगे, हर पोस्ट पर मछली, कृषि, खनिज, समुद्र और राजनीति इतिहास के साथ मेडिकल और इंजीनियरिंग पैथोलॉजी और प्लांट टेक्नोलॉजी स्पेस टेक्नोलॉजी पर कमेंट करने वाले और ही ही हाहा करने वालों के लिए नही है, वैसे हर गर्दभ मीडिया विशेषज्ञ है इसमें भी कोई शक नही पर मीडिया के छात्र और यहाँ वहॉं जुगाड़ से इन शॉर्ट्स या फूल पेंट में नौकरी पा गए तमाम प्रभाष जोशियों, राजेन्द्र माथुरों, मृणाल पण्डों, दिलीप पाड़गांवकरो, प्रणव रायों और सुभाष चन्द्रों से निवेदन है कि इसे एक बार देख लें विनम्रता से
नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है

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Weird while Layered

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टीके के दो डोज़ की अनिवार्यता असंविधानिक है और जिला प्रशासन जगह - जगह जिस तरह से प्रतिबंध लगा रहा है हर जिले में - वह गैर कानूनी है
आख़िर किस कानून के तहत यह हो रहा है, सिर्फ़ सरकार को आँकड़ें बढाने के लिए लोगों को परेशान करना है और अपनी पीठ थपथपानी है
माननीय हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इस पर स्वतः संज्ञान लें - क्या जनता को आप इतना बेवकूफ समझते है कि वो खुद कोरोना के मुंह मे जाकर अपनी जान देगी
खण्डवा में मूर्ख जिला आबकारी अधिकारी कहते है कि शराब पिया आदमी झूठ नही बोलता - मप्र में इससे बड़े बड़े बल्लम और नगीने मिल जायेंगे , याद आता है जब एड्स का प्रकोप चरम पर था तो एक कलेक्टर ने एक पिछड़े जिले के आदिवासी इलाकों में हेलीकॉप्टर से कंडोम की बरसात करवाई थी और बाद में बरसों वे स्वास्थ्य विभाग के मुखिया बनें रहें थे
इस तरह के आदेशों का विरोध किया जाना चाहिये और केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस तरह की कोई अनिवार्यता थोपी नही है फिर राज्य सरकारें किस दबाव में यह बेतुके निर्णय ले रही है

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सुबह से कृषि कानूनों पर मोदी की घर वापसी, कदम खींच लेने पर पोस्ट्स पढ़ी पर यह बेहद कमज़ोर प्रधानमंत्री साबित हुआ 2014 से आज तक जो अपनी मर्जी के बजाय अपने आकाओं या जन दबाव में काम कर रहा है, थोड़ा सा कानून की दृष्टि से समझने की कोशिश करना होगी, बल्कि यह कहना अतिश्योक्ति ना होगी कि संघ, भाजपा और कारपोरेट लॉबी ने मोदी का विशुद्ध इस्तेमाल किया चुनाव जीतने से लेकर अपनी घटिया कमज़ोर नीतियाँ लागू करवाने में और आज पूरे विश्व के सामने कन्फेशन कर आत्म ग्लानि महसूस करवाई और भरे बाज़ार बेइज्जती करवा दी, बैकफुट पर ला दिया मोदी को
जनता की ताक़त के सामने कोई कितना भी बड़ा तानाशाह हो उसे एक न एक दिन झुकना ही पड़ता है, इस सरकार को सुप्रीम कोर्ट का लखीमपुर केस पर लिया स्वतः संज्ञान, यूपी सरकार को फटकार, और इस बहाने जब केस खुलता तो उसकी आँच दिल्ली के किसान आंदोलन पर आनी ही थी - यह डर सता रहा था
दबाव में ही सही पर 2014 से अभी तक देखें तो सकारात्मक और नकारात्मक फ़ैसले इस सरकार को लेने ही पड़े है फिर मन्दिर बनवाने की मजबूरी, एट्रोसिटी एक्ट की बात हो, नोटबन्दी, जीएसटी कानून, 370 को लागू करना और बाद में सब बहाल करना कश्मीर में, 377 का डीक्रिमिनलाईज होना, तीन तलाक़, 497 यानी जारकर्म कानून का हटना, पास्को एक्ट, लेबर एक्ट, कोविड के दौरान आपदा नियंत्रण एक्ट, निर्भया कांड के बाद घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण कानून में ठोस बदलाव, भूमि अधिग्रहण कानून, प्रत्यर्पण कानून, कोविड टीकों के बनने से लगाने तक का दबाव से लेकर अब इन तीन काले कृषि कानूनों का वापिस लिया जाना
बात जनता की हो या अडानी अम्बानी के दबाव की - पर जो 56 इंची महिमा का गुणगान करके अपनी ही पीठ यह ठोंक रहा था - वह दरअसल में एक फुस्सी बम है, अभी जब मैं 2014 से कानूनी रूप से अध्यादेशों और कानूनों को संविधान के बरक्स देख रहा हूँ तो समझ आ रहा है कि ये सब जनदबाव ही है जो एक तानाशाह को बुरी तरह से मजबूर करता है और इस बात की तस्दीक़ करता है कि लोक शक्ति और लोकतंत्र के आगे कोई भी तुर्रे ख़ाँ हो सब बौने है
बकौल दुष्यंत कि- 'कैसे आस्मां में सुराख़ हो सकता नही / एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों"

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उधर कंगना कह रही है
"800 किसान मरें तो सही 2014 वाली आज़ादी में और 3 कृषि कानून भी वापिस हो गए आज, त्योहार भी लग रहा है देश भर में - अभी भी फिलिंग नही आ रही क्या आजादी की "

कंगना यह भी कह रही कि
क्यों ना कैप्टन अमरिंदर सिंह को "पंजाब का राष्ट्रपिता" कहा जाए - राज्य या राष्ट्र ? किसी ने पूछा - तो बोली "राष्ट्रपिता" पर इसकी सीमा पंजाब तक रहेगी

फिर कंगना ने अखिलेश एवं राहुल भैया और प्रिंका दीदी को फोन करके कहा
"आपकी पार्टियों को आरआईपी, सायकिल चला लो या लड़की होकर लड़ लो - पर अब आएगा तो मोदी ही, और बहनजी को खबर कर देना सीबीआई और इडी के डायरेक्टर का कार्यकाल आजाद भारत मे पाँच साल का हो गया है, लड़ के ली है आज़ादी ; किसानों की छाती पर चढ़कर लेंगे उत्तर प्रदेश"

इधर कंगना ने कहा कि मीडिया मुझपर बात नही कर रहा और कृषि कानूनों पर बात कर रहा है जैसे चूहे को मिली चिन्दी वैसे मीडिया को मिला एक और माफिवीर का कन्फेशन
"जैसे हू आफ्टर नेहरू का सवाल था और इंदिरा आई थी, अब वैसे ही हू आफ्टर मोदी का सवाल खत्म, मैं हूँ ना " बोलकर लंच को चली गई कंगना

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अहंकार तो रावण का भी नही रहा था
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प्रधानमंत्री ने कहा कि तीनों कृषि बिल वापिस लेंगे
अंतरात्मा जागी है उत्तर प्रदेश, पंजाब के साथ तीन अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों और 2024 के मद्देनज़र यह फ़ैसला बड़ा है, कल तीन क्षत्रपों को उत्तर प्रदेश के चुनाव की कमान सौंपने के बाद आज सुबह का यह उदबोधन बेहद ऐतिहासिक है, यह बन्दा शातिर और घाघ है यह तो सबको मालूम ही है - आज का दिन सही चुना ताकि भीड़ की स्मृति में दर्ज हो जायें यह निर्णय और इतिहास से नेहरू का नाम ही मिट जाये
गुरु पर्व और कार्तिक पौर्णिमा पर नरेंद्र मोदी का यह फ़ैसला स्वागत योग्य है और देश को यह समझना पड़ेगा कि अब यह सरकार यह समझने को तैयार हुई है कि जब लोग संगठित होकर जायज़ मांग उठाते है तो सरकार को झुकना पड़ता है - एका में ताक़त भारी रे
किसान आंदोलन में जो लोग भी मारे गए यह पूरा श्रेय उन्हें दिया जाए साथ ही उन गरीब वंचित किसानों को जो सालभर से दिल्ली में डेरा जमाये हुए है, उन महिलाओं को जो खेत सम्हाल रही हैं , उन बच्चों और युवाओं को जिन्होंने अपनी पढ़ाई त्यागी और जीवन का एक वर्ष इस बलिदान में लगाया - किसान नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं में श्रेय लेने की होड़ मचेगी और योगेंद्र यादव टाईप लोग आगे आएंगे, बहरहाल
देशभर की ओर से नरेन्द्र मोदी सरकार का धन्यवाद और देश से अपील कि अब पेट्रोल डीज़ल के साथ खाने पीने की वस्तुओं पर महंगाई और निजीकरण पर संगठित रूप से सामने आए और लड़ाई लड़ें
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प्रकाश पर्व और कार्तिक पौर्णिमा की
बधाई
सबको

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क्षत्रपों को अस्तबल की लगाम
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जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह और स्वयं अमित भाई शाह उप्र चुनाव में बूथ सम्हालेंगे
यह खबर भाजपा के हारने के डर से ज़्यादा विचलित करने वाली है क्योकि इस बहाने से अगले चार पाँच माह केंद्रीय मंत्रियों के प्रोटोकॉल, व्यवस्थाएं और बाकी सबके खर्च का भार अंततः जनता पर ही पड़ना है
अमित शाह ने इस बहाने से राजनाथ, जेपी नड्डा और योगी को निपटाने की बहुत बढ़िया तरकीब बनाई है और साँप भी मरेगा और लाठियाँ भी भांजी जाएगी
मज़ेदार होने वाला है सब, बस लोग संयमित रहें क्योंकि बड़ी हलचल होने की पुख्ता सम्भावना है और हो सकता है सेना बुलानी जोड़ें जिसका अभ्यास कल पूर्वांचल एक्सप्रेस पर वायुसेना के विमान उतारकर कर भी लिया गया है और विरोधियों को यह दर्शाया भी गया है कि हमारी तैयारी किस हद तक है
एक बात तो है कि अखिलेश की रथ यात्रा और प्रियंका के सम्पर्क ने पसीना तो ला दिया है दिग्गज़ों को, योगी का पत्ता एकदम साफ हो गया है आज के इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है और योगी के कामकाज और कार्यकाल के नतीज़ा भुगतने को अब भाजपा को तैयार रहना चाहिये
मुझे अंदर से यह लगता है कि जीतेगी तो भाजपा ही क्योंकि अब साम दाम दण्ड भेद या दंगे करवाकर ही जीते पर सिंहासन का रास्ता इतना आसान नही होगा और इतनी ज़्यादा सीट्स नही मिलेगी
सारा दारोमदार अब किसान, बेरोजगार युवाओं, महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर आ टिका है क्योंकि योगी और केंद्र की योजनाओं के भुक्तभोगी ये ही सबसे ज़्यादा है
समय की वैसे मांग है कि लव जेहाद के कानून से लेकर हिरासत में मौतें, बलात्कार और इसमें शामिल सत्ता के विधायक, लूटपाट और तमाम तरह के उजबक निर्णयों को लेकर और हड़बड़ाहट में क्रियान्वित कर योगी सरकार ने संविधान का जो अपमान किया है और सबसे ज़्यादा अपने ऊपर लगे सभी मुकदमों को वापिस कर अपना दामन पाक साफ कर लिया वह बेहद चिंताजनक है
संघ से लेकर भाजपा के दीगर आनुषंगिक संगठनों को यह बात समझ आ गई है, चार रथ यात्राएँ निकालने से लेकर केंद्र के तीन बड़े नेताओं को बूथ मैनेजमेंट की जवाबदेही देना निहायत ही बड़ा और गम्भीर मसला है जो भारतीय चुनाव इतिहास में निश्चित रूप से अनपेक्षित था, मोदी की दो बड़ी लोक लुभावन सभाएँ हो गई है आचार संहिता के पहले, निगाह इस बनारसी सांसद पर रखना होगी कि चाल ढाल क्या है और क्या यह 24 के ग्राफ को पढ़ पा रहा है भले ही शीर्षोंमुख हो या पतनोन्मुख
निष्पक्ष रूप से देखा जाए तो एक बात साफ़ है वो कहते है ना - "अब आये ऊँट पहाड़ के नीचे"
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मन्नू दी एकदम अलग किस्म की लेखिका थी, हमारे मालवे के मंदसौर भानपुरा के संस्कारों ने उन्हें कभी बगावती स्त्री नही बनाया, बल्कि बेहद सूझबूझ के साथ वे अपनी समकालीन कृष्णा सोबती, अमृता प्रीतम, मैत्रेयी पुष्पा जैसी स्त्रियों के संग - साथ रहकर अलग किस्म की उधेड़बुन में अपने चरित्र बुनती रही और कालजयी काम कर गई, एक इंच मुस्कान, आपका बंटी या महाभोज में उनका लिखा बहुत कद्दावर है
राजेन्द्र यादव जी जैसे औघड़ और बड़े आदमी, बड़े लेखक के साथ रहना, अलग होना और फिर अपनी दुनिया बसाने के बाद भी जेंडर के मुद्दों को उस तल्खी से नही रखा - जो आमतौर पर महिला लेखिकाएं करती है, वे बेहद संजीदा ढंग से विश्लेषण कर लिखती रही और कोशिश यह थी कि स्थितियां बदले - ना कि सिर्फ हंगामे खड़े हो, कमलेश्वर, दुष्यंत और बाकी सबके बरक्स वे बेहद संतुलित लिखती रही क्योकि तत्कालीन समाज वैसा ही था पर इसका अर्थ यह नही कि उनकी दृष्टि, बदलावपरक, नई सोच या विकास जैसी नही थी, कहानियाँ, उपन्यास या आलेखों में वे बेहद सजग, जागरूक और प्रगतिशील महिला थी और हमेशा अपडेट रहती थी
मन्नू दी का होना और लगभग अंत तक सक्रिय बने रहना ही उनकी तगड़ी जिजीविषा का कमाल था, वरना लोग टूट जाते है जीवन में एकाध झटके से ही, परन्तु वे हर बार मजबूती से खड़ी रही, अपने भीतर - बाहर लड़ती रही और दुनिया को, परिवारों को, वंचितों को और चलायमान समाज को पुरसुकून ढंग से बदलने के लिए लिखती रही
वे यही है और हमेशा रहेंगी
श्रद्धांजलि #मन्नूभंडारी दी
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आप इस समय किसी भी विषय पर बोल सकते है बीस पच्चीस की गैंग के बीच मजे - मजे से और वो भी सशुल्क ; फिर वो सुनीता विलियम्स, बिस्मिल्ला खाँ, जसराज, केलुचरण महापात्रा, गिरिजा देवी, अमूल क्रांति के जनक, वसुंधरा कोमकली, वसन्त देशपांडे, वीरप्पन, जय ललिता, गंगू बाई हंगल, असगरी बाई, एमपी परमेश्वरन, व्ही शान्ताराम, जोहराबाई अम्बाले वाली हो, प्रोफ़ेसर यशपाल, कैलाश खैर, नत्थूलाल या किसी चंपकलाल पर भी - भले आपने इन्हें देखा हो या ना देखा हो, समझा हो या ना समझा हो, पढ़ा हो या ना पढ़ा हो - गूगल बाबा ज़िंदाबाद, सब कंट्रोल कॉपी पेस्ट एक्सपर्ट है
गैंग का हिस्सा होना जरूरी है और प्लेटफॉर्म तो आपको मालूम ही है .....
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"माहित असताना काही वेळा
वाटा चुकवायचा असतात,
कण्ठ डाटून आला तरी
अश्रु दाखवायचे नसतात"

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