|| तू कहता कागद की लेखी ||
नौकरशाहों को पुरस्कार और मंच से दूर रखने की कोशिश होना चाहिए - बशर्ते जब तक वो बहुत मौलिक स्वरूप में लेखन या दीगर विधाओं में एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में सामने ना आये, अपने पद का बगैर उपयोग किये
हो यह रहा है कि कोई भी नौकरशाह जब कला, साहित्य या दीगर व्यापक क्षेत्रों में साधना करते- करते अचानक से सत्ता का चाटुकार बन जाता है या वह सब लिखने लगता है जो संविधान के ख़िलाफ़ हो, जातिय वैमनस्य बढ़ाता हो, भेदभाव बढ़ाता हो, किसी धर्म विशेष को अपने फर्जी ज्ञान या अंग्रेजी के लंबे लम्बे उद्धरणों से आतंकित करता हो, धौंस जमाकर जबरन की कुंठित विचारधारा थोपता हो और हर जगह संस्कृति की दुहाई देकर स्वयं को महान सिद्ध कर पार्टी विशेष का बौद्धिक प्रतिनिधि बन जाता हो और फिर वो सर्वोच्च पुरस्कार या उस विभूति के नाम पर पुरस्कार "हासिल" कर लेता हो - जिस पर लिखना तो दूर उस विभूति की विचारधारा, समझ और जीवन शैली से जिसका लेना - देना ना हो
यह प्रवृत्ति बहुत घातक और दुखद है, मुंह में राम और हर जगह छुरी - तलवार लेकर घूमने वाले और कोरी बौद्धिकता की डुगडुगी पीटने वालों से भगवान बचायें - ये सिर्फ बौद्धिक आतंक पैदा कर पुरस्कार लेना जानते है और जब भी सत्ता पक्ष पलटता है - सोशल मीडिया से बिस्तर लपेटकर निकल लेते है
मप्र में ही नही, हर जगह यही हालत है, मप्र सरकार के पुरस्कारों की विश्वसनीयता बरसों से संदिग्ध है , याद आता है प्रो स्व नईम जी को मप्र शासन ने बरसो पहले कबीर और सँस्कृति पुरस्कार देने के लिए निर्णायक बनाया था तो वे प्राप्त अनुशंसाओं को हमें दिखाते हुए बोले थे - "जिस सरकार ने मुझे इस पुरस्कार लायक नही समझा - उसका निर्णायक बना दिया, जिसने कबीर पर कभी नही लिखा या संस्कृति का मख़ौल उड़ाया और गंगा - जमनी तहज़ीब का सत्यानाश किया, उसे पुरस्कार देने का दबाव बनाकर ये उपकृत करना चाहते है और कमाल यह कि ससुरे मेरे सिर पर बंदूक रखकर - ताकि इनका यशगान बना रहे " - बात आई गई हो गयी और खत्म भी हो गई, पर कल मिलें मप्र शासन के पुरस्कारों की सूची देखकर फिर यह बात ज़ेहन में कौंध गई कि जिसने कबीर की परंपरा या कोई और ललित कला, अभिनय या दीगर कला का मर्म ना जाना, सत्ता की एक तरफा चाटुकारिता करते रहें - वे एक से तीन लखटकिया पुरस्कार ले रहे है शान से
एक बहुत करीबी मित्र पिछले वर्ष मप्र की एक अकादमी के अध्यक्ष बनें, उसी ने आग्रह किया कि - "मेरे साथ मालवा की कबीर की वाचिक परम्परा पर काम कर तू, पर यह ध्यान रखना कि सरकार के खिलाफ या धर्म विशेष के ख़िलाफ़ मत लिखना - ना ही कोई बात सोशल मीडिया पर जाए, बल्कि पिछले दो साल में जो भी फेसबुक पर लिखा हो वो सब हटा देना" - , मैंने कहा - "गुरु, प्राध्यापकी छोड़कर मलाई खाने तुम गए हो जुगाड़ से और चरण वंदना करके, मैं भूखा मर जाऊंगा, पर तुम्हारी इस मामले में नही सुनूँगा - यदि मालवा की कबीर की वाचिक परम्परा पर काम करूंगा तो कबीर की वाणी ही बोलूँगा, वैसे भी मैं कबीर कुल का हूँ - जाति और संस्कार भले ही ब्राह्मणी या कुछ हो" और वो दिन है कि आज का दिन - बन्दे का कोई फोन नही आया पलटकर कभी, जबकि हम लँगोटिया यार है, ऐसे ही हमारे एक साहित्यकार मित्र चाटुकारिता और चरण रज पी - पीकर महान हो गए और नोबल से बस बित्ता भर दूर है
शर्म मगर किसी को आती नही
बहरहाल, सबको मुबारक 66.50 लाख के पुरस्कार
[ नौकरशाह सन्दर्भ विशेष है, कृपया दिल पर ना लें ]
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I would dial your numbers
Just to listen to your breath
And I would stand inside my hell
And hold the hand of death
You don't know how far I'd go
To do ... Seize this precious
You don't know how much I'd give
Or how much I can take
Just to reach you
Just to reach you
Come to my window
Crawl in side
Wait by the light of the moon
Come to my window
I will be home soon
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