फेसबुक पोस्ट पर शोषको, फर्जी लोगों को आइना दिखाना पाप है - वे बजाय बहस या तर्क करने के सीधे जाति पर उतर आते है और लिखते है कि "यही ब्राह्मणवाद है, तुम्ही शोषक हो, अपनी आलोचना नही सह सकते", जबकि इन्हें मालूम है कि जाति कोई खुद तय नही करता यहाँ, ब्राह्मणवाद को गाली दो ब्राह्मण व्यक्ति को क्यों, यह समझ तक नही इनकी, जब इनके भेद खोलो तो ये आपको झूठा तक कह देंगे जबकि इनकी पीढियां इसी शोषण, जाति और वर्गभेद पर टिकी रही और ये इसी की अपने कम्फर्ट ज़ोन में खाते रहें, खानदानी विरासत में सामंती व्यवहार मिलें - इन्हें सहन नही होता कि कल इनके यहां काम करने वाले आज इन्हें आईना दिखा रहें है, बगैर भय और खौफ़ के सामने खड़े जवाब दे रहें है
दुर्भाग्य है कि ऐसे घटिया कमेंट डिलीट करना पड़े - क्योंकि इन्हें देखकर मन और खट्टा होता है कि ये वो बुद्धिजीवी और नीति नियंता रहें जिन्हें जमाना रोल मॉडल बनाकर पूजता रहा और अब रिटायर्ड होने के बाद इनके भीतर इतना जहर है ब्राह्मण या किसी नीची जाति के प्रति यह अब समझ आ रहा है
जाओ भजन पूजन करो, नमाज़ पढ़ो, चर्च में कैरोल गाओ, अरदास बांचो, गोआ - कश्मीर घूमो , नही तो बाप दादों की अकूत सम्पत्ति से ऐश करो, विदेश घूमो - क्यों यहाँ अपना जीवन हम जैसे निम्न वर्ग के लोगों के पोस्ट पढ़कर बर्बाद कर रहें हो
जय हो, सबकी विजय हो
***
"अरे आप आज दिखें, कहाँ थे दो तीन दिन से, सब चौपट हो गया, आपकी बड़ी याद आई और जरूरत महसूस हो रही थी" - कवयित्री उदास थी, स्कूटी रोककर लाईवा को देखकर बोली
"जी, जी, दीवाली मुबारक आपको, असल में गांव निकल गया था, मिसेज के साथ, कुछ काम था या काव्य गोष्ठी थी " - कवि भी कवयित्री के घर दीवाली में अवसर चूक जाने के कारण अवसाद भरे स्वर में बोला
"नही, खास कुछ काम नही था, पडवे पर हमारे यहाँ जानवरों की पूजा होती है - उसमें बहुत गोबर लगता है, आप होते तो ला देते कही से सात - आठ बाल्टियाँ, अब हमारी मल्टी में तो मिलने से रहा" - कवयित्री ने जाते हुए लाईवा से कहा और अपनी स्कूटी पर फुर्र से उड़ गई
Comments