तू चुप रहकर जो सहती रही तो क्या ये ज़माना बदला है तू बोलेगी मुंह खोलेगी तब ही तो ज़माना बदलेगा ••••••••••••••••••• #पगलेट सिर्फ फ़िल्म नही बल्कि कुप्रथाओं, शोषण, मृत्यु पश्चात तेरह दिन के ढोंग, बामणों के खुले पाखंड, गरुड़ पुराण जैसे रस भरे मनोरंजक ग्रँथ का कोरा ज्ञान और बखान, रीति रिवाजों के नाम पर गोरखधंधों की कहानी है, साथ ही निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों में विधवाओं को कैसे शोषित किया जाता है, की भी दास्तान है यह कहानी युवा विधवा लड़की के पीहर, ससुराल और रिश्तदारों के व्यवहार, स्वार्थ और बीमाधन की आकांक्षा में एक जवान लड़की की शेष बची जिंदगी को अपने लिए मोड़ने की कला बयां करती है पर मजेदार यह है कि लड़की तेरहवीं के दिन पिंजरा तोड़कर मुक्त हो जाती है शानदार फ़िल्म, धार्मिक रूप से कमज़ोर , दिल - दिमाग़ से पैदल और मूर्ख लोग बिल्कुल ना देखें - या तो समझ नही आयेगी या आधी ही छोड़ देंगे या उनकी आस्थाओं पर चोट पहुंचेगी, आश्चर्य यह हो रहा कि भक्त जनों ने अभी तक कोहराम नही मचाया - क्योकि तेरहवीं में समिधा देते समय संध्या अपनी मुस्लिम सखी को भी कहती है कि वो भी हाथ दें अभी तक के जीवन में पहली ऐसी फिल्म...
The World I See Everyday & What I Think About It...