मत कहो आकाश में
Rishi Bharadwaj सतना मप्र के रहने वाले है, प्रतिभाशाली इंजीनियर है और इन दिनों अमेरिका में रहकर एमएस की पढ़ाई कर अब पीएचडी कर रहें है
राजनीति में गहरी रुचि है खासकरके मप्र और आसपास के गाय पट्टी वाले राज्यों की
अभी हमारी लम्बी बात हुई तो मुद्दा था कि दलित पिछड़े और आदिवासियों के विकास में राजनीति में बदलाव आए और राज्यों के मुख्य मंत्रियों ने क्या किया
ऋषि ने बड़ा रोचक विश्लेषण बताया कि आज जो पूरा सपाई, बहुजन और दलित आंदोलन है वह मायावती, अखिलेश, जोगी, शिवराज और मोदी जैसे नेतृत्व के कारण पिछड़ा है, 1990 के बाद मप्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और छग में कोई भी ब्राह्मण मुख्य मंत्री नही रहा तो फिर ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद को विकास में रोड़े अटकाने के लिए , सुविधाएं लेने के लिए क्यों दोषी माना जाता है
कैलाश जोशी (मप्र), हरिदेव जोशी (राज), जगन्नाथ मिश्र (बिहार), नारायण दत्त तिवारी (उप्र) के बाद इन राज्यों में कोई ब्राह्मण मुख्य मंत्री नही रहा, (हो सकता है कोई और आया हो तो - ठीक करिये मुझे ) झारखंड और छग का सबको मालूम ही है, दिल्ली में अलबत्ता शीला दीक्षित रही - पर एक स्वतंत्र मुख्यमंत्री के रूप में क्या कर पाई - यह अरविंद केजरीवाल को देखकर समझ आता है
मैं यह सब एंडोर्स नही कर रहा ध्यान रहें, पर इन दिनों जो सोशल मीडिया से लेकर राष्ट्रीय स्तर की घटिया राजनीति में और हमारे प्रशासनिक हलकों में भी जो जातिवाद और ब्राह्मणों को गाली देने की होड़ मची है, दूध के दाँत लेकर आये मीडियाकर्मी और प्रगतिशीलता के नाम पर स्वयम्भू लेखक जो खुद चूक गए है या हकाले गए है वे भी बहुत उथले है- उन्हें इस सन्दर्भ में देखना चाहिए कि जितने भी मुख्यमंत्री इन पिछड़े गाय पट्टी वाले राज्यों में बने और 7 साल में देश के प्रधान (जो ओबीसी है) भी बने हुए है उन्होंने दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के लिए क्या किया
सिवाय यादवों की भलाई के (जो ऋषि की बातचीत का एक अन्य हिस्सा था) फिर वो उप्र में हर चयनित सूची में यादवों की भरमार हो या लालू के रेल मंत्री रहते देश के हर स्टेशन पर "बिहारी यादव" की नियुक्ति हो
बहुत आकर्षक बहस थी और मैं कह रहा था कि तुम कहाँ से देख रहें हो इस पर निर्भर करता है और ऋषि ने कहा कि वो एक विकसित समाज से देख रहा है कि कैसे नस्लवादी और रंगभेदी अमेरिका में ये सब मुद्दे है और बावजूद सबके विकास, चुनाव और विचारधारा का क्या अर्थ है, हमारे यहां तो तीन पीढ़ियों में आरक्षण लेने के बाद भी सत्ता नही छोड़ना चाहता कोई - ब्यूरोक्रेट हो या राजनैतिक व्यक्ति और जिन्हें नही मिला कुछ या जो जीवन में आरक्षण के बाद भी नौकरी नही ले पायें खलासी की भी - वे गाली गलौज पर उतर आते है कुतर्कों से
राजनीति में भाजपा से वंशवाद हटने की उम्मीद थी पर भाजपा और कांग्रेस की नीयत, घटियापन, भ्रष्टाचार , आचरण और व्याभिचारी प्रवृत्ति में रत्ती भर का भी फर्क नही है और इसका असर क्षेत्रीय दलों पर पड़ा ही नही बल्कि मायावती जैसे लोगों ने तो किले बनाकर और रुपयों की माला पहनकर रेकॉर्ड तोड़ दिए कमाई के
नोट - यह गम्भीर पोस्ट है - ज्ञानी लोग ही बात करें और इसे सामाजिक विश्लेषण और समाज में जाति और वादों के परिप्रेक्ष्य में देखें - यह आग्रह है - पोस्ट आरक्षण और बकवास की नही है, लिखने के पहले तथाकथित झंडाबरदार अपने गिरेबाँ में झांक लें - क्योकि इस गाय पट्टी में ही ये लोग ही अड़चन है और इन प्रदेशों में विकास की समस्याएं सबसे ज्यादा है - सिंधिया से लेकर पाइलेट तक की भँसड मची हुई है - कांग्रेस के बोए जहरीले बीज आज बरगद बन गए है और पंथ निरपेक्ष समाज की संविधानिक संकल्पना 40 किलो चांदी की शिला के साथ जमीन में 5 अगस्त को गाड़ दी गई है अयोध्या में - डाक्टर बाबा साहब भीमराव अंबडेकर के इसी देश में - इसलिए बकवास नही, तर्क से बात करिएगा, विकास दुबे की राज्य प्रायोजित हत्या को भी ध्यान रखियेगा
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