Skip to main content

बचाव ही सुरक्षा है 10 Aug 2020

बचाव ही सुरक्षा है


दिमाग़ की शांति के लिए बेहतर है कि यदि किसी के कमेंट या पोस्ट्स या तंज से दिक्कत हो रही हो तो उसे हटा दो और ख़ुश रहो - जबरन बहस करने से कोई मतलब नही है ये कौनसा जीवन बीमा की तरह जीने और मरने के बाद वाला रिश्ता है
सुख से रहने भी दो और रहो भी - एक और तरीका है अनफॉलो करने का और फिर भी कुछ नही हो रहा तो ब्लॉक कर दो - कौनसा सा किसी से रोटी बेटी का सम्बंध निभाना है
सबसे बढ़िया है प्रतिक्रिया विहीन रहना - दस - ग्यारह साल में फेसबुक की यात्रा में यही सीखा है - आपको मुझसे दिक्कत है तो शराफत से निकल जाएं - अच्छी बात यह है कि फेसबुक आपको बताता नही कि किसने आपको हकाल दिया है - मुझे हटाना बेहतर विकल्प है 700 - 800 रिक्वेस्ट पेंडिंग रखी है, नए लोगों को पढ़ने से आपका भी भला होगा और जाहिर है मेरा भी
आपके मेरी सूची में होने और ना होने से - ना मेरा फ़ायदा हुआ है - ना नुकसान और यही आपका भी हो रहा है , कोई किसी पर किसी भी बात के लिए निर्भर नही है - ना आप कोई बहुत बड़े तुर्रे खान है और ना मैं कोई बहुत बड़ी हस्ती - हम सब नौकरी, धँधा और जीने के लिए जतन कर रहें है - आईएएस हो, आईपीएस, विधायक, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, प्रोफ़ेसर, पद्मश्री कलाकार या कोई रेहड़ी चलाने वाले - इस लोकतांत्रिक प्लेटफॉर्म पर सेटिंग से लेकर बाकी सारी सुविधाएं सबके लिए समान है इसलिए यदि आपको अपनी विशिष्टता का बहुत गुमान है तो मुगालते में मत रहिये
आपका मौलिक लेखन हो या तस्वीरें या कुछ और भी - वह मौलिक नही है, टी एस इलियट कहता है "सब इमिटेशन है पुराने का" - इसलिये आपको बहुत घमंड हो रहा है नया रचने का तो, जल्दी होश में आ जाइये जनाब
बहरहाल, ज्यादा अपेक्षाएं न पालें और ना ही अपनी पोस्ट्स, पेज या लाइव देखने के दुराग्रह करें - जरूरी नही कि हर कुछ पढ़ा या देखा जाये- कुछ आपका लिखा - पढ़ा तो उसे लाईक या कमेंट से एंडोर्स किया जाये, अपनी किताब की सूचना दे दें - लिंक शेयर कर दें अपनी वाल पर , यह उम्मीद ना करें कि वह ऑर्डर की ही जाएगी - ज़माना बदल गया है - यही पर ढेर प्रकाशक पूरी बेशर्मी से एक हफ़्ते में सौ टाईटल छापने की जाहिर विज्ञप्ति देते है तो आपकी किताब का रिव्यू तो पढ़ने दें, कही समीक्षा तो आने दें - ये क्या कि इनबॉक्स में आकर बरसात कर दें लिंक्स की
शुक्रिया - आशा है बहुतों को बहुत कुछ समझ आया होगा - पोस्ट्स पर अब ना जवाब देता हूँ ना उम्मीद करता हूँ - फेसबुक मेरी नौकरी नही जो विभागीय स्पष्टीकरण दिया जाये, हर पोस्ट समझ बूझकर ही लिखा और पोस्ट किया जाता है और आपकी समझ के लिए मैं ना जिम्मेदार हूँ ना दोषी लिहाज़ा उम्मीद ना करें स्पष्टीकर की या प्रश्नों की या जवाबों की
आप खेती, साहित्य, क़ानून, स्वास्थ्य, शिक्षा से लेकर वियतनाम और संविधान से लेकर हक्सले और गुलज़ार के विशेषज्ञ होंगे पर मैं विशुद्ध मूर्ख हूँ - आपको विश्वास ना हो तो मेरा प्रोफ़ाइल पिक्चर देख लें तसल्ली के लिए - मैं बहुत ही सीमित जानकारी से ( ज्ञान से नही ) लैस हूँ और आपसे ज्ञान और जानकारी नही चाहिये - अपनी बेहतरी के लिए इस्तेमाल करें तो आपका जीवन सुधरेगा और मेरी हर पोस्ट पर आपके लाइक और कमेंट की ज़रूरत भी नही - फेसबुक पर अरबों अकाउंट्स है - थोड़ा उधर भी जाइये और रायता फैलाईये
संकोच ना करें मुझे हटाने में - यहाँ आपके और मेरे 5000 मित्रों में से 98% तो वर्चुअल मित्र ही है, इसलिए आँख की शर्म भी ना होगी - ना ही जीवन में आपसे मिलने की चाहत या सम्भावना है अब - यह तटस्थता ही अब जीवन का आधार है और सम्बल भी
सबको दुआएँ और स्नेह

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...