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Posts of 17 April 2019

मप्र के जगत मामा मामी - बापड़े कन्या भोज जिमाने में ही रह गए, करवा चौथ और आंवला नवमी अब कैसे मनेगी
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मर्दानगी और मजबूती की हद यह है कि परम्परा और ताकत को एक नौकरी पेशा छोटे से चैनल के पत्रकार Ravish Kumar से बात करने की हिम्मत पांच साल से नही हो रही
खुले आम बहस करने को जो तैयार नही वो मजबूती की बात कर रहा है, हड़बड़ाहट, हताशा और हारने की प्रत्याशा में दिल दिमाग़ और जुबान पर काबू खो बैठे है
मजबूत हो तो लाओ 36 दामादों को जो टैक्स पेयर्स का रुपया लेकर भाग गए, मजबूत हो तो हटा क्यों नही दी 370 और 35 - ए, कश्मीरी पंडितों को बसा देते, राम मंदिर बना देतें, मजबूत हो तो काहे इनकम टैक्स, चुनाव आयोग, सीबीआई की गोद मे बार बार छुप जाते हो
मजबूत हो तो तुम्हारे भक्त क्यों चढ़ आते है हर पोस्ट पर बदतमीजी करने और शावकों की तरह देववाणी बरसाने लगते है, क्यों सारे के सारे बदतमीजी की हद पार करके सठिया गए है
दुनिया की सबसे बड़ी भक्त मंडली और मजबूती से भरे विश्व नायक को कन्हैया से जीतने में पसीना आ रहा है, अपनी ही माय बोली गुजराती के दो युवाओं को समझा नही पाएं जो देश भर में मजबूती को ठोंककर कह रहे है कि सीमेंट नही, लोहा नही सिर्फ पी ओ पी का बना किला है किसी फाल्स सीलिंग की तरह जो भरभराकर गिरने वाला है
बोलो, बोलो - मजबूती का अर्थ हिंदी शब्दकोश में पढ़कर आओ - अगर कुछ पढ़े लिखें हो और एमए की डिग्री असली हो, फर्जी बारहवीं पास पर केस करो जो स्नातक से बारहवीं हो गई,
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उमा भारती बदजुबान है ही और इसकी बदजुबानी सबको याद है जब यह मप्र की मुख्य मंत्री थी पर प्रियंका को लेकर जो बोली है वह इसके साध्वी होने के फर्जीपन की भी कहानी बयां करता है
इसने गंगा का तो कुछ किया नही, ना कुछ और कर पाने की अकादमिक प्रशासनिक क्षमता है फिर इतना ही गुमान था तो चुनाव क्यों नही लड़ ली
मोदी सहित पूरे भाजपाई हारे या जीतें पर हताशा पागलपन और मूर्खता में संस्कार, सभ्यता, भाषा और बेचारे माँ बाप के दिये गुण अवगुण तो दूर अपने संघी संस्कार भी भूल गए है जो जीवन भर बौद्धिक पिलाता रहा और ये हेडगेवार, गोलवलकर और मोहन भागवत तक को भूल कर गली मोहल्लों के चलताऊ लोगों सी भाषा भी बोल रहे है और हरकते भी कर रहे है
जब जीत का , ईवीएम का और चुनाव आयोग का भरोसा है तो फिर ये हताशा कैसी, ये उन्माद क्यो, ये रुपये बांटने की जल्दी क्यों, ये इनकम टैक्स के छापे क्यों, ये नाटक क्यों, कन्हैया से घबराहट क्यों, प्रियंका से घबराहट क्यों
इंदौर, भोपाल में अभी तक कोई मिल नही रहा तो उमा को कहो ना, शिवराज को लाओ सामने, बाबूलाल गौर को लाओ सामने या मोदी को इंदौर से भरवा दो फॉर्म क्या पता बनारस में बाबा विश्वनाथ के कोप भाजन बन जाये
संयमित रहो और देश का कबाड़ा मत करो
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दिग्विजय सिंह के सम्मुख लड़ने में कोई सक्षम नही था - ना शिवराज, ना बाबूलाल गौर, ना कोई कद्दावर नेता तो अंत मे प्रज्ञा ठाकुर को सामने लाना पड़ा
सूत्रों की मानें तो स्थानीय विधायक, वर्तमान सांसद, महापौर और प्रदेश के नेता भी ख़िलाफ़ है और इनका कोई राजनैतिक अनुभव भी नही है सिवाय पिछले 15 वर्षों में कानूनी लड़ाईयां लड़ने के
दिलचस्प हो गई है भोपाल की सीट, जिस शिवराज को प्रदेश का लाड़ला, चहेता किसान पुत्र कहा जाता था, जिसने 13 वर्ष एकछत्र शासन किया वो भी दिग्विजय के सामने हार गया और बाकी कभी ना हारने वाले बाबूलाल गौर या पंडित कैलाश जोशी जी आदि भी सामने नही आ पाएं
दिग्विजय सिंह के सामने कमलनाथ की राजनीति, कांग्रेस की आंतरिक लड़ाईयां है, राहुल का बनाया नकारात्मक नरेटिव्ह चौकीदार चोर जैसा है और उनके अपने कार्यकाल के दौरान हुए सड़क बिजली पानी के मुद्दे है जिनमे से पानी की समस्या इस समय भयावह है ही, बिजली की समस्या बोर्ड में बैठे संघनिष्ठ अधिकारी जानबूझकर कटौत्री कर कमलनाथ का नाम डूबो ही रहें है, सड़क शिवराज ने बनवाकर श्रेय ले ही लिया है तो अब दिग्विजय सिंह कैसे निपटेंगे यह समय बताएगा
नर्मदा यात्रा से जो घाघपन कम हुआ था वो अब ज्वालामुखी की तरह फूटें , दूसरा उनके अपने उम्मीदवारों जैसे देवास से प्रहलाद सिंह टिपानिया आदि को जीताने की भी जिम्मेदारी है ही - उनके अपने सिपाहसालार और कांग्रेसी व्हिसिल ब्लोअर - डाक्टर आनंद राय, आशीष चतुर्वेदी या प्रशांत पांडे - नाराज है ही, बस यह सुखद है कि मीडिया में दिग्विजय सिंह ज़्यादा लोकप्रिय है और वे जानते है कि प्रशासन और झुग्गी झोपड़ी वालो की या मुस्लिमों की नस कहां है और कब दबाना है
इसके अलावा भोपाल में रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स की बड़ी फ़ौज है, ये आपको कुत्ते घुमाते या खुद एकांत पार्क में घूमते नजर आ जाएंगे, ये सब हरकारे दिग्विजय सिंह की मौज में शामिल रहें है - जाहिर है ये सठियाये हुए गिरगिट वफादारी निभाएंगे ही जिनमे मुख्य सचिवों से लेकर एनजीओ की दुकान चला रहे लोग शामिल है जो कोलार, नीलबड़, विदिशा, रायसेन, होशंगाबाद , सीहोर से लेकर भोपाल के चार इमली, अरेरा कॉलोनी, गुलमोहर, नहर पार या रायसेन रोड पर मिनाल में अकूत सम्पत्ति हथियाकर बैठे है और इनकी औलादें धँधा कर रही है दलाली से लेकर सप्लाय चैन मैनेजमेंट का वल्लभ भवन से लेकर विंध्याचल सतपुड़ा में
भाजपा की उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर के पास सिर्फ संघ का काडर है और आंतरिक विरोध - दंगों, मालेगांव विस्फोट में शामिल, स्व. सुनील जोशी हत्याकांड में लिप्त, शिवराज सरकार द्वारा दो बार गिरफ्तार किए जाने के बाद देवास जिला अदालत से बरी होना,पुलिस सुरक्षा में उज्जैन के सिंहस्थ 2016 में पवित्र स्नान करने और उग्र हिन्दू साध्वी की छबि जैसा अतीत है
कुल मिलाकर दो लोगों के बीच यह मुकाबला बेगूसराय जैसा मज़ेदार, मनोरंजक हो गया है और अभी मप्र के इंदौर का भाग्य दोनो पार्टियों ने खोला नही है, दूसरा शिवराज और साधना सिंह का क्या भविष्य है - विदिशा तो लगता है हाथ से गया अब, आडवाणी खेमे का होना और रिश्ता निभाने का खामियाजा मोदी और शाह वसूलेंगे ही यह तय ही था

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