इस गर्मी में जब लोग बस स्टैंड पहुंच रहे है तो प्रशासन के लोग बसों को अधिगृहित कर रहे है , यात्रा के लिए बसें नही है, रोते बिलखते बच्चे, गर्भवती महिलाएं कड़ी धूप में 43 डिग्री तापमान पर झुलस रही है और बस नही है - पूछिये क्यों, क्योकि प्रधान मंत्री अमरकंटक आ रहे है।
तीन चार मूल सवाल है जो विरोध नही बस कानूनी दायरे में देखने की जरूरत है : -
1- क्या बसों को अधिगृहित कर भीड़ भेजना कलेक्टर या आर टी ओ का काम है ?
2- क्या यह किसी संविधान में लिखा है कि किसी महामहिम के आने पर इतनी दूर के जिलों से भीड़ को इकठ्ठा कर, जानवरों की भांति ठूंस ठूंसकर ले जाया जाए आखिर इसके मायने क्या है ?
3- बसों को इस तरह के मजमे जहाँ व्यक्ति या पार्टी या सत्ता विशेष की ब्रांडिंग होती हो उसमे आम लोगों को कष्ट देकर सार्वजनिक यातायात के साधनों का दुरुपयोग करना कितना जायज है ?
4- जिले में आये दिन फलाना ढिमका आता रहता है और जिला कलेक्टर स्कूल बंद करवाकर बसें अधिगृहित कर लेते है वो भी प्रायः मुफ्त में और एक चलते फिरते तंत्र को बर्बाद कर देते है ये शासन, प्रशासन या संविधान के किस नियम के तहत करते है इसकी जानकारी दी जाए या अमरकंटक जैसे निहायत ही व्यक्तिगत और करोड़ों रुपये खर्च कर नदी की परिक्रमा की नौटँकी कर अपनी छबि बनाने वाले मुखिया को ये सलाह किसने दी ? और आखिर प्रधानमंत्री जैसे ताकतवर शख्स को आखिर क्या मजबूरी आन पड़ी कि वे सिर्फ सवा घण्टे के लिए आ रहे है ?
5- क्या माननीय हाई कोर्ट या मप्र मानव अधिकार आयोग स्वतः संज्ञान लेकर इस पर कुछ करेगा, क्योकि हमारा चौथा खम्बा तो बेहद अंधा और भ्रष्ट हो चुका है और इस समय सड़क छाप स्कूलों के विज्ञापन चेंपकर रुपया उगाही में व्यस्त है !!!
पहले ही करोड़ों रुपये बर्बाद हो गए - बाबा, मौलवियों, पादरियों, हीरो - हीरोइन और जोकरों के नाच गाने और नौटँकी में जबकि ठीक इसके विपरीत अमरकंटक के आसपास उमरिया, अनूपपुर, शहडोल और बुढ़ार के दूर दराज के गांवों में पीने को पानी नही, रोजगार ग्यारंटी का पेमेंट 3 वर्षों से नही हुआ है, आजीविका के अभाव में लोग पलायन कर रहे है, बच्चे कुपोषण से मर रहे है, हालात बिगड़ते जा रहे है और उस पर से सवा घण्टे के लिए फिर करोड़ों का खर्च। क्या नौटँकी है यह सब।
अगर मेरी बातों पर विश्वास ना हो और जिसे इन इलाको के गांवों की वस्तु स्थिति जानना हो वे मित्र Santosh Kumar Dwivedi, Birendra Gautam से पूछ सकते है कि इन लोगों के इस गर्मी में कड़े संघर्ष के बाद भी पीने को पानी नही मिल रहा है, रोजगार ग्यारंटी एक्ट होने के बाद रुपये का भुगतान तीन वर्षों से नही हुआ है। ये साथी नामजद ग्रामवार आंकड़ें बता देंगे। ये क्षेत्र हाल ही में दो दो चुनाव से उकता गया है जिसमे एक अरब रुपया कम से कम बहाया गया होगा कुल मिलाकर फिर स्थितियां सुधरने के बजाय बिगड़ी ही है।
जय नर्मदा मैया की, नर्मदे हर, हर हर !!!
सिंगरौली के कलेक्टर का पत्र जो सिर्फ एक मांग के लिए 86 लाख की मांग कर रहा है
(नोट - तार्किक और संवेदनशील लोग यहां अपनी बात तर्क से मुद्दे पर रखें - कोई पार्टी या राजनैतिक दल विशेष को लेकर यह पोस्ट नही लिखी गई है और अगर पोस्ट, इसका उद्देश्य और भाषा समझ ना आये तो मूर्खतापूर्वक कमेंट कर अपना मानसिक दिवालियापन यहां प्रदर्शित ना करें।)
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