इन परछाईयों को उजालों की दरकार है
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देवास का सांस्कृतिक परिवेश बहुत समृद्ध रहा है संगीत, ललित कलाएं और चित्रकला यहाँ की प्रमुख विधाएं रही है परन्तु नाटय कर्म में यह शहर पिछड़ा रहा. मुझे याद पड़ता है मराठी का प्रसिद्द नाटक "फ़क्त एकच प्याला" के रचनाकार गडकरी जी यही के थे. स्थानीय महाराष्ट्र समाज ने काफी समय तक नाटकों को संरक्षण दिया कालान्तर में यह मुहीम धीमी पड़ गई जब लोग टेलीविजन में व्यस्त हो गए और शौक की बात व्यवसाय में बदल गई. इधर दो तिन समूह बनकर उभरें भी, परन्तु वह दम खम नहीं दिखा जो नाटक को स्थापित कर सकें. हमने अपने जमाने में नुक्कड़ नाटक करके बहुत चेतना और अलख जगाने का काम किया था जिले के लगभग सभी गाँवों में , परन्तु समय के साथ वह भी खत्म हो गया. स्व अमित कवचाले ने "अभिव्यक्ति संस्था" बनाकर काफी काम करने की कोशिश की थी परन्तु अल्पवय में उनके निधन के कारण यह भी गति नहीं पकड़ पाई. कहने को यहाँ से चेतन पंडित ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में प्रवेश लेकर नाटको और फिल्मों में बहुत झंडे गाड़े पर शहर में नाटक का माहौल दुर्भाग्य से नहीं बन पाया.
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कलाकारों में सर्वश्री दिलीप चौधरी, कल्पना नाग, प्रभात माचवे, रविश ओझा, अंकुर बैरागी, पिहू ठाकुर, कविता ठाकुर, निखिल वर्मा और वंशिका माचवे भाग ले रहे है. गत एक माह से मेहनत करके ये अपने पहले शो को एक बेहतरीन और एतिहासिक बनाना चाहते है. उम्मीद की जाना चाहिए कि सुप्त पड़ी यह विधा इस नाटक के माध्यम से नए कलाप्रेमी उभरेंगे और नए कलाकार प्रेरणा लेकर इस शहर में नाटको का अनुशासन और प्रयोग फिर से करेंगे.
प्रवेश पास और अन्य जानकारी के लिए श्री प्रभात माचवे से संपर्क किया जा सकता है इस नम्बर पर 9826245543. हमारी और से इस समूह को अशेष शुभकामनाएं और आप सबका 31 मई को मल्हार स्मृति मंदिर, देवास में बेसब्री से इंतज़ार है.
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