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Justine Biever and Social Worker of CG state.



जिस अंदाज में जस्टिन वीबर मूर्ख बनाकर गया है उससे जस्टिस काटजू फिर एक बार सामयिक हो गए है ।
वैसे उसकी कोई गलती नही वह तो बच्चा है 23 साल का, उसे बताया गया होगा कि ये गत 70 साल से ये सुतिये बन रहे है और पिछले तीन साल से तो रोज बन रहे है, 15 लाख लेने के लिए अम्बानी अडानी जैसो को अमूल्य देश जोकरों के हाथों सौंप दिया तो 75 - 50 हजार का टिकिट तो यूँही बर्बाद कर सकते है, बाहुबलि जैसी घटिया फ़िल्म को अरबों रुपये से देख सकते है, कूड़े कचरे और प्रदूषित गाड़ियों को एक दिन में खरीद सकते है तो 5 हजार का निम्नतम टिकिट का क्या, अरबों रुपये लगाकर संसद के सत्र ठप्प रख सकते है तो स्टेडियम की सजावट में खर्च हुए करोड़ो का क्या, उसे समझ आ गया कि ये वो ही बेवकूफाना कौम है जो घण्टों लाइन में लगकर नोटबन्दी में जीवन बर्बाद कर देती है !!!
जो जनता शराब, वेश्यावृत्ति और नशे के लिये देश का सोना गिरवी रख देती है, एक जियो की मुफ्त सिम पाकर अपने देश का नाम सर्वाधिक पोर्न देखने वालों में शामिल कर लेती है, 5000 हजार करोड़ घण्टे वाट्स एप से वीडियो कॉल रोज करती है। वस्तुतः यह गाय और मंदिर मस्जिदों के लिए लड़ मरने वाली कौम है जो दंगे कर अपने ही इनकम टैक्स के रुपयों से बनी संपत्ति को जलाकर राख कर देती है, अपनी ही नदी पर परलोक में मोक्ष पाने को प्रदूषण कर देती है, पीर पैगम्बरों और बाबाओं के सत्संग और प्रवचनों पर करोड़ों रुपया रोज बर्बाद करने वाली कौम दुनिया मे कही नही है। यहां के कोर्ट कचहरी का समय तलाक और समलैंगिकता हो या ना हो पर जाया होता हो, जहाँ मशीनों को हैक करके दिखाने की होड़ में प्रशासन और राजनैतिक पार्टियाँ अपना समय और दिमाग़ लगाती हो, जहाँ कुपोषित बच्चों के बजाय नदियों की परिक्रमा पर राज्य प्रायोजित भौंडे नाचगाने फिल्मी हीरो हीरोइन करते हो, जहां नेता गरीब के घर खाना खाने जाते है और यह दिखाने के लिए भांड मीडिया करोड़ो वसूल लेता हो उस देश मे एक नही हजारों जस्टिन वीबर रोज आना चाहिए। जिस देश मे कुम्भ और सिंहस्थ जैसे मेलों में राज्य आगे बढ़कर अपना खजाना लूटा देता हो, जहाँ जनता के रुपयों से राजनेता और पदेन लोग मंदिर मस्जिदों में घूम आते हो, बाबाओं की दवाई फैक्ट्रियों में चूरण की गोलियों को बेचने हवाई जहाज से जाते हो या इज्जतिमा जैसे नितांत धार्मिक उत्सव में सरकारी मशीनरी लगकर अपना समय देती हो उस देश मे क्या रुपये की बर्बादी, अरे साहब सोने की चिड़िया है खूब नोचो और लूटो !!!
गलती जस्टिन वीबर की नही है पुरानी कहावत है जैसे को तैसा !!!
Vishnu Nagar जी आपने इस नौटँकी बाज के आने के पहले चिंता व्यक्त की थी और यह मेरा Post visit विश्लेषण है।
बधाई हिंदुस्तानियों !!!

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प्रदेश की स्ट्रांग एक्टिविस्ट,मैनेजमेंट में ट्रेंड, विदेशों से अंग्रेज़ी में पढ़ीलिखी, जमीन से जुड़ी हुई समाज सेविका जब दूरस्थ गांव में भ्रमण के लिए पहुंची तो चकाचक चार पहिया गाड़ी चलाने वाले गरीब ड्राइवर पर दबाव बनाया कि इसी नदी के रास्ते से गाड़ी गांव में ले चलो नही तो इम्प्रेशन कैसे पड़ेगा ? ड्राइवर बेचारा मालिक का गुलाम था, साली गाड़ी गड्ढे में डाली, पंचर हुई और सीधे जाकर धँस गई गड्ढे में और बुरी तरह से ससुरी फंस गई। अब तीन किलोमीटर तक समाजसेविका को पैदल जाना पड़ा, इस गर्मी में पसीना पसीना हो गई।
जाते ही गांव में आदिवासियों के घर भात और छोटे देशी टमाटर की चटनी खाकर उन्ही के एक कमरे में पसरकर सो गई अब क्या, दूसरे दिन सुबह दस बजे उठी और दहाड़ी कि आदिवासियों को बुलाओ और मीटिंग करवाओ। स्थानीय कार्यकर्ता डर गया, बोला मैडम जी बैठक तो हो गई , और लोग अब तेंदू पत्ता तोड़ने चले गए अब तो वो शाम को ही आएंगे।
उफ़्फ़ गाली देते हुए समाज सेविका ने ट्रेक्टर को बुलाने के लिए मात्र 500 दिए और 500 ड्राइवर को देने के लिए कहा ताकि ट्रेक्टर आये और गड्ढे में फंसी गाड़ी निकल सके। ड्राइवर भुनभुना रहा था और मैडम भी। मैडम का कहना था कि ये आधे रुपये ड्राइवर को देना ही होंगे क्योंकि उसे गाड़ी चलाना नही आता !!!
दोपहर ग्यारह बजे गाड़ी निकली फिर मैडम ने अपना शेष दौरा निरस्त किया , फिर कभी का बोलकर राजधानी की ओर निकल गई। जाते समय स्थानीय कार्यकर्ता को धमका गई कि अब तेरी नौकरी खा जाऊंगी, तुम ढंग के गांवों का चयन नही कर सकते पक्की सड़क हो जहां और नेटवर्क मिलता रहें कम से कम 3 जी । बेचारा काँप रहा था अब तीन हजार की तनख्वाह वाली नौकरी तो जाएगी और दूसरा इन दूरस्थ आदिवासी 20 गांवों के लिए काम करने वाला, सायकिल से घूमने वाला कहां से आएगा ?
देश मे आदिवासियों का उत्थान वाया एनजीओ वाया विदेशी रुपयों के जारी है और एक क्रांति बस होने ही वाली है !!!

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