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कॉलोनी में घर के ठीक सामने रहने वाले श्री उमाकांत नागर जी की माताजी का आज देहांत हुआ। प्रवास के बाद आज आया तो यह खबर मिली। श्मशान से लौट रहा हूँ अभी ।
लग रहा है कि हम कितने अच्छे समाज मे रहते है जहां श्मशान में कोई भेदभाव नही, जात पात नही, ऊंच नीच नही, सब अपनी जिम्मेदारी समझ कर कंडे, पानी, लकड़ी आदि लाने में और सब काम बगैर किसी निर्देश के स्वचालित ढंग से करने लगते है, शांत रहते है, पहचान ना होकर भी सब कितने अनुशासित रहते है, शांत रहकर आपस मे तटस्थ भाव से बातचीत करते रहते है। एक दूसरे को घर या गली तक भी छोड़ देते है पेट्रोल डीजल की परवाह किये बगैर !!!
लगता है जीवन मे यह सीखने समझने के लिए और अपनाने के लिए माह में एक दो बार श्मशान जरूर जाना चाहिए, भले ही किसी की भी मिट्टी में चले जाएं - ताकि यह परिवार, समुदाय, समाज , प्रदेश और देश और सबसे ज्यादा भाईचारा बना और बचा रहें। अनुशासित और समझदारी दिखाते हुए साथ मिलकर सब रहें ।
नागर जी की माताजी को नमन
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