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देवास में सरकारी स्कूलों की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने की जरुरत 22/5/17


मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र का देवास एक महत्वपूर्ण शहर है, एक ज़माने में यह शहर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी हुआ करता था. सन 1970 में बैंक नोट प्रेस खुलने के बाद यहाँ उद्योग धंधों का प्रादुर्भाव हुआ और तेजी से कल कारखाने खुले. यदि थोड़ा और इतिहास में जाए तो ग्वालियर से धार तक का पूरा इलाका मराठा साम्राज्य के अधीन रहा है जहां शिक्षा एक महत्वपूर्ण और राज्य की जिम्मेदारी हुआ करती थी. क्या कारण है कि यह शहर लगातार पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ता गया और यहाँ के छोटे नौनिहालों और बच्चों को इंदौर तक रोज तक़रीबन तीन से चार घंटें यात्रा करके शिक्षा प्राप्त करने जाना पड़ता है.

सरकारी स्कूलों की स्थिति देखें तो हम पायेंगे कि शहर की आबादी के हिसाब से सरकारी स्कूल कम है खासकरके उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बहुत ही कम है प्राथमिक और माध्यमिक की संख्या ठीक ही है. निजी स्कूलों का जाल पुरे शहर में फैला हुआ है जो शिक्षा के नाम पर सिर्फ व्यवसाय कर रहे है. सरकारी विद्यालयों में प्रशिक्षित अध्यापक है जो विषय के ज्ञान के साथ पर्याप्त अनुभव भी रखते है परन्तु पालकों को निजी विद्यालयों की लोक लुभावन शैली पसंद आती है और वे जेब कात्कत महँगी फीस देकर अपने बच्चों को इन विद्यालयों में पढ़ा रहे है यहाँ तक कि इंदौर के पांच सितारा स्कूलों में भेज रहे है. निजी विद्यालयों में ना पर्याप्त अनुभवी शिक्षक है ना अनुभव और स्थाईत्व तो बिलकुल ही नहीं है स्कूल संचालक चाहे जब शिक्षकों को बीच सत्र में निकाल देते है जिससे बच्चों के मानसिक स्तर और अधिगम पर प्रभाव पड़ता है.

मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है देवास शहर में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए हाई स्कूल और उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों की संख्या बढ़ाई जाना चाहिए जो उत्कृष्ट विद्यालय जैसा माहौल, परिणाम और शिक्षनेत्तर गतिविधियों को प्रोत्साहित कर सकें. यहाँ के विद्यार्थी योग्य, प्रतिभावान और मेहनती भी है यदि उन्हें पर्याप्त माहौल और मौके मिले तो वे देश में जाकर अच्छा काम कर सकेंगे. सबसे महत्वपूर्ण है कि यहाँ कोई भी व्यवसायिक संस्थान नहीं है अभी तक , यह पिछले नेतृत्व की ही कमी थी कि इस शहर में पोलिटेकनिक कॉलेज अभी खुल पाया जो अभी भी शहर के विकास में कोई योगदान नहीं दे रहा. मेडिकल कॉलेज की बात वर्षो से होती रही है परन्तु अभी भी यह प्रयास मूर्त रूप लेता नहीं दिखता. तीसरा सबसे महत्वपूर्ण है कि अभी भी शहर में इतने औद्योगिल कारखाने है परन्तु यहाँ कोई व्यवसायिक पाठ्यक्रम नही है जो बच्चों को बारहवीं के बाद प्रशिक्षित करके आजीविका उपलब्ध यही करा सकें. कौशल विकास कार्यक्रम के नाम पर शहर में एनजीओं की भरमार है परन्तु वास्तव में स्थिति बहुत ही बुरी है. नौकरियां है नहीं ऐसे में यह समय की मांग हा कि बच्चों को सीधे ही व्यवसायिक पाठ्यक्रमों से जोड़ा जाए ताकि वे अपने ही शहर में रोजगार पा सकें. इस शहर में बाहर के लोग आकर रोजगार पा गए उनकी दूसरी या तीसरी पीढ़ी यहाँ खप गई परन्तु स्थानीय निवासियों को कुछ नहीं मिल पाया.


अब जरुरत है कि निजी स्कूलों के जाल से निकालकर बच्चों को सरकारी स्कूलों में लाया जाएँ और उनकी दक्षता और कौशल बढ़ाकर स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित करके आजीविका उपलब्ध करवाई जाएँ, इसके लिए सरकारी स्कूलों को भी तैयार करना होगा, शिक्षकों को प्रोत्साहित करना होगा और सरकारी स्कूलों की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करना होगा. इस दिशा में सभी स्तर पर प्रयास करना होंगे, निजी विद्यालयों का सच सामने लाना होगा और पालकों में यह भावना जगाना होगी कि सरकारी स्कूल बेहतर और श्रेष्ठ है जो सही और योग्य दिशा निर्देशन कर सकते है. जब तक हम इस तरह के प्रयास नहीं करेंगे शहर में शिक्षा की स्थिति शोचनीय ही रहेगी. 

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