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देवास में प्रेमचंद सृजन पीठ का कार्यक्रम और कहानी पाठ Posts of 5 June 16





कहानियों को अनुभव और कल्पनाशीलता समृद्ध बनाती है

आज की कहानियां सजग चौकन्नी और समय का आईना दिखाती कहानियाँ है। कहानियों को जीवन अनुभव कल्पनाशीलता और कला समृद्ध तथा पठनीय बनाती है। यह बात वरिष्ठसाहित्यकार सूर्यकान्त नागर, इंदौर ने कहानी पर आधारित कार्यक्रम में अध्यक्षता करते हुए कही। वर्तमान कहानी पर चर्चा और कहानी पाठ का ये कार्यक्रम प्रेमचन्द सृजन पीठ उज्जैन द्वारा शहर में आयोजित किया गया था। कार्यक्रम संयोजक मोहन वर्मा ने बताया कि इस कार्यक्रम में अपने समय के तीन कहानीकारो रवीन्द्र व्यास, इंदौर, शशिभूषण, उज्जैन तथा संदीप नाईक, देवास ने अपनी ताज़ा कहानियों का पाठ किया साथ ही वरिष्ठ कथाकार डॉ प्रकाश कान्त ने कहानियों के सफर पर अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी दी। कार्यक्रम के आरंभ में प्रेमचन्द सृजन पीठ के निदेशक ने सृजन पीठ के कार्यक्रमों की जानकारी दी। पश्चात सृजन पीठ केनिदेशक जीवन सिंह ठाकुर,ओम वर्मा , बहादुर पटेल तथा ब्रजेश कानूनगो ने अतिथियों का स्वागत किया। कहानियों की विकास यात्रा पर बोलते हुए डॉ प्रकाश कान्त ने कहा समय के साथ कहानी अपना पाठ बदलती रही है। कहानियों में दलित विमर्श, नारी विमर्श की बात होती रही है जबकि कहानी विस्थापन, मुआवजा , किसानों की आत्महत्या और हमारे आसपास के सवालों को लेकर भी बदलते समय के साथ हमारे बीच गूंजती रही है। कहानी पाठ की शुरुवात शहर के रचनाकार संदीप नाईक ने की और "माधुरी दीक्षित " कहानी के माध्यम से एक व्यक्ति चित्र प्रस्तुत किया। इंदौर से आये रवीन्द्र व्यास ने एक प्रेम कहानी "सातवीं सीढी और पीले फूल" तथा पत्रकारिता के भीतर के सच को उजागर करती कहानी "यह बहुतसारी चीजों को भोंगली बना लेने का समय है " का पाठ किया। उज्जैन के आये शशि भूषण ने साधनहीन ग्रामीण परिवार के बीच के रिश्तों के तानेबाने पर आधारित कहानी "छाछ " का पाठ किया। कहानी पाठ के बाद अतिथियों को सृजन पीठ की ओर से अभिनन्दन पत्र भेंट किये गए। 



कार्यक्रम में प्रभु जोशी, प्रदीप मिश्र ,सत्यनारायण पटेल ,ब्रजेश कानूनगो इंदौर तथा डॉ गजधर, विजय श्रीवास्तव, दीक्षा दुबे,संजीवनी कांत, वैदेही सिंह, डॉ डी पी श्रीवास्तव, एस एम जैन, बी के तिवारी, मनीष वैद्य, मेहरबान सिंह,  दिनेश पटेल,अमित पिठवे, रमेश आनंद, अमेय कान्त ,राजेंद्र राठोड, डॉ इक़बाल मोदी, कुसुम वागडे सहित अनेक साहित्यप्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम का सञ्चालन मोहन वर्मा ने किया एवं आभार मनीष शर्मा ने माना।



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कित्ती कविताएँ पेल देते हो रे तुम लोग साला एक दिन में ? देवताले जी सही कहते है कि कविता लिखना आजकल पापड बड़ी उद्योग हो गया है और फिर उम्मीद करते हो कि हम वो पढ़े, लाईक मारे और कमेन्ट भी करें. माय फूट......... साला घटिया विषय और सड़े गले मुद्दे - लड़की, चाँद सितारे, सूरज, पेड़, चिड़िया, पंद्रह साला से साठ साला आदमी औरतें और माहवारी से लेकर रोमांस तक .कुछ लज्जा शेष है या बेच खाए वो भी........... डूब मरो हिन्दी को बदनाम कर दिया है.......
यदि आप 40 से 60 साल तक के आदमी और औरतों पर धाँसू किस्म की कविताएँ लगतार पेल सकते है तो हिंदी में आपका नाम ससम्मान लिया जाएगा और आप अमर भी हो सकते है फिर आप कवि हो या ना हो इससे कोई फर्क नही पड़ता। 
और छापने छपने की चिंता न करें वाट्स एप से लेकर फेसबुक है ना 50-60 लाइक्स और दो चार कमेंट तो मिल ही जायेंगे।

चलो बन्द करो यह पढ़ना और जाकर लिखो 55 साला आदमी और 45 साला औरतें !!!.

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