प्रधानमंत्री ने इलाहाबाद में कहा कि " अगर ढंग से काम नही किया तो लात मारकर बाहर कर देना "
लम्पट, लठैत और गुंडे मवाली जब सत्ता में आते है तो भाषा का सबसे पहले चीर हरण होता है, और फिर इनका तो गांधी वध से लेकर गुजरात, बाबरी मस्जिद, मुज्जफर नगर, दादरी, और अब ताजे नकली कैराना तक संहारों में साफ़ हाथ है , अस्तु यदि "लात घूंसे माँ बहन और आदि अलंकारिक शब्दों का प्रयोग" सांविधानिक पद पर बैठा कोई भी शख्स करता है और मीडिया इसे प्रचारित करता है तो कोई गलत बात नही है।
फांसीवाद की दबे पाँव नहीं खुले आम कानूनी रूप से लाल कार्पेट बिछाकर स्वागत करने वाली बात है यह और अब इस बहस का भी कोई मतलब नही कि पन्त प्रधान तो श्रेष्ठ है परंतु उनके सिपाही , संगी साथी - जो साधू संतों के भेष में सांसद बने बैठे है या विधायक जो सरकारें गिराने के लिए या राज्य सभा जैसे पवित्र सदन में खरीदी फरोख्त से लेकर गुंडई करने माहिर है, खराब है। जब तक ऊपर से श्रेय या राज्याश्रय नही होगा तब तक कोई चूँ चपड़ नही कर सकता।
दुखद है एक सबसे बड़े लोकतन्त्र के प्रमुख का इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करना, और हम घर में बच्चों को, किशोरों को, युवाओं को शिष्टाचार सिखाते रहें । दूसरा महत्वपूर्ण यह कि यह लात मारकर भगाने के लिए मुझे किसी भी हालत में इतने गलीज स्तर तक जाने की जरूरत नही है, मैं भारतीय संविधान का जागरूक और सम्मानित नागरिक हूँ जो वोट की ताकत जानता है, गत 60 सालों में त्रस्त होकर बहुत ही शिष्ट तरीके से कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया था, हाल ही हो रहे विभिन्न चुनावों में जनता ने यह किया हो - मुझे याद नहीं पड़ता कि लोकतन्त्र में "लात" की जरूरत किसी को पडी हो, हो सकता है कि दो वर्षों में अपनी अकर्मण्यता, नाकामी, और देश के लोगों के अच्छे दिन ना ला पाने के लिए अभी से ग्लानि भाव जाग गया हो और परिणीति स्वरुप यह दिवास्वप्न दिखने लगा हो।
यकीन मानिए महामना हम आपका, अपने देश के बहुमत का और "प्रधान मंत्री" नामक सांविधानिक पद का दिल से सम्मान करते है और हमारे खून, संस्कृति और परम्परा में लात मारना नहीं सिखाया गया है।
हमारे धर्म में रावण को भी हमने इज्जत दी है, मरते समय हम उसके चरणों में बैठकर ज्ञान ले रहे थे, हमने कंस को राजा माना है, हमने दुर्योधन, शकुनि, सूर्पनखा, विभीषण को भी सम्मान दिया, ताड़का से लेकर भस्मासुर तक को इज्जत दी और उनके मृतक शरीर को भी बहुत सम्मान से रखा और पूजा है, अरे शिखण्डी तक हमारे धर्म में पूजनीय है। हमने कभी लात का प्रयोग नही किया क्योकि हम अपने वोट की कीमत जानते है, ऐसे ओछे विकल्प हमारी संस्कृति में नहीं है, आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी या किसी अन्य पार्टी को भी ऐसी मात देने की जरूरत नही पडी।
कृपया चुनाव की वैतरिणी पार करने के लिए प्रभु राम की तरह केवट पर आश्रित रहें और उसके पाँव पड़े, लात मारने जैसी बात कर अपनी शिक्षा, सभ्यता और घरेलू संस्कारों की महत्ता का प्रतिपालन और दिखावा न करें।
हम शांतिप्रिय लोग है और वसुधैव कुटुम्बकं में यकीन करते है क्योकि असली हिन्दू है , 1992 में रथ यात्रा से प्राप्त लायसेंस धारी नही सनातन और शाश्वत हिन्दू । आपको देश हित में सदबुद्धि परम पिता परमेश्वर दें।
इति, ॐ शान्ति !!!
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