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हिंदी में साहित्य की पत्रिकाएं लगातार महंगी होती जा रही है, भयानक मोटी, स्थूल, विचारशून्य, और एक विशेष किस्म के लोगों को छापकर उपकृत करती रहती है और उस पर से विशुद्ध व्यावसायिक बुद्धि से प्रकाशन गृह चलाने वाला और हर जगह जुगाड़ और संपर्कों से अपनी कूड़ा किताबें खपा देने वाला प्रकाशक गर्व से प्रेस लाईन और हर तीसरी पंक्ति में लिखेगा "अवैतनिक और अव्यवसायिक" साथ ही गरीबी का रोना ऐसा रोयेगा कि दुनिया का सबसे बड़ा भिखारी वही हो। 100 से लेकर 500 रूपये तक पत्रिकाएं निकाल रहे है। रेतपथ से लेकर तमाम उदाहरण सामने है।
मजेदार यह कि हरेक के अपने बन्धुआ है जो लपक कर पेल देते है वही कूड़ा कचरा जो सदियों से लिखकर अमर होना चाह रहे है और नोबल पुरस्कार की आस में मुंह धोकर बैठे है, ये वो लेखक है जो साहित्य के आतंकवादी और नक्सल गैंग के सरगना है और मजाल कि कोई और कुछ कर लें।
बहरहाल इतनी भारी कचरा पत्रिकाओं को ना पढ़ें ना खरीदें ये सिर्फ स्वान्त सुखाय और आत्म स्खलन के औजार है जिससे ये प्रकाशक और लेखक हिंदी और पढ़ने वालों की हत्या कर रहे है। इससे बढ़िया मनोहर कहानियाँ, सत्यकथा, कर्नल रंजीत के उपन्यास पढ़े जाएँ मनोरंजन तो होगा !!!
अड़सठ तीरथ है घट भीतर .....
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शनिश्चर जयन्ति के अवसर पर देवास में आज विदुषी कलापिनी कोमकली का गायन हुआ। सन् 2003 के बाद इस मन्दिर प्रांगण में कलापिनी का गायन सुनना सुखद था, यह कार्यक्रम एकदम निजी महफ़िलों की तरह था जहाँ रसिकों को शास्त्रीयता की बारीकी भी समझने को मिली और भजनों का रस भी।
प्रारम्भ में सुश्री कलापिनी का स्वागत मराठी की वरिष्ठ कवि और शिक्षाविद् डा प्रफुल्लता ताई जाधव ने किया।
कार्यक्रम का आगाज स्व कुमार जी रचित एक बड़ा ख्याल से की जो राग श्री में निबद्ध था। स्व कुमार जी एक बार नाशिक से ट्रेन से लौट रहे थे तो रास्ते में उन्होंने वणी की देवी के दूर से दर्शन किये और कहा कि हे माँ मैं दूर से दर्शन कर कृतार्थ हो गया हूँ और आकर उन्होंने इस राग को रचा। इसके पश्चात राग तिलक में स्व कुमारजी रचित एक बंदिश और सुनाई, भजनों में मराठी भजन भी थे। श्री बद्रीनाथ जी की आरती सुनना बहुत ही रोचक और सुखद था। समापन मीरा के भजन से किया ।
कुमार जी और वसुंधरा ताई के जाने के बाद कलापिनी ने जिस तरह पूरी परम्परा और संस्कृति को सम्हाला है वह बहुत सम्बल देने वाला है , एक विदुषी होने के नाते वे गुरुत्तर पद को वे देवास में रहकर निभा भी रही है और थका देने वाली यात्राएं भी करके भारतीय शास्त्रीय संगीत की अक्षुण्णता को भी बनाये रख रही है, यह गौरव की बात है।
देवास के संगीत प्रेमियों ने इस साँझ को बहुत ध्यान से सुना और निर्गुणी भजनों का आस्वाद लिया।
कार्यक्रम में हारमोनियम पर थे उपकार गोडबोले, तबले पर विवेक क्षीरसागर, तानपुरे पर रामानुज विपट ने उत्कृष्ट संगति की।
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इन्हें कोई पहचानता है क्या देवास की बड़ी हस्ती है ?
मैं इन्हें 1970 से जानता हूँ। ये मेरे गुरु है और प्रा वि क्र 6, उस्ताद रज्जब अली खां मार्ग में शिक्षक थे, नाखून से चित्र बनाने वाले रमेश सर हमेशा हमारे लिए कौतुक का विषय हुआ करते थे। पूरे स्कूल की दीवारों को सजा रखा था Jaiprakash Chouhan ने आज सर से उनके घर मिलवाया, वृंदावन महाराज की गली और वो सारा बचपन याद आ गया। 1.1.1935 को जन्मे रमेश जी इन दिनों बीमार है स्मृति दोष के भी शिकार है पर जब बहुत देर तक मैंने याद दिलाया तो उन्होंने अपने छात्र और प्रसिद्द चित्रकार अफजल सर को भी याद किया और ढेर सारी बातें की। नाखून से चित्र बनाने वाले कितने लोग अब बचे है नही जानता पर चित्रों से प्यार रमेश सर ने करना सिखाया और बाद में कला गुरु विष्णु चिंचालकर से पूरी समझ विकसित की।
बहुत अच्छा लग रहा है बचपन और स्कूल की स्मृतियाँ सच में जीवन ऊर्जा है और यह कोई कभी किसी से ना छीनें।
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