फिर भी खिल रहे है बिना नागा फूल दोपहरी में
महक रहा है पुदीना और मोगरा इस ताप में
तुतलाती जुबान से विकसित हो रही है भाषा
लार्वा से बन रही है मछलियाँ और मेंढक
एक ठहरे पानी में तैर रहे है अमीबा अभी भी
हाथी और शेर को चुनौती नही दे पाया कोई
पेड़, पहाड़ और ऊँचे हो रहे है हर पल
जमीन में लगातार फ़ैल रही है जड़े
हवा अभी भी आवारा सी घूम लेती है उन्मुक्त
दुनिया में अभी भी प्रेम पींगे पसार लेता है
सूरज वक्त पे निकल आता है उसी ऊर्जा से
चाँद की गति भी बदल रही है पक्ष दर पक्ष
जुगनू रोज लड़ते है मजबूत अंधेरों के खिलाफ
नन्हे से बीज फोड़कर उग आते है बंजर धरती को
सब कुछ वैसा ही है ठहराव और बदलाव
पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना बदस्तूर जारी है
सिवा इसके कि एक गिरगिट को लगता है कि
उसके हर पल रंग बदलने से दुनिया बदल जायेगी
उसके अनुसार और थम जायेगी गति पूरे ब्रह्माण्ड की
और वह समय को थाम लेगा मुट्ठी में ।
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बुढ़ापा बचपन की शैतानियों और जवानी के सद-लक्षणों से गुजरता पाप होता है जिसे भुगतने के लिए सबको तैयार रहना चाहिए।
- बूढ़ी काकी (प्रेमचन्द) से मुआफ़ी सहित
सुधार की जुगाड़ में झूठ से नाता भी ना जोड़े क्या ?
-प्रेमचन्द से मुआफ़ी सहित !
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अबकि बार
लात की दरकार
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