महंगाई के खेल में लिप्त मोदी सरकार
इस देश के राजनीतिज्ञों, प्रशासन और नीति निर्माताओं को आम लोगों से कुछ लेना देना नहीं है यह तो स्पष्ट ही है पर सुप्रीम कोर्ट और रबर स्टाम्प राष्ट्रपति भी इतनी बेरुखी दिखाएँगे यह पता नही था।
सरकार के हाथ से शासन और प्रशासन दोनों छूट गया है या तो सरकार खुद इस पूरे महंगाई के खेल में शामिल है या भृष्ट, गुंडे मवालियों के दबाव में कुछ भी कर पाने में असमर्थ है।
यह दुर्भाग्य है कि सब्जी से लेकर खाने की वस्तुएं और पेट्रोल डीजल पर अब बाजार का कब्जा है।
मनमोहन रचित बाजारीकरण और खुलेपन से वर्तमान सरकार को और ज्यादा मौक़ा मिल गया कि वह देश को कैराना से लेकर उलजुलूल मुद्दों में उलझाये रखे और अम्बानी से लेकर गली मोहल्ले के टुच्चे व्यापारी नंगा नाच करें और सुबह शाम निक्कर पहनकर देश भक्ति में नमस्ते सदा वत्सले गाते रहें।
जिस देश के विकास के खोखले नारे लेकर विदेशों में भीख का कटोरा और चापलूसी का छद्म रचते हो वह कितना घिघौना है, छि !
भारतीय जनतंत्र में किसी भी सरकार ने दो साल में इतना खराब शासन कभी नही किया, यहां तक कि जिन भृष्ट कांग्रेसियों को हटाकर आप आये थे अच्छे दिन लाने उन्होंने भी 60 साल लिए देश को खोखला करने में पर आप तो जड़े ही खोद रहे हो हुजूर, शर्म आती है या वो भी बेच खाई है निर्लज्जों की तरह।
तुमसे तो अच्छे वो पिछड़े देश है जो अपनी जनता के लिए जीते मरते है, तुमने तो अपने घर परिवार को बेच दिया और जिस भारत माता की दुहाई देते नही थकते उसे विश्व बाजार में सरेआम कलंकित कर दिया। इस महादेश के लोग अब तरस रहे है और कोस रहे है और तुम ना जाने किस लोक में दिवा स्वप्न देख रहे हो। शर्मनाक है एक लोकतंत्र में मुखिया और समूची राजनीति का इस तरह से गैर जिम्मेदार हो जाना और बिक जाना !!!
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