जैन दर्शन में एक सिद्धांत होता है - देखने का, दृष्टा का, सम्यक दर्शन, ज्ञान और सम्यक चारित्र का; जो कहता है कि हर वस्तु जीव का एक चरित्र और स्वभाव होता है. जैसे मिर्ची है, तो उसका चरित्र चरपरापन है, तीखापन है; पानी का चरित्र बहना है, गीलापन है, काक्रोच का स्वभाव गंदगी में रहने का है, मच्छर का स्वभाव काटना है, जौंक का स्वभाव खून चूसना है, सांप का विष वमन करना है, जहर का स्वभाव जहर फैलाना है, गुलाब का स्वभाव खुशबु है,.....आदि-आदि. जब आप इनसे इनके स्वभाव और चरित्र के अलावा किसी व्यवहार की अपेक्षा करेंगे, तो वह स्वभाव कार्यरूप में आना संभव न होगा और अपन कुड़ेने लगेंगे. अब गलती उस जीव या वस्तु की तो नहीं है; कि वह हमारे अनुरूप व्यवहार नहीं करते; गलती हमारी है कि हम गलत अपेक्षा या उम्मीद कर रहे हैं. वे तो अपने चरित्र और स्वभाव के अनुरूप की कार्यरत हैं.
अब ऐसे में क्या करें? तो सिद्धांत कहता है कि जब आप चरित्र और स्वभाव को बदल नहीं सकते, तो अपनी भूमिका तय करो और सिर्फ देखो कि क्या हो रहा है, कौन कर रहा है? आप अपने स्वभाव और चरित्र को ही नियंत्रित कर सकते हो, उसके अनुरूप चलो; बस! इससे थोड़ी नींद आएगी. रक्तचाप नियंत्रित रहेगा. जुबान साफ़ रहेगी. षड्यंत्र रचने की पृवृत्ति नियंत्रित रहेगी. आखिर में पता चलता है कि समग्र विश्व उतना ही है, जितना हमारा अपने स्वभाव और चरित्र के बारे में अपना खुद का ज्ञान और भान. इसका आशय यह भी नहीं है कि खुश रहिये या दुखी रहिये; बस बने रहिये, वास्तव में जो आप हैं ।
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ये जो प्राइवेट बस स्टेण्ड पर खड़े होकर कंडक्टर से हुज्जत करके अपने और बीबी के किराए में से बीस बीस रूपये कटाकर तीन मोटू और गबरू बच्चों को तीन की सीट पर बिठाकर टिकिट माफ़ करा लेते हो ना हरसोला या लोहारपीपल्या जाने को और फिर भर गर्मी में खटारा बस में बैठकर अपने सड़े गले मोबाईल से फेसबुक अपडेट करते हो ना गोइंग फ्रॉम "देवी अहिल्या बाई एयरपोर्ट या नई दिल्ली टर्मिनल 2 या मुम्बई एयरपोर्ट" लिखकर हवाई जहाज का निशाँ छोड़ते हो ना उसे ही शास्त्रों में छल प्रपंच कहा गया है।
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ये जो दोस्तों को मिस कॉल करके अपना प्यार जताते हो ना और फिर कहते हो कब से ट्राय कर रहा हूँ और तुम उठा नही रहे थे बार बार पूरी घण्टी जा रही है, वह मिस कॉल नही था, उसे शास्त्रों में कृपणता कहा गया है और इस मानवीय कमजोरी को दूर करने का शास्त्रोचित तरीका तुम्हारे नम्बर को फोन बुक, वाट्स एप और अन्य सभी जगहों से ब्लॉक करके तुम्हारा हर तरह से बहिष्कार करने को सुझाया गया है।
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ये जो बरसात में घर से प्लास्टिक की पन्नी में मोबाइल और फटा हुआ बटुआ रखकर निकलते हो और दोस्तों को एक प्लेट गर्म पकौड़े और कट चाय नही पिलाते ना - उसे ही शास्त्रों में मनुष्य योनि के पाप कहा गया है ।
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एक पिता के जल्दी खत्म हो जाने से खुद का पिता हो जाना बहुत खतरनाक होता है और फिर सारी उम्र आप संयम, समर्पण और सेवा में ही खत्म हो जाते है जब तक आप अपने आपके बारे में सोचना शुरू करते है तब तक सब कुछ खत्म हो जाता है।
ऐसे असमय बने सभी पिताओं को याद कर और उनके जज्बे को सलाम करते हुए आज के इस बाजारीकृत पितृ दिवस की शुभकामनाएं ।
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बरसात होने की उम्मीद में कितने बीज धरती के कड़े कवच को फोड़कर बाहर आने की हिम्मत कर रहे है ।
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कौव्वों से ज्यादा उम्मीद न करें, उनकी औकात सिर्फ कंकड़ उठाने की ही है, शिलाएं उठाने और उन्हें संवारकर मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे या चर्च बनाने के लिए जो कौशल और दक्षता लगती है वो इन कौव्वों में कभी नही आ सकती, ये महान काम करने वाले कुछ और ही लोग होते है ।
अरे जो कौव्वे अपने घोंसलें नही बना सकते और कोयल के घोंसले में अंडे रख देते है वे क्या जमीन तोड़ने का काम करेंगे ? इसलिए डरने की बात नही कौव्वों की पूजा करें और उन्हें मरे खपे लोगों के पिण्ड छूने के लिए मनुहार करते रहें , ये काले कौव्वे सिर्फ चिल्ला ही सकते है बाकी तो अछूत ही रहेंगे।
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संकल्प, मामोनी, शाहाबाद, बारां राजस्थान में आज बीस बरसों बाद गया। मोती और चारु के बनाये इस कैम्पस की शुरुवात मेरे सामने हुई थी कितनी बार आया, गया - याद नही पर आज मोती और चारु की मौत के बाद उनकी अनुवस्थिति में जाना बहुत ही नास्टेल्जिक कर गया।
पुराने साथी चन्दा भाई, रमेश और गजराज जी मिलें पर अब सवाल है कि कोई प्रोजेक्ट नही, ठोस काम नही, अनिल बोर्दिया जी नही, खैरुलाल भी गुजर गया। बजरंग लाल जी रिटायर्ड हो गए, नीलू दोमट में कही अस्पताल और आश्रम चला रहे है, लवलीन भी गुजर गयी, महेश बिंदल है जो इन तीन साथियों के साथ कुछ करने का प्रयास कर रहे है पर बड़ा सवाल है कि अगले वे लोग कौन है जो तीसरी पीढी की लीडरशिप सम्हाल सकें ।
आते समय चारु की तंगी तस्वीर ले आया साथ में।
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तन गीला, मन सूखा रह गया
कल बारिश में सब कुछ बह गया.
निहारता हूँ सारी रात
तकता हूँ सारी रात
बैठा हूँ हथेलियाँ पसारे
कि समेट लूँ अपने हिस्से की
चन्द नेह की अमृत बूँदें
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घर से बच्चे चले जाने के बाद घर सिर्फ अवशेष रह जाते है
लौट आओ बच्चों अपने घर में जो भी है सब तुम्हारा है, लौट आओ !!!!
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