Skip to main content

उन्मुक्त भाव से अपनी हार स्वीकारें .




कभी हम सोचते है कि वो सब हमें मिल जाए जो हम चाहते है शिद्दत से, परन्तु जीवन में सब कुछ मिलता 

नहीं है महत्वपूर्ण है हार का सामना करने की हिम्मत, वो सब कुछ सह लेने का जूनून जिसे सफलता के 


दायरे में माना ही नहीं जाता… उस हार को बहुत गौर से देखो समझने का पूरा प्रयास करो और फिर देखो 


उसके पीछे उन चेहरों-मोहरों को जो कही ना कही से एक भयानक अट्टाहास कर अपनी विद्रूप हंसी से सारे 


संसार की शान्ति को तहस - नहस कर रहे है… पहचानो इन चेहरों को जो तुम्हे निकट से देखने पर ठीक 


अपने से लगेंगे और बेहद करीबी .बस यही से हार को स्वीकार करो और फिर अपनी सफलता की सीढियां 


तुम्हे नजर आयेंगी बस एक बार, सिर्फ एक बार इन सबको समूल उखाड़ फेंकों जो सिर्फ इस्तेमाल करना 


जानते है और तुम्हे पनपते नहीं देख सकते… बस शर्त यही है कि अपनी हार स्वीकार करने की कड़ी हिमत 


और उनकी वहशत, जुगुप्सा को सहने की शक्ति तुम्हारे पास होना चाहिए, तभी हम इन सबको उजास में 


ला सकेंगे और मुखौटों को निकालकर तेज प्रकाश में इनके बगैर सफलता की गर्वोन्मत्त सीढियां चढ़ सकेंगे 


.आओ हार स्वीकारें, उन्मुक्त भाव से अपनी हार स्वीकारें ...जीवन में कुछ महत्वपूर्ण हो या ना हो पर यह 


महत्वपूर्ण है की हर लड़ाई को लड़ाई के तरीके से लड़ों और यह मानकर चलना कि इस लड़ाई में सबसे 


ज्यादा पंगा अपने ख़ास, करीबी, दोस्तों और सगे सम्बन्धियों से होने वाला है ......बस लड़ते रहो और 


मानकर चलना कि ये हारी हुई लड़ाई है और इसे जब तक लड़ते रहोगे यह चलती रहेगी ठीक ठीक साँसों की 


तरह और जिस दिन हार गए समझो गया जीवन …….

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही