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"प्रार्थना के शिल्प में नहीं" - देवीप्रसाद मिश्र

यह सिर्फ एक कविता नहीं है बल्कि एक समूची परम्परा को ठुकराकर नया कुछ सोचने और करने को भी उद्वेलित  करती है देवीप्रसाद मिश्र की यह कविता. आप इसे जितनी बार पढेंगे यह आपको नए अर्थ और नए प्रसंग देगी … वर्तमान  सन्दर्भ में देवभूमि और नेताओं के दौरों से देखा जा सकता है . भाई  Avinash Mishra शुक्रिया 



"अस्वीकार की अनन्य"

इंद्र, आप यहां से जाएं 

तो पानी बरसे

मारूत, आप यहां से कू़च करें

तो हवा चले

बृहस्पति, आप यहां से हटें 

तो बुद्धि कुछ काम करना शुरू करे

अदिति, आप यहां से चलें

तो कुछ ढंग की संततियां जन्म लें

रूद्र, आप यहां से दफा हों

तो कुछ क्रोध आना शुरू हो

देवियो-देवताओ ! 

हम आपसे जो कुछ कह रहे हैं
प्रार्थना के शिल्प में नहीं

.- देवीप्रसाद मिश्र 

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