उज्जैन में जाना हमेशा एक सुखद अनुभव होता है आज ऐसा ही कुछ संयोग बना जब मित्र बहादुर ने बताया कि समावर्तन के कार्यकारी संपादक श्रीराम दवे की षष्ठिपूर्ति संगमनी के रूप में ड़ा प्रभात कुमार भट्टाचार्य जी मना रहे है तो जाने का लोभ संवार नहीं पाया. हम लोग जब पहुंचे तो कार्यक्रम शुरू हो गया था, इंदौर, देवास और उज्जैन से कुल पच्चीस साथी थे, प्रमोद त्रिवेदी, राजेश सक्सेना, सूर्यकान्त नागर, सदाशिव कौतुक, बाबा, ड़ा निवेदिता वर्मा, अक्षय आमेरिया, वाणी दवे, पिल्केंद्र अरोरा, दिनेश पटेल, बहादुर पटेल, मै, विक्रम सिंह, प्रतीक सोनवलकर आदि साथियों को मिलकर अच्छा लगा और सबसे अच्छा लगा कि ड़ा धनञ्जय वर्मा आशीर्वाद देने को स्वयं उपस्थित थे. बाद में अनौपचारिक रूप से सबसे मिले, बेहद आत्मीय और शालीन कार्यक्रम था. कार्यक्रम के बाद हम तीनों अपने परम मित्र मुकेश बिजौले से मिलने पहुंचे और फ़िर मुकेश के नए चित्र देखें जो उन्होंने हाल ही में बनाए थे. फ़िर लंबी बात और चित्रकला के आयामों पर बातचीत और मुकेश के नए चित्रों में गहरे काले रंग के प्रयोग और नई कला पर एक लंबा आख्यान सुना. आखिर में हम हमारे प्रिय कवि और पितृ तुल्य चंद्रकांत देवताले से मिलने उनके घर पहुंचे. दोपहर का समय था लगा कि कही सो ना गये हो पर वे खबर मिलने पर बाहर आये और आत्मीयता से हम तीनों को बिठाया और कहने लगे तीन देवदूत आये और पूछने लगे कि चक्रतीर्थ का रास्ता किधर है बूढ़े (चक्रतीर्थ उज्जैन में श्मशान भूमि को कहते है जहाँ चौबीसों घंटे शव दाह होते है) ..........जाहिर है वो हम तीनों पर तंज कर रहे थे.....खूब सारी बातचीत और अपनत्व, किस्सागोई कोई देवताले जी से सीखे, तबियत थोड़ी नासाज थी. परसों उनकी पत्नी की पुण्यतिथि है सो थोड़े उदास थे, बीपी बढ़ा हुआ था और हालत बहुत कमजोर लग रही थी. पर फ़िर भी एक डेढ़ घंटे हमारे साथ बैठे और मजाक मस्ती में बात करते रहे. कहने लगे कि पहले पता होता तो कचोरी मंगवाकर रख लेता पर अब हमने मना किया कि हम तो आपसे सिर्फ मिलने आये है. मिलकर ऊर्जा तो मिली पर चिंता हो रही है क्योकि इन दिनों काफी बीमार रहने लगे है बाहर जाना बंद कर दिया है, बड़े मुश्किल से भोपाल गये थे इस बीच एक कार्यक्रम के सिलसिले में बस यहाँ तक कि अब वे स्थानीय कार्यक्रमों में भी नहीं जाते है. मैंने पूछा कि क्या कुछ तस्वीरें ले लूं तो बोले नहीं ऐसे मत लो सब डर जायेंगे और जोर से एक ठहाका मारकर हँसने लगे और फ़िर बोले कही तुम तीनों मेरी आवाज तो टेप नहीं कर रहे, एक बार एक कवि ने मुझसे पांच कवियों की आलोचना करवा ली और फ़िर बोला कि अब मै मार्केट में सबको बता दूंगा कि......खैर उनके पास बैठो तो जानकारी के साथ हिन्दी की कविता, कवि और साहित्य की विभिन्न धाराओं पर बेहद रोचक तरीके से सीखने को मिलता है. हाँ, आज उन्होंने मजाक में बहादुर का नाम हिमांशु पटेल, दिनेश का नाम महेश पाटीदार रख दिया और मुझे कहने लगे कि पंडित तुम्हारा नाम क्या है.....मै भूल गया .........फ़िर कहने लगे तुम्हारी कवितायें पढ़ी, अच्छी लगी - लिखते रहो, फ़िर बोले वो बैतुल वाली कूली लडकी दुर्गा कैसी है जिसकी कहानी लिखी थी........फ़िर बोले ये सब लिखोगे तो मै तो पढ़ ही नहीं पाउँगा तुम्हारी थोबडा पोथी से मै वाकिफ नहीं.............बहरहाल वे दीर्घायु हो और सृजनरत रहे इन्ही कामनाओं के साथ हम लौट आये........
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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