निकला जा रहा है दम यहाँ हर दिन हर पल और आप है कि अपनी रोटियां सेकने मे लगे है, सेकुलर और ना जाने कौन कौन से सिद्धांत याद आ रहे है आपको, समझ नही आता कि जो जवान बचा रहे है वे भी जब मरने के कगार पर है तो आपको हो क्या गया है कोई वहाँ जाये या ना जाये इससे हमें क्या, जब एक आदमी मरता है किसी तंत्र की लापरवाही से तो समूचे विकास और मानवता पर प्रश्न उठते है महामना पर आप को कोई इस बात से फर्क नहीं पड़ रहा..... कब तक विनाश का मंजर देखेंगे और हवाई खूबसूरती का जश्न मनाते रहेंगे...... "बस कीजिये आकाश मे नारे उछालना" - याद आ गये दुष्यंत कुमार........
बंद कीजिये मोदी, राहुल, बहुगुणा और तमाम तरह के आत्मप्रचार वाले, दुष्प्रचार करने वाले नारे उछालना और अपने तक ही सीमित रखिये अपनी घटिया सोच और उस आदमी के बारे मे सोचिये जो मर रहा है, उन लोगों के बारे मे सोचिये जो वही रह जायेंगे एक अभिशप्त जीवन जीने को, जिनके पुरखे वहाँ सदियो से रहते आये है. नीचे वालों को तो जैसे तैसे सेना उतार लायेगी, राज्य सरकारे अपने प्रदेश के लोगों को अपनी संकीर्ण मानसिकता के चलते और वोट बैंक का सहारा लेकर उतार लायेगी, गोदी मे बिठाकर घर भी छोड़ देगी, मुआवजे की रोटियां फेंक देगी निराश्रितों की तरह से, पर जो लोग वहाँ के है, जिनका सब कुछ बर्बाद हो गया जिनके मूक पशु बह गये, जिनके जीवन की गृहस्थी का थोड़ा सा सामान था उनकी संपत्ति के रूप मे वह भी तो बह गया पानी मे, जिनके टापरों पर पत्थर गिर पड़े उनके सामने क्या है, जिनके बच्चों, बुजुर्गों के बारे मे हमारा बिकाऊ मीडिया कुछ नहीं कह रहा, जहाँ के संसाधन नष्ट हो गये, जहाँ की सारी व्यवस्थाएं चरमरा गई है, प्रशासन ठप्प हो गया है, सारे रिकार्ड और जरूरी कागजात नष्ट हो गये, जहाँ धनलोलुप पंडे और ब्राहमण मरे हुए इंसानों की जेब से और मृत शरीरों से धन और जेवर चुरा रहे है ऐसे मे कौन से मूल्य भी शेष रह गये है, ज़िंदा इंसानों की चिता करने के बजाय जहाँ यह बहस हो रही हो कि केदारनाथ की पुजा की जाये या नहीं और उसकी मूर्ति किस दिशा मे हो, बेहद शर्मनाक है !!! घीन आती है कि हम इक्कीसवीं सदी मे रह रहे है, और हमारे पास शिक्षा के बड़े बड़े मंदिर है जो यही सिखा रहे है कि विपदा के समय हम मूर्तियों की चिंता करें बजाय लोगों की !!! यही संविधान मे वैज्ञानिक मानसिकता का प्रचार-प्रसार है जो हमने गत लगभग सात दशकों मे किया है ??? क्या ये लोग इस वैज्ञानिक और सूचना तकनीकी के युग मे भी महादेवी वर्मा के अप्रतिम निबंध मे आये चरित्रों की तरह अब वे फ़िर से "सुई दो रानी डोरा दो रानी" की हुंकार लगाएंगे हर आने-जाने वाले से ?
अगर आप कुछ नहीं कर सकते तो कृपया शांत रहे. घर मे फिल्म देखे और बरसात का मौसम है जी भर कर के भुट्टे का किस खाए, पकौड़े खाए, जाना पाँव चले जाये, अपने परिजनों के साथ बरसात के नजारें देखे, और ऐश करें- पर यहाँ -वहाँ घटिया राजनीती ना करें, आने वाले इतिहास मे आपको कोई कूछ नहीं कहेगा आपका नाम भी स्वर्णाक्षरों मे लिखा जाएगा कि आप आपदा के समय शांत थे और कोई अपराध मे आपको नहीं सजा नहीं दी जायेगी......मेहरबानी करके देश का साथ दीजिए.... किसी पप्पू, फेंकू या पार्टी का नहीं, नजर रखिये उन लोगों पर जो इन पीड़ितों के नाम पर आपके घर से रूपया कपडे और अनाज ले जा रहे है हाल ही मे इंदौर मे एक सांसद ने एक मंत्री और एक विधायक पर उत्तराखंड के नाम पर रूपया वसूल कर जेब मे रखने का खुले आम आरोप सार्वजनिक मंच से लगाया है, क्या आप कही ऐसे किसी संगठित गिरोह के शिकार तो नहीं हो रहे, क्या आप किसी फर्जी एनजीओ के नाम पर तो अपना धन या सामग्री नहीं दे रहे?
सावधान रहे, सचेत रहे, हम सब बहकाने और बहकने मे माहिर है......
Comments