राज्य या किसी भी व्यवस्था का अर्थ ही दमन, तानाशाही और अत्याचार है, राज्य का अर्थ ही है व्यवस्था, अनुशासन या धर्म की आड़ में लोगों का शोषण करें और अपनी सत्ता बनाये रखें
यहाँ राज्य से मेरा आशय सिर्फ सत्ता, सरकार से नही - वरन उन सभी जगहों, तंत्रों तथा व्यवस्था से है जहाँ निर्णय लिए जाते है फिर वो रसोइघर में करेले या पालक की सब्जी बनने का निर्णय हो या यूक्रेन को हथियारों की बड़ी खेप सप्लाई करने का हो - सरल सी बात है जहाँ निर्णय है वहाँ राजनीति है और राजनीति स्वतंत्रता की जानी दुश्मन है, घटिया और उजबक लोगों को हमने पॉवर देकर देख लिया और कितना भुगतना पड़ा है - यह हम सब जानते हैं
सभी नियम कायदे और इनका गुणगान करने वाली नियमावली की किताबें हो या अनुशासन और मिशन या विचारधारा के नाम पर थोपी गई किसी सनक की ज़िद हो - सब बकवास है
इसलिये मैं यह मानता हूँ कि स्वतंत्रता महज एक ढकोसला है और गम्भीर साज़िश, कोई भी व्यवस्था, राज्य या क़िताब स्वतंत्रता नही दे सकती - क्योंकि स्वतंत्रता सृजन देती है, व्यक्ति को रचनात्मक बनाती है, और रचनात्मकता या सृजनशील होने से मूर्ख और कुपढ़ व्यक्तियों की कुव्यवस्था में, कमाई के अनुचित तरीको में व्यवधान पैदा होता है - इसलिए जब कोई स्वतंत्रता की बात करता है तो सावधान हो जाइये, धर्म की बात करता है तो अति सावधान हो जाइये, कोई ईमानदारी और पारदर्शिता की बात करता है तो सावधान हो जाइये और उससे दूर हो जाइये - वस्तुतः वह आपको मारने के लिये भावनात्मक हथियारों को धार लगा रहा है
और भारतीय संविधान की प्रस्तावना में अम्बेडकर जिस स्वतंत्रता, समता और भ्रातृत्व की बात करते है वह तो अपने आपमें ही बड़ा प्रश्न है, यह दीगर बात है कि 1950 से अभी तक ज्ञानीजनों ने स्वतंत्रता नामक सापेक्ष शब्द की इतनी व्याख्या कर दी है कि इतना ज्ञान, शब्द और विचार तो अम्बेडकर के पास नही होगा - जितना छप चुका है, चंद लोगों को छोड़ दें तो आज संविधान पर वो लोग लिख पढ़ और बोल रहे हैं - जो दसवीं पास नही कर पाएं, या जो येन केन प्रकार से कुछ भी किसी को हस्तगत नही करना चाहते और हर जगह काबिज़ होना चाहते है - मोदी सरकार में अमित शाह या नरेंद्र मोदी को देख लें भले ही - पर स्वतंत्रता है, और चुनकर आये है लोकशाही में या खुद ने आगे बढ़कर यह अधिकार हस्तगत कर लिया है
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