वृहदारण्य उपनिषद में गार्गी का अंतिम प्रश्न था -
"कौनसा तत्व आकाश को बींधता है, अंतिम सत्ता क्या है "
याज्ञवल्क्य का जवाब था - "अक्षर"
[ जब से यह प्रसंग पढ़ा है, मन बहुत बेचैन है और अक्षत और अक्षर के बीच घूम रहा रहा हूँ ]
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◆ महिलाएं अंतरिक्ष पर जाने वाले चंद्रयान की टीम का हिस्सा है और लीड कर रही हैं
◆ महिलाएं पायलट है
◆ बड़े उद्योगों से लेकर एनजीओ और ट्रस्ट की कमान महिलाओं के हाथ में है
◆ दुनिया की श्रेष्ठ डॉक्टर महिलाएं हैं
◆ खेती किसानी में सबसे ज्यादा आगे महिलाएं हैं
◆ न्यायालय से लेकर तहसील के छोटे से कार्यालय में महिलाएं अपनी योग्यता से काबिज हैं
◆ बैंक, पोस्ट ऑफिस, बीमा कंपनी से लेकर निजी क्षेत्र में महिलाएं काबिज हैं
पर हमारा पुरुष प्रधान समाज है कि अभी भी उन्हें रक्षा का वचन दे रहा है, ना मात्र वचन दे रहा है - बल्कि रक्षा के बंधन में भी डाल रहा है ताकि वह चंगुल से निकलकर अपनी मर्जी से कोई निर्णय न लें और कोई ऐसा काम ना करें जिसमें पुरुष की मर्जी शामिल न हो - कितना शातिराना अंदाज़ है नियंत्रण का
उधर बाजार अलग तांडव मचा रहा है, हमारे पास हजारों किस्म के मिष्ठान है परंतु कैडबरी की चॉकलेट ही हमें खानी है
रक्षाबंधन में प्रेम, सहजता और सरलता खत्म हो गई है - अब कुल मिलाकर सब लेनदेन पर ही निर्भर है - किसने, किसको, क्या दिया और उसके बदले में कितने रुपए मिले या गिफ्ट भी मिला तो उसकी कीमत क्या है
यह महत्वपूर्ण है, पर कुछ बोलिए मत - हमारी भावनाएं आहत हो जाएगी
तीसरा हर त्यौहार का दो या तीन होना और फैशन हो गया है - क्योंकि लाला रामस्वरूप से लेकर तमाम कैलेंडर बेचने वाले लोग अपने-अपने क्षेत्र के ज्ञानी हो गए हैं - इसलिए आप देखिए कि दुनिया भर के पंडितों के मुहूर्त जो है वो व्हाट्सएप पर घूम रहे हैं और हर कोई नया मुहूर्त बता रहा है, वाट्सएप्प पर हैप्पी राखी लिख दिया और राखी का फोटू चैंप दिया और अब भेज़ो गूगल पे पर 500 का पत्ता
अरे भाई मेल - मिलाप का त्यौहार है - मिलो, जुलो, साथ में खाना खाओ, गपशप करो, राखी बांध दो और खुशी-खुशी घर आ जाओ - परंतु नहीं जी हमें इसमें भी विवाद करना है
अब क्या ही किया जाए - थोड़ा सोचिये - विचारिये - क्या अभी भी हमें रक्षाबंधन जैसे त्योहारों की जरूरत है - जो बराबरी के हक को मार कर एक बड़े वर्ग को जबरन का श्रेष्ठ बताता है, त्योहार मनाईए पर दिमाग़ भी है ना - कब तक संस्कृति के नाम पर कुप्रथाओं को ढोते रहेंगे
ध्यान रहें यह धर्म का त्योहार नही है - एक निजी सम्बन्धों की कहानी से प्रेरित है
हां, आइये और पोस्ट पर गालियां भी दीजिए पर थोड़ा दिमाग लगाएंगे तो आपको समझ में भी आ जाएगा कि मैं क्या कह रहा हूं
परंतु लठैत और मूर्ख लोगों को कोई जवाब नहीं दूंगा मैं
और माता - बहनें आज दूर ही रहें, कही आहत ना हो जायें, आप लोग बस वह अमर गीत गाते रहिये - "भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना", एक बार भैया को पूछ लेना कि पैतृक संपत्ति का हिस्सा कब आपके नाम कर रहा है - फिर राखी का अर्थ समझ आयेगा कि आपकी रक्षा कर रहा या स्थावर और जंगम सम्पत्ति की, साल में एक बार पांच सौ रूपया और एक साड़ी देकर इमोशनल अत्याचार कर रहा है और आप मरे जा रही "मेरा भाई, मेरा भाई ...."
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बावजूद इस सबके बलात्कार कम हुए क्या या छेड़छाड़ ? सीधे से सवाल का जवाब दीजिये कमेंट करने के पहले
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