Book on the Table
"मृत्यु कथा - आशुतोष भारद्वाज"
बस्तर, दंडकारण्य या सात राज्यों में फैला नक्सलवाद देश की स्थाई समस्या है और छग के साथ अन्य छह राज्यों से घिरा सघन वनों के बीच जितना सुंदर जंगल है, जितनी अच्छी हल्बी और गौंडी बोली है और सहज सरल आदिवासी मानुष है यहाँ - उतना ही खतरनाक नक्सलवाद भी है, खाकी वर्दी देखकर भड़कने वाला आदिवासी अब आक्रामक है फिर वो वर्दी पुलिस की हो, अर्ध सैनिक बलों की या वन विभाग वालों की - जब उनकी जमीन या बहु बेटियों पर हमला होता है तो वे बड़ी-बड़ी घटनाएँ कर गुजरते हैं फिर 100 जवानों को मौत के घाट उतार देना हो या किसी मास्टर - पटवारी को रात की बैठक में उड़ा देना
जल, जंगल और ज़मीन की लड़ाई, आदिवासी और उद्योगपति, सरकार और सलवा जुडूम के प्रयोग, तमाम तरह के प्रयास और नतीज़ा शून्य ही निकला है, मेरा अपना लम्बा अनुभव है कि जब आप किसी की ज़मीन, सम्पत्ति छीन लें, पत्नी या माँ - बेटी को अपह्रत करके बलात्कार कर छोड़ दें मरने को तो कोई क्या करेगा, देवभोग के जंगल हो या बैलाडीला की पहाड़ी - यदि कोई उद्योगपति यह सब उजाड़ कर अपनी फैक्ट्रियां लगा दें तो जंगल पूजने वाले क्या करेंगे - जाहिर है वे विरोध करेंगे
सलाम बस्तर जैसी किताबे राहुल पण्डिता ने लिखी, नंदिनी सुंदरम, अरुन्धती रॉय से लेकर स्व इलीना सेन, डॉक्टर विनायक सेन, बेला भाटिया और तमाम लोगों ने इतना काम किया लिखा और दुनिया के सामने सच लाने की कवायदें की पर हर बार लगा कि बहुत कुछ कहना - सुनना और लिखना रह ही गया
चूंकि छग के इन जंगलों से मेरा लम्बा नाता रहा है और मैं सुकमा,जगदलपुर, दंतेवाड़ा, किरन्दुल, रायगढ़, कोरबा, कांकेर, चापा, जांजगीर, गरियाबंद और तोकापाल से लेकर रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, भाटापारा, राजिम, अभनपुर, अंबिकापुर आदि जगह के दूरस्थ इलाकों में जाता रहा हूँ सन 1990 से, सारे 27 जिले और दूर दराज़ के गांव देखें है घूमे है तो मैं समानुभूति से इस सारे श्रमसाध्य भरे लिखें - पढ़े को जानता समझता हूँ और वहाँ की पीड़ा को महसूस कर सकता हूँ
कई फर्जी लोग भी है जो यहाँ रोज पुराने मुर्दे उखाड़कर रोटी सेंकते है और एक ही बात को अलग - अलग तरीके से लिखते रहते हैं, जो छग से पलायन कर ऐशो आराम में महानगरों और पहाड़ों पर बसने चले गए और सरकारों के एजेंट और पिट्ठू बन गए - उनका क्या विश्वास करना और उनके लिखे पर अहो अहो करना, बहरहाल
आशुतोष की यह किताब कभी से पढ़ने को बेचैन था, अभी डाक में कही गुम गई थी तो दोबारा अमेजॉन से मंगवाई , इस किताब को पढ़ा जाएगा और अपने अगस्त के मासिक पुस्तक समीक्षा वाले स्तम्भ में इस पर लिखा जायेगा
बाकी पढ़ने के बाद
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