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Drisht kavi and Faiz Saahab - Posts from 11 to 22 Aug 2023

"कल आये नही तुम" - अभी फोन लगाया
"जी, असल में वो मैडम जी ने बुलवा लिया था, भोजन में कल दाल बाटी थी, बढ़िया एक जोड़ पेंट-शर्ट भी गिफ्ट किया और मेरी कविताएँ भी सुनी उनके पूरे परिवार ने बहुत शांति से", लाईवा चहक रहा था
"अरे मैं भी इंतज़ार कर रहा था, सुबह से रात तक कोई नही आया, आख़िर दूध फेंकना पड़ा रात को" , मैंने निराश होकर कहा
"आख़िर था क्या कल कुछ याद नही" - लाईवा परेशान था
"अरे कुछ नही नाग पंचमी थी, सो सब लोग ढूंढ़ रहें थे तुम्हे, असल में साहित्य के सभी वाट्सएप समूहों में तुम्हारा नम्बर और पता बांट दिया था किसी ने - तभी तो सब बुला रहें थे" - मैंने थक हारकर कह दिया और फोन काट दिया - क्योंकि उसकी गालियाँ सुनने की हिम्मत नही थी
***
तुम आये हो न शबे-ए-इंतिज़ार में गुज़री है
तलाश में है सहर बार - बार गुज़री है
◆ फ़ैज़ साहब
***
"क्या बात है बड़े उदास लग रहे हो" - उसका फोन आया तो रो रहा था
"क्या बताऊं भाई साहब, कल एक संगठन वालों ने कवि गोष्ठी में बुला लिया, मंच पर जितने कवि थे - उससे आधे भी श्रोता नहीं थे, पर फिर भी सब पेले जा रहे थे, ससुरा संचालक हर कवि को बुलाने के पहले और हर कवि के कविता पाठ के बाद 8 से 10 लाइन पेल रहा था, और कमबख्त आखिरी कवि के पहले उसने अपनी दो कविताएं और पढ़ी" लाईवा का रोना चालू था
"फिर आगे क्या हुआ" - बोल
"सामने तीन - चार लोग बैठे रहे और दो घण्टे बाद अंत में सबके सब मंच पर चढ़कर आ गए कि हमारा बच्चा भी कविता पढ़ेगा, जो मुश्किल से आठ 10 साल का होगा" - लाईवा टूट चुका था बुरी तरह से
"फिर क्या हुआ, यह तो अच्छी बात है न" मैंने कहा
"वह तो ठीक है, बच्चे के एक्शन सांग के बाद उन तीन - चार लोगों ने आखिरी में मंच पर ढेर सारे कवियों को हार पहनाना शुरू किया, हम प्रफुल्लित थे, और एक महिला थैली में से कुछ निकाल रही थी - लाल-लाल था, हमें लगा कि वह पारिश्रमिक का लिफाफा होगा जो आयोजकों की ओर से वह प्रायोजक दे रहे होंगे" - लाईवा निराशा के गर्त में था
"कितने रूपये मिलें" - मैं उत्साहित था
"क्या कहूँ भाई साहब, साला खड़े पर चोट हो गई , जब वह पास में देने आई तो श्रीहनुमान चालीसा निकला- जिस पर लिखा था 'श्रीहनुमान चालीसा लाल रंग में', - भगवान की कसम इतनी निराशा जिंदगी में कभी नहीं हुई, अपना तेल जलाकर और अपना खाना लेकर कवि गोष्ठी में राष्ट्रीय स्तर पर कविता पढ़ने गया था परंतु कुछ नहीं मिला, बरसात में कपड़े अलग खराब हुए, शरीर पर कीचड़ उड़ा, वह अलग और अंत में कुल मिलाकर आयोजक - प्रायोजक ने श्रीहनुमान चालीसा का गुटका पकड़ा दिया, अब इस राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कवि गोष्ठी में कभी नहीं जाऊंगा - और हाँ मुझे कम से कम 15 दिन फोन मत करिएगा, अभी मेरा राष्ट्रीय शोक चल रहा है" - लाइवा ने फोन काट दिया
और मैं मुस्कुरा रहा था

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