बहुत आरज़ू थी गली की तेरी
सो यास-ए-लहू में नहाकर चले..
◆ मीर
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"जीवन जैसे फ्रेम - दर - फ्रेम उभर रहा और समय के संग साथ सब गुत्थम गुत्था हो रहा हो जैसे, रंगों की अपनी सीमाएं भी कभी - कभी सब कुछ मिक्स कर देती है, एक कोलाज़ बन जाता है जीवन फ्रेम्स का और फ्रेम्स के पीछे के दर्द, आँसू कभी सामने नही आ पाते"
Rafique Shah के चित्र देखकर मेरी छोटी सी टिप्पणी
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नीमराना, राजस्थान में सभी बड़े कलाकारों के नाम से महल यानि कक्ष बने है - जैसे हुसैन और अन्य बड़े कलाकार, हमारे रफ़ीक़ मियाँ का भी रफ़ीक़ महल बना है
रफ़ीक़ देवास के सतवास कस्बे से है, बहुत छुटपन में हम लोग ग्रामीण इलाकों में बच्चों में पढ़ने की रुचि जगाने के लिए चकमक क्लब चलाते थे, वहां पर बच्चों के साथ बहुत सारी गतिविधियां करते थे - जैसे चित्रकला, विज्ञान प्रयोग, ओरिगामी, मिट्टी के खिलौने, नाटक, गीत - संगीत, सैकड़ो पढ़ने की क़िताबें एवं तमाम तरह की चीजें उनके साथ होती थी, बच्चे बालमेले करते थे स्कूलों में और ड्राप आउट बच्चे सीखकर स्कूल में लौट आते थे - यह बात होगी 1994 - 98 की और तब रफ़ीक़ बमुश्किल दस - बारह साल के होंगे
यह चकमक क्लब बच्चों के अपने हॉबी क्लब यानि गतिविधि केंद्र थे, जहां सब कुछ बच्चे ही करते थे, हमारा काम सिर्फ प्रबंधन करने का था चकमक क्लब से हजारों बच्चे निकले और आज देश भर में अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं ; रफीक कहते हैं - " दादा, अगर आप उस समय बचपन में सतवास ना आए होते, तो मैं इतना बड़ा कलाकार आज नहीं होता, एक छोटे से कस्बे का लड़का कभी दिल्ली नही पहुँच पाता, आपके आने से मेरे अंदर चित्रकला के प्रति रुचि जागी और मैं इंदौर से बीए [फाइन आर्ट्स] में करने के बाद सीधा दिल्ली आ गया और एक लंबे संघर्ष के बाद आज मैंने एक मुकाम हासिल किया है, अभी भी रास्ता बहुत लंबा है, परंतु संतुष्टि यह है कि मैं आज "रजा फाउंडेशन" के साथ में काम करता हूं और बहुत खुश हूं ; देशी - विदेशी कलाकार, कवि, कहानीकार, आलोचक, बड़े साहित्यकारों, के साथ-साथ नाटक संगीत से जुड़े लोग रोज मिलते है, देशभर में मुझे घूमने - फिरने का मौका मिलता है, लोगों के साथ सीखने - समझने का मौका मिलता है और मैं लगातार सीखते जा रहा हूं"
रफीक बहुत विनम्र हैं और मात्र 39 वर्ष की उम्र में दिल्ली के साथ-साथ देश के चित्रकला के समकालीन फ़लक पर कला के वृहद क्षेत्र में एक बड़ा मुकाम हासिल कर लेना कोई मजाक नहीं है, रफीक से हाल ही में दोस्ती हुई है, पूरा श्रेय Smita Sinha को जाता है जिसने हमें दशकों बाद मिलवाया, आभारी हूँ स्मिता का, और जब से मालूम पड़ा तो अब रोज बात होती है रफ़ीक़ से
रफीक सतवास और मालवा को अपने अंदर महसूस करते हैं, नर्मदा किनारे के गांवों को याद करके भावुक हो जाते हैं और कहते हैं कि - "दादा बहुत जल्दी मिलने आऊंगा आपसे और मैं धमकी देता हूं कि नहीं आए तो मैं दिल्ली आ जाऊंगा फिर गप्प करेंगे, तुम्हारा काम समझूँगा"
रफ़ीक़ अपने परिवार के साथ दिल्ली में रह रहे हैं दोनों पति - पत्नी उत्कृष्ट कोटि के कलाकार हैं रफीक के लिए बहुत शुभकामनाएं
बहराल रफीक महल के कुछ चित्र आपकी नजर जो रफीक ने बनाए हैं
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