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Drisht Kavi and other Posts of 26 and 27 June 2023

"आपका कोई टिकिट करवाने वाला दलाल पहचान का है क्या" - उसका फोन आया, मतलब अपने लाईवा का
"अबै उसे एजेंट कहते है, कहाँ जाना है"- मैंने पूछा
"जी , अबकी बार कोच्चि , बड़ी काव्य गोष्ठी है" - वो बोला
"अरे ये वही दल्ला है क्या - जिसने पिछली बार इम्फाल में गोष्ठी करवाई थी" - मैंने पूछा
"अरे वो आयोजक है, खनिज और खनन विभाग का बड़ा बाबू है, अब दो साल बाद ट्रांसफर हो गया तो नई जगह धौंस जमाने को बड़े - बुड्ढों को इकठ्ठा कर कवि गोष्ठी करता है, कवि भले घटिया हो पर आदमी बढ़िया है, हाँ वो दलाल का नम्बर दो ना यार, रुको घर ही आता हूँ" - फोन रख दिया था उसने
***
"मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए..."
सिर्फ़ गीत या कोई घटिया गाना नही था, कड़वी हकीकत भी है
और इसके पश्चात के गिल्ट्स, एकालाप और शाब्दिक अवसाद तो देखिये मुन्नी के
मुन्ना ऑटोवाले के शब्द याद आते है जो उसने हैदराबाद एयरपोर्ट पर उस शाम मुझे छोड़ते हुए कहें थे बेगमपेठ पर -
"जो मेरे काम का नई, वो किसी काम का नई"
____
जा रे, ज़माना
विवादों का इंतज़ार है
[ शुभकामनाओं के पीछे का सत्य ]
***

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हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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