शर्म मगर आती नही
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कम से कम 300 लोग मारे गए है ओडिशा में कल रात
विश्व नेता को हर वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाने जाना है पर यात्रियों के लिये कुछ नही करना है, अभी तक गया नही और ट्वीट कर दिया, शुक्र है कि एक और उदघाटन टाल दिया नही तो पहुँच जाता बेशर्म
रेलवे के जितने भी लोग है - अधिकारी हो या हम्माल - सब आत्म मुग्ध है और अपनी प्रशंसा करके अघा नही रहें पर इन्हें 300 लोगों की मौत पर ना शर्म आएगी ना अपराध बोध होगा, बस 24×7 हीहीही करते रहेंगे और आत्म मुग्धता की चाशनी में डूबकर मरेंगे
इतना बड़ा स्टॉफ और इतना बड़ा तंत्र, अरबों रुपयों की इनकम, लाभ, सबसे ज़्यादा तकनीकी लोग, दक्ष और कौशलों से परिपूर्ण और देश पर पकड़, फिर भी कोई जवाबदेही नही, कोई शर्म लाज नही
12 लाख मैं देने को तैयार हूँ यदि कोई महामना या बड़ा आदमी देवलोक गमन को तैयार हो तो - मृत्यु की कीमत लगाने में माहिर और इस पर भी यश लूटने की मासूम अदा - हाय मैं मर जावां
और इस्तीफ़ा देने की संस्कृति तो इन सभ्य कूलीन लोगों में है ही नही तो क्या उम्मीद करें नैतिकता के पुजारियों से - जो इन भयानक आंकड़ों के बाद भी पद पर बने हुए है उनसे क्या आप उम्मीद करेंगे कि ये जन नेता है और संवेदनशील सरकार के नुमाइंदे है
राष्ट्रपति की औकात तो अभी 28 मई को दिखा ही दी सरकार ने, कोई समझदार व्यक्ति होता आज तो, रेलमंत्री को 300 लोगों के सदोष वध के आरोप में इस्तीफ़ा लेकर तुरंत अंदर कर देता - पर अब ये सब हवाई बातें है
और निर्लज्ज तंत्र का क्या कहना, जब मुखिया ही वैश्विक लीडर बन गया तो मीडिया और बाकी सब भोंपू तो बैंड बाजा बारात ही निकालेंगे ना
कल ही भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124 को खत्म करने के बजाय सजा बढाने की बात पालतू तोते ने की है तो कोई मीडिया भी नही पूछेगा कि बजट में जो यात्रियों को सुरक्षा का भरोसा देकर टिकिट दरें डबल कर दी जाती है - उसका क्या हिसाब है , सिर्फ लूट और संगठित डकैती का नाम भारतीय रेल है जो राज्य प्रायोजित है
नवीन पटनायक में थोड़ी तो नैतिकता है कि गए, आज राजकीय शोक है ओडिशा में, पर इसे तो शौक ही शौक है - असल में लाशें देखें बिना पेट नही भरता इनका - दंगे हो, लिंचिंग हो, मणिपुर हो या दुर्घटनाएँ - मशरूम की रोटियां पचेंगी कैसे - यह इतिहास है 300 मौतों का, पर रुकिए अभी मास्टर स्ट्रोक आएगा जल्दी ही
सावधान वंदे भारत को झंडी दिखाने माननीय पधार रहें है
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हिंदी को प्रेमचंद और नामवर जैसे लेखकों से अब मुक्ति ले लेनी चाहिये क्योंकि ना सवर्ण समझ रहे और दलितों को तो ब्राह्मणों को कोसने का अवसर चाहिये ही, दो कौड़ी की समझ नही और आयं - बायं - शायं लिखकर सस्ती लोकप्रियता पाने की जद्दोजहद आख़िर क्या और क्यों है
घीसू से लेकर प्रेमचंद मर गए, सौ साल हो गए पर ये कायर रेलमंत्री या प्रधानमंत्री पर नही बोलेंगे - क्योकि इनकी नौकरी, इज्जत, पेंशन, सुविधा और फर्जी दलित वाद के साथ विवि में गठजोड़ सब शामिल है , सेटिंग बिगड़ जाएगी सारी और दलित हितैषी होने के निहितार्थ सामने आ जाएंगे एक झटके में, आदिवासी महिला राष्ट्रपति है पर महिला पहलवानों का जो खेल चल रहा है उस पर नही बोलेंगे, हिंदी का कवि - लेखक शातिर ही नही बेहद कमीना और घाघ है - वह अपना घर परिवार और नौकरी बचाकर ऐसी बातों पर बोलेगा, लिखेगा और विवाद करेगा जिससे उसके कम्फर्ट ज़ोन पर फर्क ना पड़े, वह दिल्ली के माड़साब लोग्स की चिरौरी करेगा, उनके हर हगे - मूते पर लम्बी समीक्षा करेगा, अशोक वाजपेयी के कुत्तों को पोट्टी करवा देगा पर मजाल कि फ़ासिसिज्म के खिलाफ एक शब्द लिख दें
ये इतने डरपोक और कायर है कि लाइक तक नही करेंगे, एक फर्जी प्रलेस के महासचिव की तरह फिल्मों , मरे खपे लेखक और काल्पनिक चरित्रों और सड़ी हुई कहानियों पर लिखकर मर्दानगी दिखाएंगे - पर ना भाजपा पर बोलेंगे , ना सरकार पर - क्योंकि पेट भरे है, पेंशन, पीएफ, ग्रेज्युटी लेकर बैठे है, या ब्राह्मण गाइड के तलुए चाटकर पीएचडी हजम कर गए और अब किरान्तिकारी बन रहे है और नौकरी की जुगाड़ कर रहे प्रेमचंद की सौ साल पुरानी लाश पर
यह निर्लज्जता का समय है और इस समय में सबसे आसान है ब्राह्मणों को गाली देकर अपना उल्लू सीधा करना, गरीब अनपढ़ और दलितों के सबसे बड़े दुश्मन ये पढ़े लिखें दलित है - जो जूठन चाटकर दलितों को बौध्द बनाने को आतुर है, बन जाओ फिर मत आना आरक्षण का बहाना कर अपने हक़ मांगने
हिंदी समाज को इन लोगों को उखाड़ फेंकना चाहिये जो एक कायस्थ प्रेमचंद की सड़ी हुई कहानी के बहाने एक पढ़े लिखें और समाज के महत्वपूर्ण वर्ग को जबरन गलिया रहा है अपनी कुंठा और अपराध बोध में
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उसने इज़्ज़त गंवाई देश की और ये आज बढ़ाने जा रहें
देखें लेने कौन आता है पार्षद या अमेरिकन हिन्दू अल्प संख्यक प्रकोष्ठ का उपाध्यक्ष
किसके कितने गले पड़ेगा यह देखना है और सुन बै टेलीप्राम्पटर ठीक करवाया कि नई
और वो नारे लगाने वाले फर्जी देशभक्त आ रिये कि नई ट्रेक्टर में भरकर , ढंग के सौ डेढ़ सौ जोड़ी कपड़े रख लिए ?
कोई विवि तो बुलायेगा नही फिर भीड़ कैसे होगी यार - यह टेंशन है
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