धन्ना सेठों, ब्यूरोक्रेट्स, इनकम टैक्स के बाबुओं, रोटरी और जायन्ट्स क्लब के चंदे, अश्लीलता की हद तक बिके हुए मीडिया या मरे खपे समाजवादी साहित्यकारों की पूंजी और ब्याज से चलने वाले हिंदी साहित्य के आयोजन आपको लगता है समाज का भला करेंगे या दलित वंचितों की बात करेंगे
यदि आपका यह मानना है कि बैंक से, विवि से, रेवेन्यू से, ब्यूरोक्रेसी या किसी पीयूसी से रिटायर्ड आदमी जिसे सत्तर अस्सी लाख न्यूनतम मिला हो एकमुश्त, जो बंगले, उद्योग, होटलों का मालिक है, ब्याज और पेंशन मिलाकर डेढ़ - दो लाख का बोनस हर माह मुफ्त का मिलता हो जिसे और जिसके बच्चे विदेश या महानगरों में सेटल्ड है - वो समाज की बात करेगा - हैंगओवर में वह दलित - वंचित के लिये लिखेगा या अल्पसंख्यको से प्यार जतलायेगा, पर उसका ना अधिकारी मरा है अंदर का - ना सवर्ण - ऐसा सोचने वाले सब क्यूट है बहुत "एंड आय लभ डेम, सॉरी, देम आल "
"तू मेरी सुन और मैं तेरी" - की तर्ज पर चुके हुए औघड़ और बदमिज़ाज़ बूढों को बुलाकर, चार - पाँच निठल्ले प्राध्यापकों से अपना राजघाट सजाकर दस बारह निहायत मासूम और गाइड्स की तानाशाही से दबे क्षुब्ध शोधार्थियों को व्यवस्था से लेकर श्रोता बनाने वाले हिंदी के ये घटिया आयोजन सिर्फ स्वांत सुखाय, जुगाड़, सेटिंग, दारू पार्टी, निंदारस के चंद स्वर्गिक पल और कोरी आत्म मुग्धता के अलावा कुछ नही
ना इनसे कुछ भला होने वाला है - ना बुरा, इनका ध्येय है "जंगल में मोर नाचा मैं भी नँगा था और तू भी, वो भी और हम सब भी" बस इन दिनों हिंदी के साहित्यकार का कुल जमा हासिल यही है - कोई आदर्श हो तो बताओ
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◆ अभी नीट में चयन हुआ या नही - कन्फर्म नही है, एडमिशन तो बहुत दूर की बात है, 9000 के ऊपर रैंक है, प्राइवेट में पढ़ने लायक आर्थिक स्थिति नही है पर लड़के ने नाम बदल लिया Dr XYZ
◆ एक फर्जी कॉलेज से कोई परंपरागत पद्धति में कोर्स कर रहे है जनाब और नाम बदल लिया Dr Champak Lal
◆ लेबोरेटरी टेक्नीशियन को टट्टी पेशाब की टेस्ट ट्यूब से लेकर खून के सेंपल की स्लाइड धोने में मदद का काम है पर नाम बदल दिया Dr Gorelal, Jabran Colony wale
◆ नर्सिंग होम में वार्ड बॉय है, कभी - कभी हड्डी के डाक्टर को प्लास्टर पोतने में मदद कर देता है बस नाम बदल लिया Dr Mohanlal , हड्डी का स्पेशलिस्ट
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अनुमान लगाइये कि कौन राज्य और कौन जात है ई लोग, अब बुरा मत मान जाइयेगा - शत प्रतिशत सही कह रहा हूँ
मतलब हद है साला , गज्जब का देश है और गज्जब के लोग
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#आदिपुरुष देखी तो नही पर क्या इससे हिन्दू धर्म को खटके- झटके नही लग रहें, रिव्यूज़ पढ़कर मुझे तो अपने देवी देवताओं के अपमान सा लग रहा है
अब कहाँ है संस्कृति की दुहाई देने वाले और बात बात पर धर्म की बात करने वाले, हिन्दू भक्त ही इस फ़िल्म को बैन करने की मांग कर रहे है और भद्दी बता रहें है और असली वाले भक्त जिनका चौबीस घण्टे में 48 घण्टे खून खौलता है
अब मनोज मुन्तशिर को गिरफ़्तार करने और भादसं की धारा 295 A के तहत कार्यवाही की मांग नही करोगे रे दोगलों
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