मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार ने चुनाव और वोट की खातिर लाड़ली बहनाओ के खाते में 1000 रु बिना मेहनत के ही डाल दिए लेकिन जिन अतिथि शिक्षको ने मेहनत से बच्चो का भविष्य बनाया उनको 6 माह से वेतन नहीं दिया ये कहाँ का न्याय है , प्रदेश के मुखिया ने कल कहा कि वे इस राशि को धीरे-धीरे बढ़ाकर 3000 ₹ तक ले जाएंगे और यह सब हम जैसे टैक्स पेयर्स का रुपया है - जिनके लिए ना सड़क है, ना बिजली, ना पानी और सिस्टम के नाम पर एक पूरा भ्रष्ट तंत्र खड़ा है
देवास जिले में पंचायत सचिवों को पिछले 9 महीने से तनख्वाह नहीं मिली है, अनुकंपा नियुक्ति में लगे हजारों कर्मचारियों को वर्षों से इंक्रीमेंट नहीं मिला है और वह सिर्फ ₹18000 महीने पर नौकरी कर रहे हैं, एक परीक्षा CPCT के नाम पर हजारों कर्मचारियों को यह सरकार विशुद्ध बेवकूफ बना रही है - इसका क्या करें, प्रदेश के सामान्य प्रशासन विभाग में 2 वरिष्ठ अधिकारी मित्र हैं, जब उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि हम कुछ नहीं कर सकते यह निर्णय कैबिनेट का है
RTE के अंतर्गत निजी स्कूल जिन गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं और 25% छात्रों को प्रवेश देते हैं उनकी फीस तक इस सरकार ने पिछले 4 सालों में नहीं दी है सिर्फ मुफ्त की रेवड़ी बांटने के लिए इस सरकार के पास पैसा है इतना कर्जा हो गया है कि मध्य प्रदेश का नाम दुनिया में रोशन हो रहा है पर फिर भी ना लोगों को समझ में आ रहा है ना मीडिया को और ब्यूरोक्रेट को तो संघ की शाखा में जाकर चड्डी पहनना ही है इसलिए वे सुझाव देने के बजाय अपनी रीढ़ की हड्डी बेच चुके हैं और पूरी चापलूसी और तन्मयता के साथ सरकार की जी हुजूरी में लगे हैं
इस मामा सरकार ने 20 साल में प्रदेश का सत्यानाश कर दिया है क्या किया जाए
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किसी नेता, ब्यूरोक्रेट या राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी में अचानक नैतिकता जगना घातक है देश, प्रदेश, समाज और उसके खुद के परिवार सहित उसके अपने व्यक्तित्व के लिये
भगवान भला करें
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बड़ा दुखद दिन रहा आज का
एक युवा मित्र के बड़े भाई ने जो सिर्फ 30 वर्ष का है, बिजनेस में अचानक हुए नुकसान से आहत होकर बुरी तरह पीना आरम्भ किया और अभी आत्महत्या करने की कोशिश की, शुक्र है बच गया अभी तो पर कल क्या होगा - कह नही सकता और उस नुकसान की भरपाई कैसे और कौन करेगा नही मालूम
दूसरी बुरी खबर उसकी जो मात्र बत्तीस वर्ष की उम्र का था, बिहार से आकर मुम्बई में पढाई की, नौकरी की, प्रेम किया और प्रेम विवाह किया, अभी 5 वर्ष हुए ही होंगे कि कैंसर ने जकड़ लिया और आज आख़िर देह को त्याग दिया - मेरे सामने ही सब हुआ और आज जब वह यह नश्वर देह त्याग गया तो मैं नही हूँ वहाँ, एक पत्नी और विधवा माँ - कितना निष्ठुर है ईश्वर और यह जंजाल
मौत तो सबको आनी है पर ये युवावस्था, ये संसार और मौत का तांडव, अभी हमारे प्रोजेक्ट एरिया के युवा साथी संजय की राख ठंडी भी नही हुई थी और आज ये दो विचलित करने वाली खबरें
आहत है मन, बस कुछ नही लिखना, श्रद्धांजलि भी कैसे लिख दूँ उस युवा को जो बगैर किसी आदत और मजबूरी के केंसर से हार गया उसकी युवा दक्ष पत्नी, अभी पिछले हफ्ते ही जन्मदिन की बधाई दी तो बोली थी "अंकल अबकी मुम्बई आये तो घर आइयेगा", अब किस मुंह से जाऊँगा
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