और अंत में प्रार्थना यही रहें, मेरे मन की बात जोशना की कविता के साथ
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जब थम जाये मेरी श्वासगति
गहरे शोक में डूबकर नहीं करना मुझे याद
मत भींचना पसीजी मुठ्ठियों को
कंठ से निकालना फाया कुन फाया कुन
सीटी बजाना कदम्ब के नीचे
गिलहरियों और तितलियों को देना सुरक्षित जगह
अपनी जीत के बाद ज़ोर से चिल्लाना
याद रखना आकाश गूँगा नहीं होगा
नहीं सोयेगी कोई नदी
मत देना मेरी कविताओं को देश निकाला
किसी खाली खिड़की पर ठहरकर पक्षियों को सुनाना
एकला चौलो रे
मुझे एक बार चूमने का मन हो तो
चूम लेना खुद की हथेलियाँ
तुम्हारी हथेलियों पर मैंने अपनी उम्मीदें बोई थी
मुझे दो बार चूमने का मन हो तो
चूम लेना केतकी के पुष्प
उन्हें शिवलिंग पर नहीं चढ़ाया जाता
उन्हें देना खूब स्नेह
एक नन्हे बच्चे की तरह बिलखने का मन करे
तो उसके सामने बिलखना जिससे करते हो सच्चा प्रेम
मत याद करना वह समय जब मैंनें तुमसे पूछा हो कि
क्या बात कर सकती हूँ तुमसे?
मत सोचना ये भी कि कितना कठिन रहा होगा मेरा संघर्ष उस समय
उस समय को याद करके छोटे बच्चों और रोगियों को कविताऐं सुनाना
छोटे बच्चों और रोगियों के लिए ये निहायती ज़रूरी है कि उन्हें
कविताऐं सुनाई जाये
जीवन की, खुशी की, आस की, फूलों की, प्रकृति की, पक्षियों की,
आन मान और शान की और वीरों की कविताऐं
मेरे कमरे में पिता की बड़ी तस्वीर के पीछे छोटे छोटे
अक्षरों में लिखी हैं मेरी कुछ इच्छाऐं
आना उन्हें पढ़ने कभी छुट्टियों में
तुम्हारा एक भी आँसू बहा तो वह ले जा सकता है मुझे
और कई कई मीलों दूर तुमसे
मत इकठ्ठा होना मेरी शोक सभा में
फैल जाना चारों ओर
पहाड़ो पर चढ़ना, करना रिवर रॉफ्टिंग और स्कूबा डाईविंग,
सुंदरबन देखना, हुगली नदी के दाहिने तट पर जाना,
सेतुओं पर चलना
रवींद्र सेतु और अजायबघरों में समय बिताना
ट्राम की सवारी करना
बतखों और मछलियों को दाने खिलाना
बाउल संगीत पर थिरकना ज़रूर
बहुत आनंद मिलेगा तुम्हें
पिता से छिपकर दो एक बार हम भाई बहनों ने कालीबाड़ी
के ठीक पीछे झाड़ की आड़ में बीड़ी पी थी
मेरे हर जन्मदिवस पर वे सभी इकठ्ठा होकर बीड़ी पीकर ही
मुझे याद करें, ऐसा उनसे कह दिया है मैंने
मुझे फ्रीडा काहलो, शरतचंद्र चैटर्जी, रबींद्रनाथ ठाकुर,
पाब्लो नेरूदा, महिला जासूस माताहारी बेहद पसंद हैं
खाली समय में पढ़ना इनकी जीवनी मेरे बाद
मेरे कमरे की किताबें नये कवियों में बाँट देना
जब उन्हें नकारा जायेगा तो मेरी किताबें उनका बल बनेंगी
मेरे नाम से किसी को खाना खिलाना हो तो किसी अनाथ
बच्चे को करा देना भरपेट भोजन
लाल साग, सहजन, मसूर दाल, चावल ये सब रखना
मीठे में रखना नोलेन गुड़ की खीर
और इंडियन कॉफी हाऊस की एक मग कॉफी
जब थम जाये मेरी श्वासगति
मुझे मोद में झूमकर याद करना
मेरी कविताओं पर अपनी कोहनियाँँ टिका कर सोचना
कि मुझे समय न देने पर भी मैंने किया था तुमसे असीम प्रेम
मत विलिन होना क्षोभ के उत्सव में
जो कभी घट ना सका उसके घटने की उम्मीद में
खुद को मत घटाना हर घड़ी
मुझे रोने की विकट आदत है
प्रयत्न करना कि तुम्हारी वजह से कोई अश्रु ना बहाये
सबको सुख न दे सको तो रूककर उनकी बात धैर्य से सुनना
ऐसा करने पर ईश्वर तुम्हारी इबादत करेगा
जब थम जाये मेरी श्वासगति
देखना मेरी तस्वीर को ध्यान से
और विश्वास रखना मैं जहाँ भी हूँँ कर रही हूँ सभी दोस्तों के लिए प्रार्थनाएँ।
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इंदौर में हुई महिला प्राचार्य की हत्या दुखद है, निश्चित ही आशुतोष श्रीवास्तव को सजा मिलनी चाहिये
पर निजी महाविद्यालयों द्वारा जिस तरह से मार्कशीट रखने, टीसी ना देने, काशनमनी ना लौटाने, छात्रों की डिग्री ना देने और रूपये ऐंठने के हथकंडे अपनाए जाते है वह भी दुखद है और प्राचार्य इसमें महती भूमिका निभाते है
जो हुआ वह बेहद दुखद है, अपराध, अपराध ही है, पर इसके पहले की कहानी भी कम दुखद नही है ; एक प्रोफेसर को उसने चाकू मारा था पहले पर वह शायद उसकी मार्कशीट दबाकर बैठा था यह सुना, और ये 8000 रूपट्टी पाने वाले अयोग्य लोग जिन्हें कोई नौकरी नही मिलती तो प्रोफेसर बन जाते है, बहुधा छात्रों पर अपनी खुन्नस निकालते है, कोई भी युवा इतना मूर्ख कभी नही होगा, मैं 37 वर्षों से युवाओं, किशोर छात्रों से जुड़ा हूँ - आजतक किसी ने बदतमीजी नही की, क्योंकि मैंने सबको सम्मान दिया और एक व्यक्ति माना ना कि गुलाम
निजी महाविद्यालयों की दादागिरी पर रोक लगनी चाहिए - खासकर के व्यवसायिक कॉलेजों में प्राचार्य, अध्यापक और मैनेजमेंट गुंडागर्दी की हद तक उतर आते हैं और इन जैसे नालायक लोगों को कानून के दायरे में रहकर भी सजा दी जानी चाहिए
I am not justifying the Murder nor advocating the culprit, but the college management is equally responsible for this pathetic murder and episode, in the way students are being exploited at all the levels, it is embarrassing and humiliating ; there is an urgent need to appoint a committee to look after in such cases, I mean how a principal can withhold the Marksheet of any student for a long period and embarrass the young student. The Principal might have been under pressure, but she should not have acted in a dirty way.
Please don't argue, think, had he been your ward, a principal spoiled life of a young man and ended up in a brutal way !!! Students also deserve respect and have all the constitutional & fundamental rights, S/he is not your slave and you being Principal does not mean, you owe his or her life, stop morale policing, get rid from feudal mentality
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