जिस अंदाज में महंगाई बढ़ी और नौकरियां कम हुई साथ ही जीएसटी से लेकर नोटबन्दी के दुष्प्रभाव अब स्पष्ट दिख रहे है और इस सबके बाद सरकार का जो घटिया रवैया है लोगों के प्रति - वह बेहद दुखद है
आज़ादी के बाद सबसे घटिया और गैर जिम्मेदाराना व्यवहार वाली सरकार है
जनता भाँग और गांजा पीकर मस्त है, अडाणी - अम्बानी जैसे लोगों ने जो सत्यानाश कर दिया है अर्थ व्यवस्था और बैंकिंग का वह भी समझ नही आ रहा, मतलब हद यह है कि लगता है पूरी जनता रोटी नही गोबर खा रही है और मदमस्त हो रही है और बेरोजगारी झेल युवाओं को अफ़ीम चाटना ही है ; इतने पढ़े - लिखें गंवार आकाशगंगा के किसी कोने में नही होंगे
दूध हुआ महंगा 3/- प्रति लीटर
कोई हुक्मरान को जहर का भाव भी बता दें अब
शर्मनाक है और बजट पर थाली पीटो रे कम्बख्तों
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रजत शर्मा ने पूछा था कि सेठ, अगर गए तो क्या होगा, तो सेठ बोला था - मेहनत करो, बैंक वेंक को कुछ नही होगा
रजत और रवीश के चक्कर में बापड़ा गौतम गरीब मारा गया और अब दुनिया में मुँह दिखाने लायक नही रहा
कसम खुदा की, रजत शर्मा चाय वाले को भी बुला लें एक बार
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|| जो भजे हरि को ||
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सुबह से कुछ खोज रहा था, लगभग दर्जन भर एनजीओ की वेबसाईट देखी - दो तीन अवलोकन मेरे है -
◆ अपडेट किये हुए वर्षों बीत गए
◆ सबकी सब अँग्रेजी में है - काम दलित, आदिवासी, गौंड, कोरकू, सहरिया या वाल्मीकि समाज के साथ है पर लेखा जोखा अँग्रेजी में है - दो अर्थ निकाले मैंने : 1 - या तो ये वेबसाईट अपने डोनर या फ़ंडर के लिए है या सिर्फ अनुदान लेने के लिए और 2 - अपने लक्षित समूह से कोई लेना देना नही है और ना ही उन्हें ये कुछ बताना चाहते है कि रिपोर्ट और आंकड़ों में क्या लिख रहे है
◆ जिस मुद्दे को लेकर यह नरेटिव्ह गढ़ना चाहते है उसे एक ही चम्मच से परोस दिया है फिर वो समुदाय को समझाना हो, जनप्रतिनिधि को, कलेक्टर को या मीडिया को - कोई स्पष्टता नही और कोई अर्थ नही लम्बे लम्बे अँग्रेजी में लिखे वक्तव्यों और रिपोर्ट्स का, जिस किसी भी ज्ञानी ने लिखा उसने भी गूगल से चैंपकर रंग-बिरंगे चित्र, ग्राफ और टेबल बना दिये जबकि इन सबका मुद्दों या रिपोर्ट की आत्मा से लेना देना ही नही है फिर यह सब लम्बा - लम्बा प्रवचन क्यों
◆ फोटोज़ और वीडियो में सिर्फ संस्थाओं के मठाधीशों के फोटो और क्लिप्स है - ना लक्षित समूह, ना समुदाय, ना गांव और ना काम की झलक - मतलब केस स्टडी जिसे कहते है उसका औचित्य भी इन्हें नही मालूम - महिला सशक्तिकरण का काम कर रहें और अनुसूचित जनजाति के बालक छात्रावास में किचन गार्डन बनाने को केस स्टडी से दर्शाया जा रहा है , जल - जंगल -ज़मीन के मुद्दे पर काम है और केस स्टडी है मोतियाबिंद शिविर की - मतलब गज्जब है
बहरहाल, कहने का अर्थ यह है कि वेबसाईट का बनना और उसे अपडेट और मेंटेन रखना दुरूह है और इससे बेहतर है कि ना ही हो क्योकि यदि आप नरेटिव्ह सेट करने के लिए काम कर रहे तो अपनी समझ तो साफ करो मित्रों
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"अडाणी का भंडाफोड़ हो गया अमित भाई, अब्बी तो राज्यों के चुनाव और 2024 में अपुन को भी उतरना है मैदान में साला, कोई नया मुद्दा ढूंढों, पाकिस्तान और चीन का भी मुद्दा चलेगा नही, क्या करें, पैसा किदर से आयेगा - भोत बीपी बढ़ रियाँ है मेरा और अब्बी से के रियाँ हूँ परचार करने बस और ट्रेन से नई जाऊँगा, सिरिफ हेलीकॉप्टर ई चईये मेरे कूँ, नए कपड़े भी नई है मेरे पास अब, सब पेन लिए हेंगे"
"मोई जी चिंता नको, अब्बी तो मेरे कूँ अपने पैसे वापिस लेने दो सेठ से - आप तो बजट के गुणगान गाओ, लोगों को बिजी रखो और इस अम्बानी पर निगाह रखो - यह खेल इसी का लग रहा है"
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महामहिम राष्ट्रपति और माननीय उपराष्ट्रपति के अभिभाषण सुनकर मैं द्रवित हूँ और लगा कि अब तक फालतू में ही अपराध बोध से जूझ रहा था
कितने ईमानदार, सम्पन्न, उन्नत, डिजिटली सक्षम, सुशासन से परिपूर्ण और विकसित देश में रहता हूँ
कर्तव्य पथ पर झोपड़ा बनाने की सोच रियाँ हूँ, प्रधानमंत्री आवास योजना से ढाई लाख रुपये में तो बन ही जायेगा और हर माह 5 किलो राशन मुफ्त - बस 2029 तक का हो गया जुगाड़, अपने राम तो बस नर में इंद्र ही है अब
आय लव माय गवर्नमेंट
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क्यों ना हिंदी में आलोचना या समालोचना का नाम "अमृतालोचना" कर दिया जाए - मोदी सरकार वैसे ही अमर है, और फिर अपने गिरगिटों को ज्ञानपीठ और सरकारी पुरस्कार लेने में भी सुविधा हो जाएगी और केवि, नबोदय, विवि के माड़साब लोग्स और बुरो'करेट्स भी परमोशन - पे - परमोशन ले सकेंगे - पूरी ढीठता और बेशर्मी से
क्या ख़याल है मित्रों
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"इन दिनों मेरी किताब" पर अभी एक पुस्तक समीक्षा पोस्ट की, एडमिन ने छापने से मना कर दिया, ना कोई सन्देश, ना इनबॉक्स, ना मेल आईडी और ना कोई मोबाइल नम्बर, मल्लब सब एक तरफा है और बस झेलते रहो अड़ी सडी समीक्षाएं - उफ़्फ़ क्या नीचता है , पेज का एडमिन है या मोदी का बाप
मूर्खों और तानाशाह लोगों का जमावड़ा है कुल मिलाकर, हाथ पांव जोड़कर ग्रुप में जोड़ने के लिए आते है और फिर शुरू होता है इनका घटिया काम
अपुन भी ग्रुप छोड़कर आ गया वहां से, ससुरों को ट्रोल करने का अब
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कल कहा था ना साहित्य धँधा है चार उजबकों और छह सजी धजी फुरसती महिलाओं का खेल एकदम जिन्हें ना समझ है और ना अक्ल
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अचानक कही से आम के बौर याद आ गये - जब लखनऊ से हरदोई जाता था तो मलिहाबाद रास्ते में पड़ता था संडीला के ठीक पहले
रास्ते भर आम के विशाल पेड़ खड़े रहते थे, उनकी देखभाल करने वाले अपने बच्चों के समान उनकी देखभाल करते, पानी डालते, पत्तियाँ सँवारते और शाखाओं को छाँटते, नए युग आये बौरों को राहगीरों के पत्थरों से बचाते
फरवरी - मार्च के आते -आते आम के पेड़ पर बौर उग आते, उसकी मदमस्त करने वाली खुशबू के लालच में मैं हरदोई का दौरा निकाल लेता, घण्टों रास्ते में खड़ा रहकर उस दिव्य सुवास को सूंघा करता, पागलपन की हद तक इस सुवास से मुझे प्यार था
थोड़े समय बाद खट्टी- मीठी कच्ची केरिया लगती, मैं उन्हें देखता, निहारता - हरे रंग के जितने स्वरूप मैंने आम की इन कच्ची केरियो में देखें है - उतने कही नही, इन शैतान केरियों के लिए मैं अपनी जान दे सकता हूँ, इनके अमृत स्वाद का दीवाना हूँ - इन्हें बढ़ते देखना और पके आम में परिवर्तित होते देखने के लिए ही हम सब जन्में हैं
थोड़े दिन बाद आम अपने शबाब पर आते पर अफ़सोस - उन्हें पालने-पोसने वाले दूर खड़े रहते - ठेकेदार पूरी अमराई ठेके पर उठा लेता - उसके मजदूर आते और एक - एक आम बेरहमी से तोड़ लेते और ट्रक में भरकर ले जाते, वे छोटी केरियों को भी नही छोड़ते कम्बख़्त
मैं रुकता और कुछ नही सोचता, बस टुकुर - टुकुर देखता रहता, कभी आम और कभी उसके पालनहारों को - दिन ढलने के पहले ही लौट आता लखनऊ और छोटे - बड़े इमामबाड़ों, भूलभुलैया, किसी मजार पर या शहीद पथ से उतरकर गोमती के किनारे जा बैठता उदासी में
आम की खटास मन में घुल - घुलकर उतरती और मैं धीरे से रात होने का इंतज़ार करता, लखनऊ छोड़ने का दुख नही था - दुख था तो उन आम के बागानों का जो आज भी फल दे रहें होंगे, उनके पालनहार पानी छींट रहे होंगे, कचरा बीन रहें होंगे और शाखाओं पर आ रहे बौर को राहगीरों से बचा रहे होंगे
ठेकेदार फिर आएगा और सारे कच्चे - पक्के आम तोड़कर ले जाएगा, अफ़सोस मेरे इस शहर में कोई नदी नही - जिसके किनारे जाकर मैं लहरों में उन आमों का दर्द उकेर सकूँ
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Everybody is looking for something - inside or outside as we all are alone
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