"अब यह बिछड़ना और अधिक कठिन लगने लगा है, जिस जगह तुम बैठती थी, उस ओर मैं देखता हूं और उसे खाली देखकर अत्यंत उदास हो जाता हूँ"
अलका सरावगी हिंदी की वरिष्ठ और प्रतिष्ठित लेखिका है "कलि कथा वाया बायपास" मेरी प्रिय कृति है, बेहद संजीदा और परिपक्व भाषा के साथ लिखने वाली अलका जी स्वभाव से भी सहज और सरल है, अपने लेखन में वे जहाँ इतिहास को टटोलती है वही सम सामयिक मुद्दों पर भी पैनी नजर रखती है, उपन्यास उनकी वो विधा है जिसपर वे मजबूत पकड़ रखती है और कड़ी मेहनत से एक बड़ा वितान रचकर अपना उत्कृष्ट देने का पूरा प्रयास करती है
"गांधी और सरलादेवी चौधरानी - बारह अध्याय" उनकी नई कृति है, जिसमे वे गांधी और सरलादेवी के बारे में विस्तृत रूप से लिखती है ; जिस सरला देवी चौधरानी की बौद्धिक प्रतिभा और देश की आजादी के यज्ञ में खुद को आहुति बनाने का संकल्प देख गांधी ने अपनी "आध्यात्मिक पत्नी" का दर्जा दिया - उसका नाम इतिहास के पन्नों में कहां दर्ज है, कोलकाता के जोड़ासाँको के टैगोर परिवार की संस्कृति में पली-बढ़ी सरला देवी ने अपने मामा रवीन्द्रनाथ टैगोर के साथ वंदे मातरम की धुन बनाई - यह किसने याद रखा
अलका सरावगी का यह उपन्यास सौ साल पहले घटे जलियांवाला बाग के समय के विस्तृत किरदारों की एक गाथा है जो इतिहास की धूप छांव के बीच अपनी जगह बनाने में, अपने रूपक की तलाश में नए अध्याय रचतें हैं , ऐसे ही 12 अध्याय की एक कहानी है गांधी और सरला देवी चौधरानी की, यह केवल सरला देवी की नहीं - बल्कि गांधी की भी कथा है कि वे स्त्रियों को कैसे देखते थे, कैसे समझते थे, एक मनुष्य जीवन जीने के तरीके में देश के लिए लड़ने में, प्रेम करने में कैसे नैतिक हो सकता है - इसकी कथा है गांधी के उस मन की थाह देता है जहां निजी और सार्वजनिक में कोई भेद नहीं है
***
मप्र में विकास यात्रा का नाटक भाजपा की अंदरूनी लड़ाई में वर्चस्व स्थापित करने की होड़ है, मजेदार यह है कि भाजपा की बैकबोन यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस पूरी नौटंकी से दूर है बहुत दूर है और वह खुद इस तरह के प्रपंच में पड़ना नहीं चाहता जहां जनता के मुद्दों से दो चार होना पड़े
कुछ नही होगा इससे, जनता सब जान भी रही है, प्रशासन भी समझता है, विधायको के पास जवाब नही है सवालों के , कलश और नारियल के साथ भौंडे गीत और हल्ले में ये सब पाप छुपा रहे है
जैसे देवास शहर या विधानसभा क्षेत्र की बात हो - देवास में जब तक सामंतवाद खत्म नही होगा कुछ नही होगा, भाजपा कांग्रेस के एक परिवार को गाली देती है और यह भूल जाती है कि देवास का सत्यानाश एक परिवार ने 40 साल में कर दिया, भयानक तरीके से शहर का नुकसान किया और अब सिर्फ रोजगार ही नही आधारभूत ढाँचों का भी सत्यानाश किया है
जब तक इस सामंती परिवार और दरबारी चाटुकारों का लोकतंत्र से खात्मा नही होगा कुछ नही हो सकता , 2023 एक मौका है वरना फिर वही सब होगा जो चार दशकों से हो रहा है, शर्मनाक लड़की भाजपा पिछले चार दशकों में एक कद्दावर नेता तैयार नहीं कर सकी और एक परिवार के पति पत्नी ने देवास शहर में 40 साल से नेतृत्व के नाम पर जनता को सिर्फ धोखा दिया कोई विकास नहीं किया रोजगार खत्म कर दिए उद्योग खत्म कर दिए और अभी जब मेट्रो जैसी सुविधा देवास में आना थी तो उसके लिए भी विधायक कुछ नहीं कर सके शिव नगर निगम में एक राजपत्रित महिला अधिकारी का स्थानांतरण करवाना ही उनकी उपलब्धि है, शहर के एबी रोड पर दोनों तरफ दो पुल के ढांचे बनाकर रख दिए हैं जो सिर्फ मूर्खता के नमूने हैं और जिसका न ट्रैफिक से कोई लेना-देना है और ना विकास से, बस आम जनता को परेशान करना है - पूरा शहर गड्ढों से और अनियंत्रित विकास, अतिक्रमण से भरा पड़ा है, ना सड़क है, ना पानी - आधे से ज्यादा देवास रोज़ सुबह 10:00 बजे इंदौर चला जाता है, शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक की हालत बर्बाद है और मजाल कि विधायकनया उनके छर्रे कभी जनता में जाए ; भोपाल या किसी और शहर में जाने के लिए बसे शहर के भीतर नहीं घुसती - आष्टा जैसे छोटे कस्बे में चार्टर्ड बस का ऑफिस है, परंतु देवास जैसे जिला मुख्यालय पर भोपाल जाना हो तो किसी प्रसव पीड़ा से कम नहीं है बस ढूंढ़ना और यात्रा करना, मतलब इनकी ना दूर दृष्टि है इनकी ना कोई विकास की समझ है
मतलब हद यह है कि 1982 में बना जिला अस्पताल तत्कालीन जरूरतों के हिसाब से पर्याप्त था जिसका उद्घाटन स्वर्गीय अर्जुन सिंह ने किया था, उसके बाद आज तक शहर में कोई अस्पताल बना ही नहीं है सिर्फ निजी अस्पतालों की बाढ़ आई है - बावजूद इस सबके मलेरिया के इलाज के लिए भी लोगों को इंदौर दौड़ना पड़ता है इतने निकम्मे और नालायक डॉक्टर है यहां के ; चार हायर सेकेंडरी स्कूल थे उतने ही अभी भी है मॉडल स्कूल बना केंद्र से और अब सीएम राइज़ बनेगा कभी, और बाकी निजी स्कूलों की बाढ़ ही है, उच्च शिक्षा का तो छोड़ ही दीजिए जितना कबाड़ा हो सकता था उतना तो भगवान भी नहीं कर सकता, सिवाय घटिया राजनीति और अखाड़ों के 4 कॉलेज चल रहे हैं जिसमें पढ़ाई के नाम पर कुछ नही, पढ़ाई को छोड़कर सब कुछ होता है शहर में ना कोई इंजीनियरिंग कॉलेज है ना मेडिकल कॉलेज - एक निजी अमलतास कॉलेज जरूर है जिसने कोरोना के दौरान अरबों रुपया कमा लिया और लगभग 500 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट निपटा दिया - यह जिला मुख्यालय के हाल है जिले के अंदरूनी क्षेत्रों का तो कोई हिसाब ही नहीं है
जिले में भी भाजपा विधायकों को पसीना आ गया है, सारे भ्रष्टाचार, विकास के वादे और अंदरूनी गुटबाजी सड़कों पर आ गई है गांव गांव में इनके कार्यकर्ता , सरपंच और मंडल स्तर पर गठित समितियों के लोग जनता से मुंह मिलाने में और चेहरा दिखाने में पीछे हैं, सिर्फ हल्ले - गुल्ले में विकास यात्रा चल रही है , पूरा प्रशासन मजे लेकर विधायकों के साथ चल रहा है, बेशर्मी इतनी है कि कीचड़, गोबर, मल और गढ्ढे में से जा रहे हैं - पर यह नहीं सोच रहे कि इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं "यह विकास यात्रा नहीं विनाश यात्रा है हमारे लिए" - किसी विधायक ने बताया था अभी
एक बात तो पक्की है शिवराज सिंह चौहान मुखिया नही होंगे, सारे जमीनी और संविदा कर्मचारियों ने कसम खा ली है कुछ भी कर ले ये श्रीमान अब, एक बंटाधार थे और ये अब "मामा बंटाधार" बनेंगे , 3 से लेकर 9 माह तक का वेतन नही दिया है इस भ्रष्ट सरकार ने कर्मचारियों को तो क्या कहा जाये
***
◆ ताजे नींबू के पर्याप्त रस में यानी टुकड़े डूब जाये इतना, और इसमें थोड़ा सा नमक मिलाकर 3,4 दिन धूप में रख दे
◆ और फिर रोज 5,6 टुकड़े खाये
◆ मेरी फीस के रूप में 2 किलो हल्दी भिजवा दें
________
मैं एक मौसम में इस तरह की हल्दी 3,4 किलो चट कर जाता हूँ, बाकी एकाध किलो सूखा लेता हूँ अदरख के साथ , सालभर खाता हूं
***
1996 के आगे
एक ज़माने में इस इलाके में मैंने समाज कार्य शुरू किया था - समय था 1989 और खातेगांव आना हमेंशा इन बच्चों के बीच चकमक और पुस्तकालय की किताबें पढ़ना - पढ़वाना, गतिविधियां करवाना और साक्षरता के साथ बालमेलों की लम्बी श्रृंखला सरकारी स्कूलों में चलाना एक जोश, मिशन का हिस्सा हुआ करता था
खातेगांव से लेकर नामनपुर, बिचकुआ, बाई जगवाड़ा, भंडारिया, टिपरास, अजनास और इधर पिपलिया नानकार से लेकर कणा, बछखाल, खल, हरणगांव, चंदुपुरा, कुसमान्या तक सायकिल से गांव के गांव नाप दिए थे, तब ना साधन थे और ना ही सुविधाएँ - खातेगांव से संदलपुर तक बहुधा पैदल चलना पड़ता था , आज खातेगांव एक आधुनिक शहर है, गोला - गुठान, नामनपुर, बिचकुआ, धायली, अजनास, पिपलकोटा देखकर हैरान हूँ - बांध, सड़क और बाकी तमाम परियोजनाओं के मुआवजे ने लोगों को इतना समृद्ध कर दिया है कि सुदूर गांवों में करोड़ो के मकान बने है, मतलब कौनसी गाड़ी नही है इस क्षेत्र में और बाज़ार गुलज़ार है, रंगीन चमक - दमक किसी महानगर को टक्कर दे रही है और ऐसे सबमें मुझे वो दिन याद आते है - जब हम छीपानेर में माँ नर्मदा के किनारे किसी टपरे के नीचे रहते थे और इलाके में काम करते थे , खातेगांव में अब मल्टिप्लेक्स बनने जा रहा है - गज्जबै हो गया है
हमारे लम्बे समय तक काम करने से इस इलाके से सबसे ज़्यादा बच्चें निकले जो बेहतर कार्यकर्ता ही नही बल्कि आज बेहतर इंसान भी है और एक अलग फ़र्क नज़र आता है उनमें Ajay Jain , Mahesh Kumar Yadav Gurjar , Rajesh Tiwari गजानंद, शाकिर पठान, बाबूलाल, भागीरथ चौधरी, आदि ऐसे हमारे चमकते हीरो है कि कह नही सकता
Deepak Pastariya से आज मुलाकात हुई दीपक 47 का हो गया है उसका बेटा बारहवीं में पढ़ रहा है, खातेगांव में बगैर नागे के रोज़ सुबह प्रभात फेरी निकालकर अलख जगाने वाले दीपक को रामायण कंठस्थ है और वे अपने मोहल्ले के मंदिर में मानस का पाठ करते है उनका बेटा बढ़िया ढोल बजाना सीख रहा है
आज कितनी ही बातें याद आई और कितने ही मित्रों को हमने याद किया Ravi भाई से फोन पर लम्बी बात की
वाह दीपक मजा आ गया यार, खूब जियो बिटवा और ख़ुश रहो
***
जस्टिस अब्दुल एस नजीर जैसे विद्वान और कानून के जानकार सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश को राज्यपाल का पद स्वीकार ही नही करना था
कितनी सरल और सहज प्रक्रिया थी - नोटबंदी का सरकार के हित में फ़ैसला, रिटायर्डमेन्ट और एकाध हफ़्ते में ही राज्यपाल का पद, मतलब गज्जबै की फुर्ती थी इस सबमें, कानून का विद्यार्थी होने के नाते मेरी निगाह में एक वरिष्ठ न्यायाधीश को इस तरह के पद की लालसा ही नही करनी चाहिये, यह बेहद शर्मनाक है
सब गोलमाल है - न न्यायाधीश और न ही राज्यपाल - दोनो ही पदों की विश्वसनीयता अब संदिग्ध हो गई है
***
देवास जिले में मनरेगा के भुगतान पिछले 3 - 4 वर्षों से नही हुए है और हर पंचायत इस समस्या से जूझ रही है, बाकी जिलों में यही हाल हो सम्भवतः
ग्राम पंचायत के सचिव ठेकेदारों को 2 - 3 % ब्याज मासिक दे रहें है क्योंकि उन्होंने तुरंत भुगतान के वादे पर काम करवा लिए थे
इधर शिवराज सरकार विकास यात्रा के नाम पर करोड़ो रूपये बर्बाद कर रही है, इस यात्रा में जब ये ग्राम सचिव अधिकारियों से बात करते है तो अधिकारी टालमटोल करते है और हर पेमेंट पर अपना कमीशन मांगते है जो 10 से 18% तक होता है
इस वर्ष केंद्र ने मनरेगा के बजट और कम कर दिया है, गांवों में आजीविका की हालत बहुत खराब है
कांग्रेस को ज़मीनी हकीकतों से कोई वास्ता नही है, बस ट्वीट करने में लगे है और मीडिया को इस सरकार की फर्जी छबि बनाने से फुर्सत नही है
शर्मनाक है यह सब
Comments