हे बेशर्म हो चुके बुद्धूजीवी
• प्रचार प्रसार ठीक है
• बेचना, बिकवाने का काम भी ठीक
• आत्ममुग्धता भी ठीक
• फोटो खिंचवाने का काम भी ठीक ही है
◆ पर दस बीस साल से लेकर दो - चार साल पुरानी किताबों का एक चौथाई के भाव पर बेचना और जबरन थोपना किस चाणक्य ने कहा है बै
◆ और सब समझदार है, सब पत्र - पत्रिकाएँ पढ़ते है, इंटरनेट के साक्षर है और सब गूगल करके बेहतरीन सामग्री खोजने में सक्षम भी है, अपनी समझ, शौक, रुचि और ज़रूरत भी जानते है हम
◆ इतना बेवकूफ मत समझो कि तुम्हारी ठेली हुई लिंक और दिए हुए पते पर ढूँढते हुए किताब लेने पहुंच जायेंगे पाठक
◆ अब इतने तो कुढ़ मगज नही कि तुम्हारे यार - दोस्तो और रंगीन और रंगहीन बूढ़ी हो चुकी तितलियों की घटिया और बकवास किताबों को तुम रिकमेंड करो और हम ऑर्डर कर दें या खरीद लें - मुआफ़ करिए अगर यह मुग़ालता है तो तुरंत दूर कर लें
◆ परेशान हो गया हूँ एक ही दिन में इनबॉक्स में मिली लिंक, स्टॉल के पते और चिकने - चुपड़े, काले - पीले और टेढ़े-मेढ़े चेहरों को भयानक गोरा बनाकर डेढ़ किलो की फर्जी मुस्कुराहट चैंपकर भेजे हुए फोटोज़ से
◆बन्द करिए यह अश्लील प्रदर्शन - तीस से लेकर सत्तर हजार देकर कूड़ा छपवाने का काम कर आपने कोई महान काम नही किया, जाकर पूछिये प्रकाशक से कि आपको जानता है या नही, उसके स्टॉल पर आपकी क़िताब है या नही, आपके जाने पर चाय तो दूर पानी की बोतल छुपा देगा कम्बख़्त, दोपहर को खाना कही छुपकर खा लेगा जबकि आपके घर या शहर आकर दारू मुर्गा तक डकार चुका होगा आपके रूपयों से, वह बेवकूफ 30 से 100 किताबों का लोकार्पण एक दिन में कर रहा है, पूरे 8 दिन में हजार किताबे खपा देगा और लोकार्पण के समय बांटने वाली नुक्ती और पेड़े का पैसा भी आप से ही वसूलेगा, आपको किताबों का हिसाब देना तो दूर, बाद में आपको पहचानेगा भी नहीं - इतना शातिर है इस समय हिंदी का प्रकाशक, आप कहे तो मैं नाम गिना दूं इन फर्जी लोगों के
◆ बन्द कीजिये पुस्तक प्रेम का नाटक और प्रदर्शन, घर में रखी किताबें पढ़ लीजिये, शहर या मुहल्ले की लाइब्रेरी खंगाल लीजिये, फिर नया ढोंग करिए
■ मूर्खता की हद होती है
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