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Khari Khari, Kuchh Rang Pyar Ke, Drisht Kavi and Jaipur train women empowerment - Posts from 28 Oct to 2 Nov 2022


#कुल्फ़ी मिळाली, खूप छान, हर्षल आणि पूर्ण टीम चं अभिनन्दन आणि मनापासून शुभेच्छा , लवकरच वाचून लिहिन - हे नक़्क़ी
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मराठी में बच्चों और किशोर वय के मित्रों के लिए कुल्फ़ी पत्रिका की शुरुवात साहित्य के क्षेत्र में बड़ा कदम है, अनुज हर्षल और पूरी टीम बधाई की पात्र है
हिंदी और अब क्षेत्रीय भाषाओं में बच्चों और किशोरों के लिए बेहतरीन साहित्य लाने और बड़े साहित्यकारों का ध्यान और फोकस इस आयु वर्ग पर लाने के लिए अनुज भाई Sushil Shukla का योगदान हमेंशा इतिहास में याद रखा जाएगा
सुशील "सायकिल" के सम्पादक है इसके पूर्व वे चकमक के सम्पादक थे, इन दिनों भोपाल में इकतारा के प्रमुख होते हुए वे दुनियाभर के बाल साहित्य को इकठ्ठा कर एक बड़ा और अनूठा संसाधन केंद्र बना रहे है , शशि सबलोक के साथ यह सृजन की यात्रा बढ़ रही है
एकलव्य ने चकमक की शुरुवात कर इस पूरे काम की नींव डाली थी और यह पत्रिका आज भी देश विदेश में लोकप्रिय है
महाराष्ट्र के युवा साथी हर्षल ने भी बड़ा काम हाथ में लिया है - इन सबके लिए खूब प्यार, दुआएँ और स्वस्तिकामनाएँ
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ट्रेन चल पड़ी है, सुबह - सुबह के पाँच बजने को हे
उज्जैन से करीब 20 - 25 महिलाओं का जत्था चढ़ा और ट्रेन के एसी कोच में भूचाल आ गया, सब बुजुर्ग, युवा, सुंदर, आकर्षक और चमकीले सामान और हाथों में महंगे मोबाइल और ललाट पर त्रिपुण्डधारी महाँकाल का भव्य तिलक और होठों पर डेढ़ से दो किलो की लाली - एकदम मजबूत पुट्टी वाली आयल पेंट की पुताई - कमाल सुबह पाँच बजे कैसे यह सब, पर महाँकाल की कृपा तो होगी ना कुछ तो
बैठते ही नाश्ता - पोहा, चिवड़ा, चकली, पापड़, फाफड़े, थेपले, ढोकला से लेकर मिठाईयां और चाय कॉफी का लेनदेन हंसी ठहाके, चुहल और मज़ाक के शब्द ऐसे कि शर्म आ जाये - "तेरे जीजा का क्या बताऊँ ..." और जो वर्णन - उफ़्फ़ अडोस पड़ोस में बैठी औरतें ही नही पुरुष भी उन चटखारों को सुनकर लजा रहे और सफ़ेद चादरों में मुंह डालकर शुतुरमुर्ग बन हंस रहें
थोड़ी देर बाद आशाराम बापू के नाम के जप, भजन शुरू हो गए बेहद जोर से और कर्कश आवाजों में, झाँझ मंजीरे निकल आये बैग से और दो छोटी ढोलकी भी - बीथोवन को मात देता संगीत और प्रमिला दातार के आर्केस्ट्रा से बड़ा संयोजन
सारे आसपास के लोग परेशान - क्या करें, टीटी आया तो सबने शिकायत की - " महिलाओं को कैसे चुप करूँ, आप तो जानते है वे कभी चुप नही बैठती , भगवान भी चुप नही करा सकता एक औरत को तो ये सब तो 25 है"
एक यात्री बोला - "सुन बै, अब नियम है कोई जोर से बात भी नही कर सकता, डीआरएम को ट्वीट करें क्या, तेरी नौकरी खा जायेंगे "
डरकर और यात्रियों की चिल्लाहट से त्रस्त होकर टीटी ने रेलवे पुलिस को बुला लिया, पुलिस वाले गए तो महिलाएं गाली देने लगी उन्हें और बोली "ज़्यादा मत बोलो, नही तो हम सब अगले स्टेशन पर उतरकर थाने में रिपोर्ट कर देंगी - महिलाएँ अब अत्याचार नही सह सकती"
पुलिस के जवान और टीटी दोनो भाग गए - फिर महिलाओं ने यात्रियों को खदेड़ा - " चुपचाप सो जाओ, अब कोई बोला तो ऑनलाइन एफआईआर कर देंगे, बड़ी दीदी वकील है कोर्ट में , कोटा के सेशन कोर्ट में और हमारी भक्त मंडली में शामिल है"
सब चुप - फिर भजन चालू, फिर एक - दो बोली "मैं तो सो रही, थक गई कल महाँकाल का कॉरिडोर चलने में, घुटने जवाब दे गए, और इस तरह भारी नाश्ता और थकान का असर हुआ और थोड़ी देर में धीरे - धीरे कर सब सो गई और अब यात्रीगण खर्राटों से परेशान, नाश्ते का कचरा, बदबू और खुले पड़े डिब्बों की गंदगी, जगह जगह ढुली हुई चाय - कॉफी एवं चीकट फ्लोर
फिर आया कोटा , एक टीटी को खींच लाई कही से पकड़कर और उसका हाथ पकड़कर बोली " सुन बेटा,गाड़ी पांच मिनिट ज्यादा रोकना नही तो देख लेना", टीटी टीटू और टॉमी बना बैठा था, इतना कमजोर टीटी नही देखा जीवन में मैंने - उसके पीछे की राज्य की ताकत नपुंसक सी खड़ी थी और वह मजबूर
जब सब उतर गई तो टीटी मेरे पास आया और बोला - "ये कैसा महिला सशक्तिकरण है भाई साहब, अभी तो ब्याह भी नही हुआ - आरोप लग गया महिला प्रताड़ना का तो नौकरी भी गई और ब्याह भी नही होगा, अभी 28 का ही हूँ "
फिर इसी कोटा से इसी बोगी में दो औरतें और चढ़ी भगवा वस्त्रों में - उन्हें छोड़ने पूरा राजस्थान आया था मानो और बोगी में एवं प्लेटफॉर्म पर नारे लग रहे थे - जय माता दी
अथ रेल यात्रा का #सफ़रनामा वाया महिला सशक्तिकरण कथा समाप्त
[ एक भी शब्द झूठ नही माँ कसम ]
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भाई जान जो शहर भर और जमाने भर के वालिद समान थे, रोल मॉडल थे साम्प्रदायिक सौहार्द्र के, प्रगतिशील थे और गज़ब की गज़लें और नवगीत पढ़ते - लिखते थे, खूब गालियाँ देते थे कौमी दंगों को, घर के पास बस एजेंसी वाले को हिन्दू राष्ट्र का बस अड्डा कहते थे
उन्हें बेटा हुआ, दो साल बाद घर गए तो भीड़ थी, मैंने पूछा क्यों कॉमरेड क्या चक्कर है, बोले "बेटे का खतना करवाया आज, सो रिश्तेदार जमा हुए है, दावते ए आम है घर आज, अब कौम में तो रहना ही है, कल यह लौंडा बड़ा होगा तो पूछेगा ना कि मैं मुस्लिम कैसे हूँ और इसको तो बिरादरी में ही ब्याह करना है ना"
प्रगतिशील और जनवादी लेखक संघ में सब बामण है - कोई दलित किसी पद पर नही, लाला लोग सालों से काबिज़ है और बात दलित - वंचित की करते है, हर जगह सरस्वती पूजन से शुरुवात करते है और तगड़ा माल बनाकर और निकम्मे बेटे - बेटियों को सेट करके सरकार को कोसते है और उसी सरकार की पेंशन से रोज "टीचर या वेट 69" का ढक्कन खुलता है, कभी उत्तेजित हो जाते है तो कहते है "लड़की चाहिए अब" - है कोई नज़र में
इसलिये टेंशन नॉट, नगीने हर जगह है, हमारे मजदूर नेता और कॉमरेड फ्रांसिस के बेटे का भी बपतिस्मा शानदार हुआ चर्च में, बेटी की शादी पचास लाख से कम में क्या हुई होगी कम से कम, बढ़िया भोज था - ये अलग बात है कि कॉमरेड फ्रांसिस बीबी को जीवन भर पीटते रहें, वो अभी भी कही तीन - चार हजार रूपट्टी की नौकरी करती है, और सरदार लखविंदर सिंह के घर से हर शनिचर को गुरुद्वारे में असली घी का हलवा जाता है मेवों की सजावट के साथ, ये दीगर बात है कि वे शहर की माकपा के पोलित ब्यूरो प्रमुख है
प्रमोशन से आयएएस बने दलित अफसर भी काल सर्प का दोष हटाने उज्जैन आते है, त्र्यम्बकेश्वर जाते है, हर पूनम को सत्यनारायण की कथा करवाते है - ताकि मलाईदार पोस्ट बनी रहें और सबके सरनेम बदल गए भार्गव या सिन्हा या कुमार हो गए - कुछ अफ़सरों ने जीवन भर कुकर्म किये और अब रिटायर्ड होकर ज्ञान पेलते है फेसबुक पर, अंबेडकर की बंशी बजाकर अपने आधे अधूरे ख्वाब, दलित क्रांति और सरकार के ख़िलाफ़ लिखते है - जबकि ये वही लोग है जो नर्मदा में आदिवासी उजड़ रहें थे तो गोलीबारी कर रहें थे कलेक्टर के रूप में
शर्म किसी को मगर आती नही - चलो बै ब्राह्मणों को गाली दो, लंच पचाना है ना
कौम में सबको रहना है गुरू
सबको कौम में रहना है
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जिस देश को अपने जान से ज़्यादा चाहते है, जिस देश के लिए आप अपनी जान गंवा देना चाहते हैं - उस देश का पूरा राजनैतिक, न्यायिक और प्रशासनिक ढाँचा ना मात्र भ्रष्ट है बल्कि बेहद लापरवाह, निकम्मा और हरामखोर है, पूरी ज्यूडिशियरी एवं ब्यूरोक्रेसी हद दर्जें तक नालायक और हत्यारी है और इसके बदले हम देश के लोग इन हरामखोर सफ़ेद हाथियों को पालने के लिए चौबीसों घण्टे मेहनत करते है
और इनकी मिलीजुली कोशिशों से जो भी सरकार प्रायोजित "नर संहार" होते है - चाहे दंगों में, गैस त्रासदी में, पुल टूटने पर, कोविड जैसी बीमारी या कुपोषण से हम आम लोग मरते रहें, हमारी मौत पर ये कमीने हर लाश की क़ीमत मात्र "दो लाख रुपये" तय करते हैं और उस पर भी श्रेय लेने से नही चूकते और आत्म मुग्ध होकर वोट मांगने चलें आतें है
शर्मनाक और धिक्कार है इन सब पर जो ऐय्याशी कर जी रहें हैं और लापरवाही कर हम सबको भगवान भरोसे छोड़ दिया है
मतलब कितनी शर्मनाक बात है, हम 140 करोड़ और ये कुल मिलाकर चालीस - पचास हज़ार सिर्फ़ - निकालो खींचकर सड़क पर इन्हें, जूते मारो और दौडाओं सड़क पर नंगा करके फिर हम सब इनके परिवारों को देंगे - "दो - दो लाख रुपया नगद"
बहुत गुस्सा हूँ आज, विकसित और मॉडल राज्य गुजरात के मोरवी के पुल में मर गए लगभग 100 से ज्यादा लोगों को श्रद्धांजलि और नमन - यही किया है प्रधान सेवक और दुनिया के श्रेष्ठ गृह मंत्री ने - डूब मरो रे गुजरात के मुखिया से लेकर प्रशासन के भ्रष्टतम लोगों
जागो नही तो अपने परिवार को दो लाख रुपये लेने के लिए तैयार करते रहो निकृष्ट, उदासीन, निकम्मे और सोए हुए लोगों - अनपढ़ और ग्रामीण लोगों - तुम्हारे एक कम्बल और दारू की एक बोतल के लालच ने देख लो देश को आज कहाँ लाकर खड़ा कर दिया है और पढ़े - लिखें नालायकों चुनाव के दिन पिकनिक मनाने का नतीज़ा देख लिया
कोई भरोसा नही कि यह भी एक चुनावी स्टंट हो - चुनाव आ रहा है तो यह सब अभी और होगा चुनाव जीतने और यश कमाने के लिए साला कुछ भी करेगा
क्यों ना सुप्रीम कोर्ट इस राज्य के मुख्यमंत्री, पूरी केबिनेट, मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और जिला कलेक्टर को बर्खास्त कर सीधे जेल में डाल दें आजीवन कारावास की सज़ा देते हुए और पूरी नगरपालिका के कर्मचारियों को चौराहे पर खुलेआम फांसी पर टाँग दें, जिन्होंने पुल बगैर इजाज़त के खोल दिया - इसके अलावा कोई और चारा नही है अब
गुजरात का बेशर्म राज्य मंत्री मोदी, शाह और मुख्यमंत्री की जिस अंदाज़ में टीवी पर चाटुकारिता कर रहा है वह कितना वीभत्स है

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